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Author: Yogacharya Dhakaram

Yogacharya Dhakaram, a beacon of yogic wisdom and well-being, invites you to explore the transformative power of yoga, nurturing body, mind, and spirit. His compassionate approach and holistic teachings guide you on a journey towards health and inner peace.

जल नेति क्रिया: स्वास्थ्य और आनंद की ओर एक कदम

सभी को हमारा मुस्कुराता हुआ नमस्कार! प्यारे दोस्तों, एक कदम स्वास्थ्य से आनंद की ओर कार्यक्रम में आप सभी का हार्दिक स्वागत है। पिछली बार हमने नौली क्रिया पर चर्चा की थी। आज हम बात करेंगे जल नेति क्रिया के बारे में, जो ENT से संबंधित रोगों के लिए अत्यंत लाभकारी है।

जल नेति क्रिया का परिचय

जल नेति क्रिया हमारे कान, नाक और गले पर गहरा प्रभाव डालती है। यह सिर दर्द, माइग्रेन, सर्दी और अस्थमा जैसी समस्याओं में लाभकारी है। इसके अतिरिक्त, यह हमारी आंखों की रोशनी बढ़ाने और ENT स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में मदद करती है।

जल नेति के लिए आवश्यक सामग्री और तैयारी

  1. पानी का प्रकार:
    • नमकीन और गुनगुना पानी इस्तेमाल करें।
    • पानी में नमक की मात्रा हमारे आंसुओं या जैसे हम सब्जियों में डालते हैं उसकी तरह होनी चाहिए।
  2. नेति पॉट:
    • जल नेति के लिए एक नेति पॉट आवश्यक है, जिसमें पानी डालकर नाक से प्रवाह किया जाता है।

जल नेति क्रिया की प्रक्रिया

  1. तैयारी:
    • सबसे पहले हथेली में थोड़ा सा पानी लें।
    • नमकीन पानी का स्वाद चेक करें ताकि नमक की मात्रा न अधिक हो और न कम।
  2. क्रिया का आरंभ:
    • नाक से पानी डालते समय मुंह से सांस लें और निकालें।
    • पानी को दूसरी नासिका से बाहर निकालें।
    • यह प्रक्रिया दोनों नासिकाओं से समान रूप से करें।
  3. सही मुद्रा और प्रवाह:
    • गर्दन को हल्का सा टेढ़ा रखें।
    • नेति पॉट की टोंटी को नाक में लगाकर धीरे-धीरे पानी डालें।
    • अगर पानी तुरंत बाहर नहीं आता, तो घबराएं नहीं। नियमित अभ्यास से यह प्रक्रिया सहज हो जाएगी।

जल नेति के बाद की योगिक क्रियाएं

जल नेति के बाद नाक में पानी रुकने से बचाने के लिए कुछ यौगिक क्रियाएं करें:

  1. झुककर सांस निकालना:
    • कमर को हल्का झुकाएं और नाक से सांस को जोर से बाहर निकालें।
  2. कटी शक्ति विकासक क्रिया 5:
    • पैरों को कंधों के बराबर दूरी पर रखें।
    • श्वास लेते हुए हाथों को दाएं और बाएं घुमाएं।
  3. कटी शक्ति विकासक क्रिया 3:
    • श्वास भरते हुए कमर को पीछे झुकाएं और छोड़ते हुए आगे झुककर सिर को घुटनों से छूने का प्रयास करें।
  4. सूर्य नमस्कार और शशांक आसन:
    • इन योगासनों में श्वास बाहर निकालने पर ध्यान दें।

जल नेति के फायदे

  • सिर दर्द, माइग्रेन और सर्दी-जुकाम में राहत।
  • अस्थमा और आंखों की रोशनी बढ़ाने में सहायक।
  • ENT (कान, नाक, गला) स्वास्थ्य में सुधार।

सावधानियां

  1. पानी गुनगुना और सही मात्रा में नमकीन हो।
  2. क्रिया के दौरान केवल मुंह से सांस लें।
  3. नासिकाओं में पानी न रुकने दें; अन्यथा, सिर दर्द, सर्दी या माइग्रेन हो सकता है।
  4. जल्दबाजी न करें और क्रिया को धैर्यपूर्वक करें।

इसी के साथ आप सभी को बहुत-बहुत धन्यवाद। आप सभी का दिन शुभ रहे, मंगल में रहें और आनंदित रहे।

