सूर्य नमस्कार: स्वास्थ्य और आनंद का द्वार
आप सभी मित्रों को हमारा मुस्कुराता हुआ नमस्कार। एक कदम स्वास्थ्य से आनंद की ओर कार्यक्रम में आप सभी का स्वागत है।
आज हम सूर्य नमस्कार के बारे में बात करेंगे। सूर्य नमस्कार के बारे में लगभग हर कोई जानते हैं जब हम सूर्य नमस्कार की बात करते हैं तो हमारे मन में क्या भाव आते हैं जैसे कोई नदी के किनारे या कोई सूर्य भगवान को जल चढ़ा रहे हो आपने देखा भी होगा जब पूजा प्रार्थना होती है तो सूर्य भगवान को जल या अर्ह मतलब दही भी चढ़ाया जाता है है। सूर्य नमस्कार के बारे में सोचते हैं हमारे मन में सूर्य की लालिमा प्रकाश उनकी किरणें आती है। सूर्य नमस्कार पुराने समय से चला आ रहा है आप देखेंगे कि भगवान श्री राम के समय से भी सूर्य नमस्कार का प्रचलन है। रामायण में भी सूर्य नमस्कार के बारे में चर्चा की गई है। हम सूर्य नमस्कार से अपने शरीर और आत्मा का विकास कर सकते हैं। तो चलिए सूर्य नमस्कार साधना के लिए ।
- नमस्कार आसन – सूर्य नमस्कार के लिए सबसे पहले हमें अपने एडी पंजों को मिलना है। हाथों को नमस्कार मुद्रा में लेकर आएंगे। हमारे अंगूठे हमारी छाती को छूने चाहिए मतलब हृदय कमल के पास और चेहरे पर मुस्कुराहट । अब हम आंखें बंद करके कल्पनाओं में किसी समुद्र के किनारे या पहाड़ की चोटी पर चलते हैं। वहां से हम महसूस करेगें कि हमारे सामने सूर्य प्रकाश की किरण है उनकी लालिमा हमारे शरीर पर पड़ रही है। हाथों को फैला कर हम उनसे प्रार्थना करेंगे हे सूर्य भगवान आपके अंदर जो तेज किरनें हैं जो तेज प्रकाश है उसमें से कुछ अंश हमें देकर हमें भी आपकी तरह तेजस्वी व प्रकाश वान बनाए। अब धीरे-धीरे अपने हाथों को नमस्कार मुद्रा में लाएंगे। दोनों हाथों की हथेलियां को आपस में मिलाकर नमस्कार मुद्रा में हृदय कमल की पास रखेंगे।
- ऊर्ध्व नमस्कारासन – अब हाथों को धीरे-धीरे नासिक से स्पर्श करते हुए सिर के ऊपर की तरफ ले जाएंगे। हाथों को पूरा ऊपर की तरफ तान दे हमारे हाथ हमारे कानों को स्पर्श करते रहें। इस आसन को हम ऊर्ध्व नमस्कार आसन कहते हैं। अंगूठे को आपस में लॉक नहीं करना है।
- उत्तानासन / पाद हस्तासन – उर्ध्व नमस्काआसन से हम उत्तानासन के लिए धीरे-धीरे हिप्स जॉइंट से आगे की ओर झुकेंगे। जब हम आगे झुके हमारे हाथ आगे की ओर खींचे हुए रहने चाहिए। अपने हाथों को हम पैरों के पास रखेंगे। हमारी कमर बिल्कुल सीधी रहनी चाहिए। सांस को बाहर निकालते जाना है और ज्यादा से ज्यादा झुकाने की कोशिश करनी है। हमारी कमर बिल्कुल सीधी रहनी चाहिए।
- अश्व संचालन आसान – उत्तान आसान से हम अश्व संचालन में जाने के लिए पहले अपनी दाहिने पैर को पीछे की तरफ लेकर जाना है। हमारा पंजा और घुटना नीचे जमीन पर लगा हुआ रहेगा। हमारे कूल्हों को नीचे की तरफ दबाने की कोशिश करेंगे। इस आसन को हम अश्व संचालन आसन कहते हैं। इसमें हमारी दृष्टि ऊपर की तरफ रहेगी।
- पर्वतासन – अश्व संचालन से पर्वत आसन में जाने के लिए हमारा हम अपनी बाएं पैर को पीछे दाहिने पैर के पास ले जाएंगे। हमारी एड़ियां नीचे जमीन पर लगी रहेगी। कमर से ऊपर वाले भाग का भार हाथों की तरफ और एड़ियां जमीन पर लगाने का प्रयास करेंगे। इस आसन में हम श्वास को बाहर निकलेंगे ज्यादा ध्यान देंगे।
