Yogacharya Dhakaram, a beacon of yogic wisdom and well-being, invites you to explore the transformative power of yoga, nurturing body, mind, and spirit. His compassionate approach and holistic teachings guide you on a journey towards health and inner peace.
आप सभी का हमारे विशेष कार्यक्रम “एक कदम स्वास्थ्य से आनंद की ओर” में हार्दिक स्वागत है। आशा है कि आप सभी मस्त और आनंदित होंगे। आज हम “एक पाद वृत्ताकार क्रिया” के बारे में जानेंगे। यह अभ्यास शरीर को लचीला बनाने और स्वास्थ्य लाभ देने में मदद करता है।
एक पाद वृत्ताकार क्रिया करने की विधि
सबसे पहले पीठ के बल लेट जाएं।
अपने कोहनियों के ऊपर शरीर का भार रखें और छाती को ऊपर उठाएं।
पैर जमीन पर सीधे रखें और गर्दन विश्राम की अवस्था में रहे।
दोनों कोहनियों को एक-दूसरे के पास रखें ताकि छाती अच्छी तरह खुल जाए।
दाएं पैर को ऊपर उठाएं और धीरे-धीरे दक्षिणावृत (घड़ी की दिशा में) बड़ा गोला बनाएं। इसे 4 से 6 बार दोहराएं।
दाएं पैर को नीचे रखकर, बाएं पैर से भी यही प्रक्रिया दोहराएं।
अब दाएं पैर को ऊपर उठाएं और वामावृत्त (घड़ी की विपरीत दिशा में) बड़ा गोला बनाएं। इसे 4 से 6 बार दोहराएं।
इसी प्रकार बाएं पैर से भी वामावृत्त क्रिया करें।
सभी क्रियाएं पूरी करने के बाद विश्राम करें। फिर बगल की तरफ करवट लेकर धीरे-धीरे बैठ जाएं।
एक गोला बनाने में कम से कम 15-20 सेकंड का समय लें।
विशेष ध्यान दें:
जिन्हें कंधों या कमर में अधिक दर्द हो, वे यह क्रिया लेटकर भी कर सकते हैं।
लेटकर करने पर हाथों को कमर के पास रखना चाहिए।
एक पाद वृत्ताकार क्रिया के लाभ
जांघों और नितंबों की चर्बी कम करता है।
पाचन तंत्र को दुरुस्त करता है।
मांसपेशियों को लचीला बनाता है।
कंधों और गर्दन की मांसपेशियों के लिए फायदेमंद है।
सावधानियां
इस क्रिया को लेटकर न करें, बल्कि कोहनियों के बल करें।
दक्षिणावृत और वामावृत्त घुमाव बराबर संख्या में करें।
पैर गोलाकार घुमाते समय घुटनों को सीधा और खींचकर रखें।
दोनों पैरों से समान संख्या में दक्षिणावृत और वामावृत्त घुमाव करना आवश्यक है।
आप सभी का बहुत-बहुत आभार एवं धन्यवाद! स्वस्थ रहें, मस्त रहें और आनंदित रहें। अपने जीवन को खूबसूरत बनाने के लिए रोज़ कम से कम 1 से 1.5 घंटे योग का अभ्यास अवश्य करें।
आप सभी को हमारा मुस्कुराता हुआ नमस्कार! “एक कदम स्वास्थ्य से आनंद की ओर” कार्यक्रम में आपका स्वागत है। आज हम द्विपाद वृत्ताकार क्रिया के बारे में जानेंगे, जो हमारे पेट और कमर पर जमी चर्बी को पिघलाने में मदद करती है।
द्विपाद वृत्ताकार क्रिया कैसे करें