योगाचार्य ढाका राम
संस्थापक, योगा पीस संस्थान

सिंह आसन: शक्ति और शांति का मेल

नमस्कार! हम आपका स्वागत करते हैं “स्वास्थ्य से आनंद की ओर” कार्यक्रम में। आज हम बात करेंगे एक सरल लेकिन अत्यंत लाभकारी योगाभ्यास के बारे में जिसे सिंह आसन कहते हैं।


सिंह आसन, जिसे “सिंह मुद्रा” भी कहा जाता है, योग में एक महत्वपूर्ण आसन है। यह आसन शक्ति, साहस और आत्मविश्वास को बढ़ावा देने के लिए जाना जाता है। यह भी तनाव, चिंता और अवसाद को कम करने में मदद करता है।

सिंह आसन के लाभ

  • शक्ति और साहस में वृद्धि
  • तनाव, चिंता और अवसाद में कमी
  • थायराइड ग्रंथि को उत्तेजित करना
  • प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करना
  • चेहरे की खूबसूरती को बढ़ाना

सिंह आसन के कई लाभ हैं, जिनमें शामिल हैं:

शारीरिक लाभ: सिंह आसन प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत बनाता है और छाती, कंधों, गर्दन और पीठ यह आपके श्वास को गहरा और नियमित बनाता है, जो आपके फेफड़ों को स्वस्थ रखने में मदद करता है।

मानसिक लाभ: सिंह आसन तनाव, चिंता और अवसाद को कम करने में मदद करता है। यह आपके मन को शांत और केंद्रित करता है, जो आपको बेहतर सोने और ध्यान करने में मदद करता है।

अन्य लाभ: सिंह आसन आपके आत्मविश्वास को बढ़ाता है और आपको अधिक सकारात्मक बनाता है। यह आपके रक्तचाप को कम करने और आपके मूड को बेहतर बनाने में भी मदद कर सकता है।

सिंह आसन कैसे करें

  • अपने घुटनों और हथेलियां के बल आ जाए और अपने हथेलियां को अपने कंधों के बराबर रखे
  • अपने पैरों को कूल्हों की चौड़ाई पर फैलाएं।
  • दोनों हाथों को दोनों कंधे के सीध में रखे और दोनों कंधों से हथेलियां तक 90 डिग्री एंगल और कुल्हो के जोड से लेकर घुटनों तक 90 डिग्री एंगल तक श्वास लेते हुए अपने शरीर को थोड़ा पीछे लेकर जीभ को पूरा बाहर निकलते हुए श्वास को भी निकलते हुए अपने छाती को आगे की तरफ फुलाते हुए छाती को चौड़ा करेंगे
  • दृष्टि आकाश की तरफ रखते हुए पूरा श्वास निकाल देंगे
  • पूरा श्वास निकालने के बाद धीरे से पीछे जीभ को अंदर लाते हुए पहले की अवस्था में आ जाएंगे और अवलोकन करेंगे अपने गला और चेहरे की मांसपेशियों का चेहरे की सारी मांसपेशियों में खिंचाव आना चाहिए आंखें भी बड़ी-बड़ी करके ऊपर की तरफ देखना ताकि अपनी आंखों का भी मसाज हो जाए
  • चेहरा शेर की तरह डरावना होना चाहिए इस आसन को कम से कम 5 से 7 बार करेंगे मतलब कम से कम 3 से 4 मिनट और 1 मिनट ऑब्जरवेशन

सिंह आसन के सावधानियां

  • यदि आपको हाई ब्लड प्रेशर या गर्दन की समस्या है तो आपको इस आसन को नहीं करना चाहिए।

सिंह आसन एक बहुत ही लाभकारी आसन है, जिसे आप अपनी दैनिक योग प्रैक्टिस में शामिल कर सकते हैं। यह आपको शारीरिक रूप से मजबूत और मानसिक रूप से शांत बनाएगा।

हमारी प्रार्थना है कि परमेश्वर की अनुकंपा आप सभी पर बनी रहे। आप खुश रहें, स्वस्थ रहें और आनंदित रहें।

योगाचार्य ढाकाराम
संस्थापक, योगापीस संस्थान

साइकिल संचालन क्रिया: पेट की चर्बी को कम करने और स्वास्थ्य लाभ के लिए अद्भुत योग अभ्यास

नमस्कार! हम आपका स्वागत करते हैं “स्वास्थ्य से आनंद की ओर” कार्यक्रम में। आज हम बात करेंगे एक सरल लेकिन अत्यंत लाभकारी योगाभ्यास के बारे में जिसे साइकिल संचालन क्रिया कहते हैं। यह अभ्यास नकली साइकिल चलाने जैसा है और हमारे शरीर के लिए कई प्रकार से लाभकारी है।