- भुजंगासन – पांचवा आसान है भुजंगासन। पर्वत आसान से बिना कुहनियो को मुड़े हम धीरे-धीरे कमर को नीचे की तरफ लाएँगे। हमारी छाती उठी हुई रहेगी। नितंबों को नीचे झुकाते हुए अपनी छाती को ज्यादा से ज्यादा फुलाएंगे। चेहरे पर किसी प्रकार का तनाव नहीं रखेंगे मुस्कुराते हुए करेंगे। इसमें हम स्वांस को अंदर लेने में ज्यादा फोकस करेंगे एडी पंजे मिले रहेंगे।
- अष्टांग नमस्कार – भुजंगासन से अष्टांग नमस्कार में जाने के लिए सबसे पहले अपने पंजों को जमीन पर लगा दें उसके बाद दोनों घुटनों को फिर धीरे से अपनी छाती को जमीन पर लगाना है अंत में थुड़ी को गले पर लगाकर मस्तक को जमीन पर लगाएंगे लेकिन नाभि और नाक जमीन को स्पर्श न करें। हमारे शरीर के आठ अंग इसमें जमीन पर लगने चाहिए दो हमारे पैरों के पंजे, दो हमारे घुटने, दो हमारे हाथ, छाती और हमारा माथा। यह सूर्य नमस्कार का अंतिम चरण है इसके बाद हम आसनों का पुनरा वर्तन करेंगे जैसे हम गए थे उसी प्रकार वापस आएंगे
- भुजंगासन – अष्टांग नमस्कार से धीरे-धीरे भुजंगासन आसन में आएंगे जैसे हम आसन में गए थे उसी प्रकार पहले का ललाट नाक थुड़ी गला और छाती को उठाते हुए भुजंगासन में आएंगे और हमारे छाती को फुलाएंगे। नितंबों को संकुचित करेंगे। कंधों को रोल करेंगे और गर्दन को रिलैक्स रखेंगे।
- पर्वतासन – भुजंगासन से वापस पर्वतासन में आएंगे। पर्वतासन के लिए हम अपने नितंबों को ऊपर छत की तरफ तानेंगे। कमर से ऊपर वाले भाग का भार हाथों की तरफ और एड़ी को जमीन से लगाने का प्रयास करेंगे। छाती से ऊपर के हिस्से को हम नीचे खींचने का प्रयास करेंगे और कमर के निचले हिस्से को हम ऊपर की तरफ खींचने का प्रयास करेंगे।
- अश्व संचालन – पर्वतासन के बाद हम अश्वसंचालन आसन में जाने के लिए बाय पैर को हाथों के बीच में लाकर रखेंगे। नितंब को नीचे की तरफ दबाने का प्रयास करें। छाती को फुलाने का प्रयास करेंगे और हमारी दृष्टि ऊपर की तरफ रहेगी।
- उत्तानासन / पाद हस्तासन – अश्व संचालन से हम उत्तानासन लिए अपने दाहिने पैर को उठाकर हाथों के बीच में बाएं पैर के पास लाकर रख देंगे। अपनी क्षमता के अनुसार हम स्वांस को बाहर निकलते हुए आगे झुकने का प्रयास करेंगे।
- ऊर्ध्व नमस्कार आसन – उत्तानासन से हम ऊर्ध्वनमस्कार आसन के लिए दोनों हाथों को नमस्कार मुद्रा में लाते हुए हाथों को खींचते हुए ऊपर की तरफ धीरे-धीरे श्वास भरते हुए उठाएंगे। ध्यान रखें हमारे हाथ हमारे कानों से लगे हुए होने चाहिए। हमारे चेहरे पर मुस्कुराहट के भाव होने चाहिए। जितना हम हाथों को ऊपर तान सकते हैं हमें तानना है।
- नमस्कार आसन -उत्तानासन से हम धीरे-धीरे नमस्कार आसन के लिए हाथों को नीचे लाना है। हमारे हाथ छाती के सामने आ जाएंगे नमस्कार मुद्रा में।
इसी प्रकार जब हम दो बार दोहराते हैं तो हमारा एक सूर्य नमस्कार पूरा होता है। मतलब पहले दाहिने पैर पीछे जाएगा अश्व संचालन के लिए और दूसरी बार में बाया पैर पीछे जाएगा इस प्रकार से सूर्य नमस्कार का एक चक्र पूरा होगा नमस्कार का राउंड पूरा होने के बाद सूर्य की किरणों और लालिमा को अपने तन और मन में महसूस करते हुए हम शवासन में लेट जाएंगे।