सबसे पहले, पीठ के बल लेट जाएं।
दोनों कोहनियों के बल अपने शरीर के ऊपरी हिस्से को उठाएं।
छाती को तानकर रखें।
आपका कंधा और कोहनी दोनों 90 डिग्री के कोण पर होने चाहिए।
गर्दन में किसी प्रकार का तनाव न हो।
अब दोनों पैरों को धीरे-धीरे उठाते हुए दाहिनी तरफ से बड़ा गोला बनाते हुए दक्षिणावर्त (Clockwise) घुमाएं।
जब आप थक जाएं, तो शवासन में विश्राम करें। पूरे शरीर को ढीला छोड़ दें।
अब धीरे से कोहनियों के बल आएं और दोनों पैरों को धीरे-धीरे उठाते हुए बाईं तरफ से बड़ा गोला बनाते हुए वामावर्त (Anti-clockwise) घुमाएं।
जितना आपने दक्षिणावर्त किया था, उतना ही वामावर्त करें।
एक बार गोला बनाने में कम से कम 15 से 20 सेकंड लगना चाहिए
जब आप थक जाएं और दोनों तरफ बराबर गोले बना लें, तो विश्राम करें। शवासन में लेट जाएं।
पहले और बाद की अवस्थाओं के अंतर का अवलोकन करें। शवासन में पेट और कमर की मांसपेशियों को ढीला छोड़ दें।
महत्वपूर्ण बातें
कोहनियों के बल क्रिया करने से इसका प्रभाव पेट पर पड़ता है, न कि कमर पर।
एक सामान्य व्यक्ति को यह क्रिया कम से कम 4-6 बार दक्षिणावर्त और 4-6 बार वामावर्त करनी चाहिए, यानी लगभग 3 मिनट तक।
वजन कम करने वाले लोगों को 2 मिनट दक्षिणावर्त और 2 मिनट वामावर्त करना चाहिए।
सावधानियां
कंधा और कोहनी 90 डिग्री के कोण पर होने चाहिए।
कोहनियों को पास-पास रखने का प्रयास करें।
हथेलियों को जमीन पर टिका कर रखें।
गर्दन पर खिंचाव न हो।
छाती को हमेशा फुलाकर रखें।
घुटने सीधे रहने चाहिए।
गर्दन में दर्द, सूजन या अकड़न होने पर लेटकर करें।
जल्दबाजी न करें, शांत और सहज भाव से करें।
गर्भावस्था या मासिक धर्म के दौरान न करें।
पेट में अल्सर या कमर में दर्द होने पर एक पैर से करें।
लाभ
पेट और कमर की चर्बी पिघलती है।
पाचन तंत्र मजबूत होता है।
पेट की मांसपेशियों की मालिश होती है।
नितंब की चर्बी कम होती है।
जांघों की मांसपेशियां मजबूत होती हैं।
आप सभी का बहुत-बहुत आभार। आप सभी खुश रहें, मस्त रहें और आनंदित रहें।
आप सभी को हमारा मुस्कुराता हुआ नमस्कार। ‘एक कदम स्वास्थ्य से आनंद की ओर’ कार्यक्रम में आप सभी का स्वागत है। पिछली बार हमने रबर नेति के बारे में सीखा था। आज हम घृत नेति क्रिया के लाभ और विधि पर चर्चा करेंगे।
जब हमने जल नेति क्रिया और सूत्र नेति क्रिया की थी, तब हमने जाना कि इससे नासिका में शुष्कता उत्पन्न होती है। इसलिए जल नेति और सूत्र नेति के बाद घृत नेति करना आवश्यक होता है। घृत नेति से हमारी नासिका में चिकनाहट बनी रहती है और इससे श्वसन तंत्र को कई लाभ होते हैं।
घृत नेति क्या है?