साइकिल संचालन क्रिया के लाभ

  1. चर्बी घटाने में सहायक: साइकिल संचालन से पेट पर जमी अतिरिक्त चर्बी को कम किया जा सकता है।
  2. मांसपेशियों को मजबूत बनाना: यह क्रिया पेट की मांसपेशियों को मजबूत करती है।
  3. पाचन तंत्र में सुधार: यह अभ्यास पाचन तंत्र को सक्रिय और स्वस्थ बनाता है।

साइकिल संचालन क्रिया करने की विधि

  1. योगा मैट या दरी पर पीठ के बल लेट जाएं।
  2. अपनी कुहनियों को कंधों की सीध में रखते हुए ज्यादा से ज्यादा पास रखें।
  3. छाती को बाहर की ओर फुलाएं।
  4. एड़ी और पंजों को मिलाकर, घुटनों को मोड़ते हुए छाती की ओर लाएं।
  5. दोनों पैरों को 90 डिग्री पर उठाएं और धीरे-धीरे नीचे की ओर लाएं। ध्यान दें कि आपकी एड़ियां जमीन से न लगें।
  6. 1.5 से 2 मिनट तक clockwise (घड़ी की दिशा में) अभ्यास करें।
  7. इसके बाद आराम करें और anti-clockwise (घड़ी की विपरीत दिशा में) 1.5 से 2 मिनट तक करें।
  8. दोनों दिशाओं में अभ्यास पूरा करने के बाद शवासन में विश्राम करें।

सावधानियां

  • कोहनी और कंधे की स्थिति: कोहनी और कंधे एक सीध में होने चाहिए।
  • छाती को फुलाएं: अभ्यास के दौरान छाती को फुलाए रखें, इससे प्रभाव बढ़ता है।
  • गर्दन को विश्राम दें: गर्दन की मांसपेशियों को आराम की स्थिति में रखें।
  • घुटने मिलाकर रखें: घुटने आपस में मिले हुए होने चाहिए।
  • पैर उठाने में कठिनाई: यदि 90 डिग्री पर पैर उठाने में कठिनाई हो, तो 60 डिग्री पर उठाने का प्रयास करें।
  • एक पैर से अभ्यास: अगर दोनों पैरों से अभ्यास कठिन है, तो एक-एक पैर से करें।

विशेष सलाह

  • गर्भवती महिलाएं, महावारी के दौरान महिलाएं, हर्निया, अल्सर या पेट दर्द से पीड़ित व्यक्ति केवल एक पैर से यह क्रिया करें।
  • योगाभ्यास को आंखें बंद करके करने से अधिक लाभ होता है।
  • 3-4 मिनट तक अभ्यास करने के बाद, 1 मिनट का आत्म-निरीक्षण अवश्य करें।

अभ्यास का समय

  • सामान्य व्यक्ति: 1.5 मिनट नीचे से ऊपर और 1.5 मिनट ऊपर से नीचे अभ्यास करें।
  • चर्बी घटाने के इच्छुक व्यक्ति: 2-2 मिनट दोनों दिशाओं में अभ्यास करें।

समापन: इस अभ्यास के बाद शवासन में आराम करें और उठते समय बगल से करवट लेते हुए उठें। नियमित अभ्यास से आपके पेट की अतिरिक्त चर्बी पिघल जाएगी और आपका शरीर स्वस्थ और मजबूत बनेगा।

हमारी प्रार्थना है कि परमेश्वर की अनुकंपा आप सभी पर बनी रहे। आप खुश रहें, स्वस्थ रहें और आनंदित रहें।

योगाचार्य ढाकाराम
संस्थापक, योगापीस संस्थान

नौली क्रिया: स्वास्थ्य और आनंद की ओर योग का अगला कदम

आप सभी को हमारा मुस्कुराता हुआ नमस्कार 😊

आप सभी का स्वागत है “एक कदम स्वास्थ्य से आनंद की ओर” कार्यक्रम में। पिछली बार हमने अग्निसार क्रिया और उड्डीयन बंध के बारे में सीखा। आज हम चर्चा करेंगे नौली क्रिया की, जो इन क्रियाओं का अगला चरण है।