शवासन में हमारे पैरों के बीच में एक से डेढ़ फीट का फैसला होना चाहिए। हमारे एड़िया अंदर की तरफ पंजे बाहर की तरफ होने चाहिए। हाथ हमारे बगल में हथेलियां ऊपर की तरफ आधी खुली हुई होनी चाहिए। हमारा पूरा शरीर विश्राम की अवस्था में होना चाहिए। डेढ़ से 2 मिनट तक इसी अवस्था में रहने पर अपने शरीर में विश्राम महसूस होता है। अब धीरे से बगल से करवट लेते हुए बैठ जाए।
ध्यान रखने योग्य बातें:
- जब जब हम हाथों को नमस्कार मुद्रा से ऊर्ध्व नमस्कार की तरफ ले जाते हैं तो हाथों की उंगलियों को मोड़ना नहीं है और उंगलियां हमारी नासिक को स्पर्श करते हुए ऊपर की तरफ जाएं।
- जब हम उत्तानासन में जाएं तो हमें नितंबों से मुड़ते हुए नीचे जाना चाहिए। हमारी कमर इसमें सीधी रहनी चाहिए। जब हम पर्वत आसन करते हैं तो हमारा घुटना कभी भी हमारे पंजे से आगे नहीं जाना चाहिए। जब हम पर्वत आसान करते हैं तो हमारा घुटना नहीं मुड़ना चाहिए। भुजंगासन में हमारा पंजा सीधा रहना चाहिए और छाती फूली हुई रहनी चाहिए। अष्टांग नमस्कार में हमारे नाभि और नाक जमीन को स्पर्श न करें।
- जिनको चक्कर आते हैं, जिनका हाई ब्लड प्रेशर है, जिनकी कमर में दर्द है, जिनके घुटनों में दर्द है और गर्दन में दर्द है उनको सूर्य नमस्कार नहीं करना चाहिए।
- सूर्य नमस्कार को ज्यादा करना आवश्यक नहीं है लेकिन सही ढंग से करना आवश्यक है। अगर हम सूर्य नमस्कार को सही ढंग से करते हैं तो हमें 10 से 12 मिनट लगते हैं। प्रत्येक आसन में कम से कम 15 से 20 सेकंड रुकना चाहिए तभी जाकर उसका बेहतर फायदा हमें मिलता है।
- सूर्य नमस्कार के क्रम में एक, तीन, पाँच, सात, नौ, ग्यारह में श्वास लेने का प्रयास करना चाहिए और दो, चार, छः, आठ, दस, बारह में श्वास निकालने में ज्यादा ध्यान देना चाहिए।
सूर्य नमस्कार के लाभ:
- सूर्य नमस्कार से सिर के चोटी से लेकर पैरों के पंजे तक सारे शरीर का व्यायाम हो जाता है जैसे हृदय, यकृत, आँत, पेट, छाती, गला, पैर इत्यादि
- शरीर के सभी अंगो के लिए बहुत ही लाभदायक हैं।
- सूर्य नमस्कार सिर से लेकर पैर तक शरीर के सभी अंगो को बहुत लाभान्वित करता है
- सूर्य नमस्कार के नियमित अभ्यास से शरीर, मन और आत्मा का विकास होता हैं।
- पृथ्वी पर सूर्य के बिना जीवन संभव नहीं है इसीलिए यहां हमारे जीवन का बहुत ही विशेष अंग है इसलिए हम इन्हें भगवान कहते हैं।
- सूर्य नमस्कार के शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक और मनोवैज्ञानिक कई लाभ है
- हमारे शरीर की मांसपेशियां मजबूत और लचीली होती हैं
अगर सही तरीके से करें तो सूर्य नमस्कार हमारे शरीर की रोम रोम को आनंद से भर देता है।
सावधानियां:
- माहवारी (मेंस्ट्रुअल साइकिल) के दौरान नहीं करना चाहिए
- घुटनों में और कमर में ज्यादा दर्द हो तो भी नहीं करना चाहिए
- हृदय से संबंधित समस्या वाली लोगों को इसका अभ्यास नहीं करना चाहिए
- गर्भावस्था के दौरान इसे नहीं करना चाहिए
- जल्दी-जल्दी हड़बड़ी में नहीं करना चाहिए
आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद। आप सभी को हमारा मुस्कुराता हुआ नमस्कार।
अधिक जानकारी के लिए : www.dhakaram.com
योगाचार्य ढाका राम
संस्थापक, योगा पीस संस्थान