घृत का अर्थ होता है घी। इस क्रिया में हम गाय का घी या बादाम का तेल नासिका छिद्रों में डालते हैं।
घी हमेशा देसीगाय का ही होना चाहिए।
जिन्हें सिर दर्द या माइग्रेन रहता है, वे रात्रि में बादाम का तेल या घी नासिका छिद्रों में डालकर सो सकते हैं।
इससे नासिका छिद्र खुलते हैं और शरीर में ऑक्सीजन की मात्रा अधिक जाती है।
घृत नेति करने की विधि
शवासन में लेट जाएं।
गर्दन के नीचे तकिया या चादर को गोल करके रखें, जिससे नासिका छिद्र ऊपर की ओर हो जाए।
नासिका छिद्र में 2 से 3 बूंद घी डालें।
2 बूंद घी नासिका के बाहर डालें, जिससे साइनस बिंदुओं की मालिश कर सकें।
श्वास को थोड़ा तेजी से लें, ताकि घी का प्रवाह नासिका द्वार से गले तक हो सके।
हल्के हाथों से नासिका के आसपास के साइनस क्षेत्र में मालिश करें:
नासिका छिद्र के बाहरी साइनस बिंदु पर 10-15 बार मालिश करें।
नासिका की हड्डी के दोनों ओर मालिश करें।
आंखों के अंदरूनी किनारों पर मालिश करें।
गालों की हड्डी पर स्थित साइनस क्षेत्र पर मालिश करें।
भौहों के ऊपर हल्की मालिश करें।
मालिश के बाद 2-3 मिनट विश्राम करें।
घृत नेति के लाभ
✅ नासिका छिद्रों को खोलने में सहायक।
✅ ENT (कान, नाक, गला) के स्वास्थ्य के लिए लाभदायक।
सभी को हमारा मुस्कुराता हुआ नमस्कार! प्यारे दोस्तों, एक कदम स्वास्थ्य से आनंद की ओर कार्यक्रम में आप सभी का हार्दिक स्वागत है। पिछली बार हमने जल नेति क्रिया पर चर्चा की थी। आज हम बात करेंगे नेत्र शक्ति विकासक क्रिया के बारे में, जो आंखों की शक्ति बढ़ाने के लिए अत्यंत लाभकारी है।
क्रिया कैसे करें:
शुरुआती स्थिति: सीधे बैठें। दाहिना हाथ ऊपर की ओर और बायां हाथ नीचे की ओर रखें।
दृष्टि केंद्रित करें: जब “एक” बोलें तो दाहिनी हाथ की अंगूठी को देखें।
नीचे देखें: जब “दो” बोलें तो नीचे की ओर देखें।
दोहराएं: इस क्रिया को 15 सेकंड तक दोहराएं।
विराम: 15 सेकंड के बाद आधा मिनट तक आंखें बंद करके आराम करें।
पोजीशन बदलें: अब बायां हाथ ऊपर की ओर और दाहिना हाथ नीचे की ओर रखें।
दोहराएं: इस क्रिया को भी 15 सेकंड तक दोहराएं।
विराम: फिर से आधा मिनट तक आंखें बंद करके आराम करें।
पूरा चक्र: इस पूरे चक्र को छह बार दोहराएं।
लाभ:
आंखों की रोशनी बढ़ाता है।
आंखों में ताकत बढ़ाता है।
आंखों की थकान दूर करता है।
नोट:
इस क्रिया को रोजाना करने से अधिक लाभ मिलता है।
इस क्रिया को कहीं भी किया जा सकता है।
आरामदायक स्थिति में बैठकर इस क्रिया को करें।
इस क्रिया को नियमित रूप से करने से आपकी आंखें स्वस्थ रहेंगी और आप इस खूबसूरत दुनिया को खूबसूरत आंखों से देख सकेंगे।
इसी के साथ आप सभी को बहुत-बहुत धन्यवाद। आप सभी का दिन शुभ रहे, मंगल में रहें और आनंदित रहे।
हरि ओम आप सभी को हमारा मुस्कुराता हुआ नमन। आप सब कैसे हैं? बहुत अच्छे होंगे, एकदम स्वस्थ और आनंद से भरे हुए होंगे। इस कार्यक्रम में आपका मुस्कुराता हुआ स्वागत है, प्यारे मित्रों।
आज हम बात करेंगे उन पांच आसनोंपर जो हमें नियमित करना ही चाहिए। हमें ऐसा लगता है कि ये पांच आसन हमारे पूरे शरीर को, सिर से पैर तक, स्वस्थ रखने के लिए पर्याप्त हैं।