नौली क्रिया का परिचय

महर्षि पतंजलि के अष्टांग योग में कई चरणों का उल्लेख है, जैसे यम, नियम, आसन, प्राणायाम, आदि। इसी क्रम में, घेरण्ड संहिता में भी 6 शुद्धिकरण क्रियाओं का वर्णन है, जिन्हें षट्कर्म कहा गया है: धौति, बस्ति, नेति, नौली, त्राटक और कपालभाति। इनका उद्देश्य शरीर को शुद्ध करना है। इनमें से नौली क्रिया पेट की शुद्धि के लिए महत्वपूर्ण है और इसे लौलीकी क्रिया भी कहते हैं।

नौली क्रिया के चरण

  1. मध्य नौली: समस्थिति में खड़े होकर, दोनों पैरों पर समान भार डालें। दोनों हाथों की हथेलियों को जांघों पर रखकर थोड़ा आगे झुकें। पेट की मांसपेशियों को मध्य में लाने की कोशिश करें।
  2. वाम नौली: बाईं जांघ पर हल्का दबाव डालते हुए, पेट की सभी मांसपेशियों को बाईं ओर लाएं।
  3. दक्षिण नौली: दाईं जांघ पर हल्का दबाव डालते हुए, पेट की सभी मांसपेशियों को दाईं ओर खींचें।
  4. नौली संचालन (भ्रमर नौली): दोनों हाथों को घुटनों पर रखकर पेट की मांसपेशियों को दाएं से बाएं और फिर बाएं से दाएं घुमाएं। हमेशा क्लॉकवाइज़ और एंटी-क्लॉकवाइज़ समान रूप से करें।

नौली क्रिया के लाभ

  • पाचन शक्ति में वृद्धि: पेट की मांसपेशियों को मजबूत बनाती है, जिससे पाचन तंत्र मजबूत होता है।
  • कब्ज में राहत: कब्ज की समस्या दूर होती है।
  • वजन घटाने में सहायक: पेट की चर्बी घटाने में मददगार।
  • गैस की समस्या से राहत: गैस की समस्या को दूर करती है और पेट की मांसपेशियों को टोन करती है।

सावधानियाँ

  • नौली क्रिया का अभ्यास हमेशा खाली पेट करें।
  • पित्त प्रधान व्यक्ति या जिनके शरीर में अत्यधिक गर्मी हो, वे इससे बचें।
  • गर्भवती महिलाएं, हर्निया या पेट के ऑपरेशन से गुजर चुके लोग इस क्रिया का अभ्यास न करें।
  • मासिक धर्म के दौरान महिलाएं नौली क्रिया न करें।
  • जिन लोगों को कमर दर्द हो, वे भी इस क्रिया से परहेज करें।

अभ्यास के बाद क्या करें?

अभ्यास के बाद एक गिलास दूध में दो चम्मच घी, सौंठ और काली मिर्च मिलाकर सेवन करें। यह पेट की मांसपेशियों को अंदर से मजबूत बनाता है। नौली क्रिया का अभ्यास कम से कम 7 बार दाएं से बाएं और 7 बार बाएं से दाएं अवश्य करें।

आप सभी का धन्यवाद और आभार! आनंदित रहें, मुस्कुराते रहें – यही हमारी भगवान से प्रार्थना है। 🙏

योगाचार्य ढाका राम
संस्थापक, योगापीस संस्थान

उड्डियान बंध: स्वास्थ्य, पाचन और शारीरिक संतुलन की ओर एक कदम

आप सभी को हमारा मुस्कुराता हुआ नमस्कार। हमारे इस विशेष श्रृंखला “एक कदम स्वास्थ्य से आनंद की ओर” में आपका स्वागत है। पिछले लेख में हमने अग्निसार क्रिया के बारे में चर्चा की थी और आज हम उड्डियान बंध के बारे में जानेंगे।

पतंजलि के अष्टांग योग में यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, और समाधि का उल्लेख मिलता है। वहीं, अगर हम घेरण्ड संहिता की बात करें, तो इसमें ऋषि घेरण्ड ने सबसे पहले षट्कर्म की चर्चा की है। महर्षि घेरण्ड ने हमें बताया कि आसनों से पहले शरीर को शुद्ध करना आवश्यक है, जिसमें नौली क्रिया का विशेष महत्व है। नौली क्रिया को लौलीकी क्रिया भी कहते हैं, और इसका मुख्य उद्देश्य पेट का शुद्धिकरण है। षट्कर्म में धौति, बस्ति, नेति, नौली, त्राटक और कपालभाति शामिल हैं।

उड्डियान बंध का अभ्यास

आज हम उड्डियान बंध क्रिया को समझेंगे और उसका अभ्यास करेंगे। पिछली बार हमने बताया था कि नौली क्रिया से पहले अग्निसार क्रिया का अभ्यास करना चाहिए। जब अग्निसार क्रिया अच्छे से होने लगे, तभी हमें उड्डियान बंध का अभ्यास करना चाहिए। उड्डियान बंध के लिए सबसे पहले दोनों पैरों में एक से डेढ़ फीट का फासला रखना चाहिए, जो लगभग कंधों की चौड़ाई के बराबर होता है। दोनों हाथों की हथेलियों को जांघों पर रखते हुए, शरीर को आगे की ओर झुकाएं। अब श्वास को पूरी तरह से बाहर निकालें और पेट की मांसपेशियों को अंदर की ओर खींचें, जिससे नाभि को पीछे की ओर मेरुदंड तक ले जाने का प्रयास करें।

जब श्वास को और अधिक रोकना मुश्किल हो जाए, तो धीरे-धीरे खड़े होकर आराम करें। थोड़ी देर आराम करने के बाद, जब पेट की मांसपेशियां रिलैक्स हो जाएं, तो फिर से इस क्रिया को दोहराएं। इस प्रक्रिया को कम से कम 2-3 मिनट तक किया जा सकता है, और समय के साथ अभ्यास को बढ़ाया जा सकता है।

इस क्रिया को बैठकर भी किया जा सकता है, लेकिन खड़े होकर अभ्यास करने से इसका अधिक लाभ मिलता है।

उड्डियान बंध के लाभ

हमारे ग्रंथों में कहा गया है कि उड्डियान बंध का नियमित अभ्यास करने से हमारा पाचन तंत्र इतना मजबूत हो जाता है कि हमारा पेट पत्थर तक पचा सकता है। यह क्रिया पेट की समस्याओं जैसे गैस्ट्रिक, एसिडिटी, कब्ज, और अपच को दूर करती है। साथ ही, पेट की मांसपेशियों को लचीला और मजबूत बनाती है और पेट के मोटापे को कम करती है।

सावधानियां

उड्डियान बंध का अभ्यास करते समय कुछ सावधानियों का ध्यान रखना जरूरी है:

  1. यह क्रिया खाली पेट ही करनी चाहिए।
  2. पित्त प्रकृति के व्यक्ति, जिनके शरीर में अधिक गर्मी होती है, उन्हें इसका अधिक अभ्यास करने से बचना चाहिए।
  3. उड्डीयन बंध का अधिक अभ्यास पेट की मांसपेशियों में शुष्कता ला सकता है, जिससे कब्ज की समस्या हो सकती है।
  4. गर्भवती महिलाओं को यह क्रिया नहीं करनी चाहिए।
  5. हर्निया, अल्सर, या पेट का ऑपरेशन हुआ हो, तो इस क्रिया का अभ्यास न करें।
  6. मासिक धर्म के दौरान महिलाओं को इस क्रिया से बचना चाहिए।
  7. कमर दर्द की समस्या हो, तो भी इस क्रिया का अभ्यास नहीं करना चाहिए।

आप सभी का बहुत-बहुत आभार और धन्यवाद। आप इसी तरह आनंदित रहें, मुस्कुराते रहें, यही हमारी भगवान से प्रार्थना है।

अग्निसार क्रिया: पेट की चर्बी कम करने का अचूक उपाय

मुस्कुराता हुआ नमन प्यारे मित्रों,

आज हम बात करेंगे एक एसी योग क्रिया के बारे में जो न सिर्फ आपके पेट की चर्बी कम करेगी, बल्कि आपके समग्र स्वास्थ्य को भी बेहतर बनाएगी। यह है – अग्निसार क्रिया।

अग्निसार क्रिया क्या है?

अग्निसार क्रिया एक प्राचीन योगासन है, जो पेट की मांसपेशियों को मजबूत बनाने और पाचन तंत्र को बेहतर बनाने के लिए किया जाता है। इस क्रिया को करने से पेट में एक तरह की आंतरिक आग जलाई जाती है, जिससे शरीर में जमा अतिरिक्त चर्बी पिघलने लगती है।

अग्निसार क्रिया करने का तरीका:

  • सम स्थिति में खड़े हों: दोनों पैरों को कंधे की चौड़ाई पर रखें और घुटनों को थोड़ा मोड़ें।
  • हाथों को जांघों पर रखें: हथेलियों को घुटनों से थोड़ा ऊपर रखें।
  • सांस बाहर निकालें: पूरी तरह से सांस बाहर निकालें और फिर सांस को रोकें।
  • पेट को अंदर-बाहर करें: पेट को अंदर खींचें और फिर बाहर की ओर धकेलें। इस क्रिया को तब तक दोहराएं जब तक आप सांस रोक सकें।
  • जब सांस लेने में परेशानी हो, तो रुक जाएं और कुछ देर आराम करें।

अग्निसार क्रिया के फायदे:

  • पेट की चर्बी कम होती है: नियमित अभ्यास से पेट की चर्बी कम होती है।
  • पाचन तंत्र मजबूत होता है: यह पाचन क्रिया को बेहतर बनाता है और कब्ज जैसी समस्याओं से राहत दिलाता है।
  • पेट के अंगों को मजबूत बनाता है: यह पेट के अंगों की मालिश करता है और उन्हें मजबूत बनाता है।
  • तनाव कम होता है: अग्निसार क्रिया तनाव कम करने में मदद करती है।

कौन न करें अग्निसार क्रिया:

  • गर्भवती महिलाएं
  • हर्निया या अल्सर के रोगी
  • हृदय रोग के रोगी
  • पेट दर्द की अवस्था में

ध्यान रखने योग्य बातें:

  • अग्निसार क्रिया को हमेशा खाली पेट ही करें।
  • शुरुआत में धीरे-धीरे अभ्यास करें और धीरे-धीरे समय बढ़ाएं।

निष्कर्ष:

अग्निसार क्रिया एक बेहतरीन यौगिक है जो आपके समग्र स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में मदद कर सकता है। नियमित अभ्यास से आप एक स्वस्थ और फिट जीवन जी सकते हैं।

आप सभी का बहुत-बहुत आभार आप नियमित योग अभ्यास करें अपने तन मन और आत्मा को स्वस्थ रखें आप सभी खुश रहें मस्त रहें आनंदित रहें और परमपिता परमेश्वर अनुकंपा आप सभी पर ऐसे ही बरसाते रहें

योगाचार्य ढाका राम
संस्थापक, योगापीस संस्थान

योग रत्न से सम्मानित हुए योगाचार्य ढाकाराम

योगापीस संस्थान के संस्थापक, योगाचार्य ढाकाराम को राष्ट्रीय स्तर पर योग में उनके अतुलनीय योगदान के लिए मुंबई में आयोजित योग महोत्सव में “योग रत्न” पुरस्कार 2024 से सम्मानित किया गया। यह सम्मान उन्हें न्यू एज योगा संस्थान के सीईओ, योगाचार्य नितिन पतकी जी और इंडियन योगा एसोसिएशन की राष्ट्रीय अध्यक्ष, हंसा योगेंद्र जी (हंसा मां) द्वारा प्रदान किया गया।

इस वर्ष के योग महोत्सव का विषय “प्राणायाम” और “ध्यान” था। इस अवसर पर, हंसा मां और योगाचार्य ढाकाराम ने सैकड़ों योग प्रेमियों को प्राणायाम और ध्यान के महत्व के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने समझाया कि कैसे ये दोनों अभ्यास व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इस तरह उन्होंने सभी को योग साधना जारी रखने के लिए प्रेरित किया।

सोफे और कुर्सी पर बैठने का सही तरीका: कमर दर्द से बचाव

आप सभी को हमारा मुस्कुराता हुआ नमस्कार। एक कदम स्वास्थ्य से आनंद की ओर कार्यक्रम में आप सभी का फिर से स्वागत है। आज हम बात करेंगे आप सोफे पर कैसे बैठे और अपने आप को इससे होने वाली तकलीफों से बचाए। गलत तरीके से बैठने से कमर दर्द, स्लिप डिस्क और अन्य समस्याएं हो सकती हैं।

सोफे पर बैठते समय:

  • ठोस सोफा चुनें: नरम सोफे से कमर पर दबाव बढ़ता है।
  • कंबल या बेडशीट का उपयोग करें: यह कमर को सीधा रखने में मदद करता है।
  • घुटने कूल्हे से नीचे रखें: पैर लटकाकर न बैठें।
  • सीधे बैठें: छाती फूली रहेगी और ऑक्सीजन का प्रवाह बेहतर होगा।

कुर्सी पर बैठते समय:

  • कमर सीधी रखें: आगे झुककर न बैठें।
  • टेबल ऊंची रखें: झुककर काम करने से बचें।
  • पैर जमीन पर टिकाएं: घुटने कूल्हे से नीचे रखें।

पैर लटकाकर बैठने के नुकसान:

  • पैरों में सूजन
  • कमर दर्द
  • स्लिप डिस्क

आप भी आज से ही सही तरीके से बैठने की आदत डालें।

अतिरिक्त टिप्स:

  • अपने बैठने की आदतों पर ध्यान दें।
  • हर 30 मिनट में उठकर थोड़ा टहलें।
  • नियमित रूप से योग और व्यायाम करें।
  • अच्छी मुद्रा बनाए रखें।

तो प्यारे मित्रों इसी के साथ आपका बहुत-बहुत धन्यवाद बहुत-बहुत आभार,

योगाचार्य ढाका राम
संस्थापक योगापीस संस्थान
अन्य जानकारी के लिए क्लिक करें www.dhakaram.com

पेट की समस्याओं का जड़ या कारण: नाभि का खिसकना

आप सभी को हमारा मुस्कुराता हुआ नमस्कार। आप सभी हमारा नमस्कार स्वीकार करें। एक कदम स्वास्थ्य से आनंद की ओर कार्यक्रम में आप सभी का स्वागत है। आप सभी आनंद में होंगे। आज हम बात करने वाले हैं नाभि खिसकने के बारे में। नाभि खिसकना यानी धरण यह आप सभी जानते होंगे। हमारे पेट में 70 से 80 प्रतिशत बीमारियों का कारण हमारे पेट में नाभि का खिसकना हो सकता है। जैसे एसिडिटी, गैस्ट्रिक, कब्ज, अपच, उल्टी का मन, दस्त, मन खराब होना और भूख का ना लगना ऐसे अनेक प्रकार की बीमारियां हैं जो हमारे नाभि खिसकने से होती हैं। मेडिकल साइंस में धरण को नहीं मानते हैं लेकिन कुछ डॉक्टर आजकल इसे मानने लग गए हैं।

आज हम बात करेंगे धरण क्या है वह क्यों होती है? धरण को हम कैसे सही कर सकते हैं? नाभि हमारे शरीर का बहुत महत्वपूर्ण भाग है। जब बच्चा मां के पेट में होता है तो गर्भ में शिशु अपना आहार नाभि के माध्यम से ही ग्रहण करता है। नाभि को शक्ति का केंद्र भी माना जाता है इसलिए हमारे मुख से नाभि ज्यादा महत्वपूर्ण है। जब हम नाभि पर हाथ रखते हैं तो हमें हृदय की जैसी धडकनें महसूस होती हैं यही हमारी धरण होती है। हमारी नाभि अधिक वजन उठाने से, झटका लगने से खिसक जाती है। लेकिन क्या आप जानते हैं यह क्यों खिसकती है? जब हमारी पेट की मांसपेशियां कमजोर होती है तो हमारी नाभि खिसकती है। हमारी नाभि नीचे की ओर खिसक जाने से दस्त हो सकते हैं। अगर हमारी नाभि ऊपर की ओर खिसकती है तो हमें उल्टी, पेट में जलन या गैस हो सकते हैं। नाभि का खिसकना हमारे अंगों को प्रभावित करता है। नाभि जिस भी तरफ खिसकती है उसी तरफ के अंग से संबंधित समस्या उत्पन्न हो सकती है।

धरण क्या है?

धरण नाभि का अपनी जगह से खिसक जाना है। यह अधिक वजन उठाने, झटका लगने, या पेट की मांसपेशियों के कमजोर होने के कारण हो सकता है।

धरण के लक्षण:

  • पेट में दर्द
  • एसिडिटी
  • गैस्ट्रिक
  • कब्ज
  • अपच
  • उल्टी
  • दस्त
  • मन खराब होना
  • भूख न लगना

धरण का निदान:

धरण का निदान करने के लिए कई तरीके हैं:

  • हाथों से: अपनी हथेलियों की रेखाओं को मिलाएं। यदि रेखाएं एक सीध में हैं, तो धरण नहीं है। यदि रेखाएं ऊपर-नीचे हैं, तो धरण हो सकती है।
  • रस्सी से: नाभि से निप्पल और पैर के अंगूठे तक की दूरी को नापें। यदि दूरी में अंतर है, तो धरण हो सकती है।
  • धड़कन से: अपनी उंगलियों को नाभि पर रखकर धड़कन को महसूस करें। यदि कहीं दर्द के साथ धड़कन महसूस हो, तो धरण उसी दिशा में हो सकती है।

धरण का उपचार:

धरण का उपचार करने के लिए कई तरीके हैं:

  • योग: नौकासन, उत्तानपादासन, और जठर परिवर्तनआसान पेट की मांसपेशियों को मजबूत करते हैं और धरण को ठीक करने में मदद करते हैं।
  • नाभि बिठाना: योगाचार्य या धरण बिठाने वाले व्यक्ति से नाभि को सही करवाया जा सकता है।
  • घरेलू उपचार: सरसों के तेल, जैतून के तेल, या नीलगिरी के तेल से नाभि की मालिश करना धरण को ठीक करने में मदद कर सकता है।

धरण से बचाव:

  • नियमित रूप से व्यायाम करें।
  • स्वस्थ भोजन खाएं।
  • अधिक वजन न उठाएं।
  • झटके से बचें।

ध्यान दें:

  • धरण का उपचार करने के बाद कुछ ना कुछ जरूर खाएं।
  • धरण का उपचार करते समय उठते समय अपने शरीर को सीधा रखें।

आप सभी का बहुत-बहुत आभार, आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद।

योगाचार्य ढाका राम
संस्थापक, योगापीस संस्थान

ग्रीवा शक्ति विकासक: गर्दन की मांसपेशियों को मजबूत बनाने का सरल तरीका

नमस्कार प्यारे मित्रों! आप सभी को हमारा मुस्कुराता हुआ नमन आज हम “एक कदम स्वास्थ्य से आनंद की ओर” कार्यक्रम में ग्रीवा शक्ति विकासक के बारे में बात करेंगे।

ग्रीवा शक्ति विकासक क्या है?

यह एक सरल योग क्रिया है जो गर्दन की मांसपेशियों को मजबूत बनाने और गर्दन दर्द को दूर करने में मदद करती है। इसे आप कहीं भी जैसे कुर्सी, सोफे या बिस्तर पर बैठकर कर सकते हैं।

ग्रीवा शक्ति विकासक के लाभ:

  • गर्दन की मांसपेशियों को मजबूत बनाता है
  • गर्दन दर्द और सर्वाइकल को दूर करता है
  • रक्त प्रवाह को बेहतर बनाता है
  • एकाग्रता और स्मरण शक्ति को बढ़ाता है
  • तनाव और चिंता को कम करता है

ग्रीवा शक्ति विकासक कैसे करें:

  1. सीधे बैठें। यदि आपको सीधे बैठने में परेशानी हो रही है, तो अपने कूल्हों के नीचे तकिया, मसंद या लकड़ी का पाटा रखें मतलब ऊंचाई दें।
  2. अपनी गर्दन को धीरे-धीरे दाएं ओर घुमाएं। अपनी क्षमता के अनुसार गर्दन को घुमाएं, जैसे कि नाक को कंधे के समानांतर लाने का प्रयास करें। 30 सेकंड के लिए इस स्थिति में रहें।
  3. अब धीरे-धीरे अपनी गर्दन को बाईं ओर घुमाएं। अपनी क्षमता के अनुसार गर्दन को घुमाएं और 30 सेकंड के लिए इस स्थिति में रहें इस प्रकार दाहिनी तरफ दो बार और बाएं तरफ दो बार करें।
  4. धीरे-धीरे अपनी गर्दन को वापस बीच में लाएं और आंखें बंद करके मांसपेशियों को आराम करने दे ।

ध्यान रखने योग्य बातें:

  • गर्दन को घुमाते समय कंधों को न घुमाएं।
  • गर्दन को सीधा रखें, ऊपर या नीचे की ओर न झुकाएं।
  • प्रत्येक तरफ 30 सेकंड के लिए गर्दन को घुमाएं।
  • कम से कम 3 मिनट के लिए ग्रीवा शक्ति विकासक करें।

क्रिया के बाद परिवर्तन को महसूस करें:

  • आंखें बंद करके क्रिया के पहले और बाद में गर्दन में आए बदलाव को महसूस करें।
  • क्रिया करते समय ध्यान पूरी तरह से गर्दन पर होना चाहिए।

ग्रीवा शक्ति विकासक एक सरल और प्रभावी क्रिया है जो गर्दन को स्वस्थ रखने में मदद करती है। इसे नियमित रूप से करें और गर्दन दर्द से मुक्ति पाएं।

  • आप इस क्रिया को सुबह या शाम अथवा किसी भी समय कर सकते हैं।

आशा है यह जानकारी आपके लिए और आपकी शुभचिंतकों के लिए बहुत उपयोगी होगी।

धन्यवाद!

योगाचार्य ढाका राम
संस्थापक, योगापीस संस्थान