आपको समझना होगा कि ये आसन क्यों महत्वपूर्ण हैं। जब तक हम उस विधि को नहीं समझेंगे, तब तक हम उसको दिल से नहीं करेंगे। मैं कहता हूं कि इन आसनों के साथ हम सिर्फ योग नहीं कर रहे हैं, बल्कि अपने जीवन को बदल रहे हैं।
आपको मालूम है कि जब हम योगासन करते हैं तो हमारे लिए क्या मायना रखता है? दो आसन हमारे पैरों के लिए हैं, और दो आसन हमारे स्पाइन के लिए हैं।
हमने पहले एक वीडियो बनाया था कि पैदल चलना अपने आप में पूर्ण व्यायाम नहीं है। उस समय हमने आपसे चर्चा की थी कि पांच आसनों का क्या सीक्वेंस होना चाहिए। उसी चीजों को ध्यान में रखते हुए आज हम आपको बता रहे हैं कि पांच आसन क्या हैं।
ताड़ासन: इससे हमारा स्पाइन में स्ट्रेच आता है। ताड़ासन के फायदे आप बहुत अच्छी तरह से जानते हैं। हमारे YouTube चैनल पर ताड़ासन के बारे में एक पूरा वीडियो है।
कोणासन: इससे हमारा स्पाइन दाई और बाई तरफ मोड़ जाता है। इस आसन के फायदे बहुत हैं।
कटि चक्रासन: यह एक ट्विस्टिंग पोज है।
अर्ध चक्रासन: यह एक बैक बेंडिंग पोज है।
उत्तानासन: यह एक फ्रंट बेंडिंग पोज है।
इन आसनों को एक बार हम साथ में करके देखेंगे। उसके बाद आपको इन आसनों के बारे में बहुत गहराई से जानना है। हम आपको बताएंगे कि इन आसनों को कैसे करना चाहिए और इनको करने के लिए कितना समय चाहिए।
इन पांच आसनों के माध्यम से आप अपने शरीर को शुद्धिकरण कर सकते हैं और अपने स्पाइन के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है।
अब, हम ताड़ासन करेंगे।
हम समस्थिति में खड़े हो जाएंगे अपने अपने स्थान पर।
ताड़ासन के लिए पैरों को मिलाएंगे, थोड़ा सा पीछे से खुला हुआ रखेंगे, हथेलियां जांघों के ऊपर रखेंगे।
धीरे-धीरे अपने हाथों को बगल से उठाएंगे और रोल ओवर शोल्डर करेंगे। दाहिना हाथ दाहिनी तरफ खींचेंगे, बाया हाथ बाई तरफ खींचेंगे। अपनी क्षमता के अनुसार अधिकतम स्ट्रेच करें।
फिर धीरे-धीरे अपने हाथों को ऊपर ले जाएंगे, हथेलियां आपस में मिलाएंगे, और छत की तरफ हाथों को पूरा ऊपर तानेंगे।
वहीं स्ट्रेचिंग करते हुए अपने बटक्स को टाइट करेंगे, घुटने की मांसपेशियों को टाइट करेंगे, जांघों को टाइट करेंगे, पेट की मांसपेशियों को भी टाइट करेंगे।
छाती को फुला दें और स्पाइन को स्ट्रेच करें।
यह आसन हमारे रीढ़ की हड्डी, हाथों, पैरों, फेफड़ों और हृदय के लिए बहुत फायदेमंद है। आप इस आसन को नियमित रूप से अभ्यास कर सकते हैं।
अब, हम कोणासन करेंगे।
खड़े हो जाएं और अपने पैरों को कंधे की चौड़ाई के बराबर रखें।
अपने हाथों को ऊपर उठाएं और उन्हें अपने सिर के ऊपर से जोड़ें।
अपने शरीर को दाईं ओर झुकाएं, अपने दाहिने हाथ को अपने दाहिने पैर के ऊपर रखें और बाएं हाथ को ऊपर उठाएं।
अपनी दाहिनी तरफ स्ट्रेच करें और फिर बाएं तरफ भी यही प्रक्रिया दोहराएं।
अब, हम कटि चक्रासन करेंगे।
कटि चक्रासन के लिए पैरों में कंधे जितना फासला रखेंगे, हाथों को बगल से उठाएंगे, और फिर अपने शरीर को दाहिनी तरफ ले जाएंगे। दाहिने हाथ को पीछे से लाकर अपने नाभी को छूने की कोशिश करेंगे।
बाया हाथ को राइट शोल्डर पर रखेंगे और ज्यादा से ज्यादा ट्विस्ट करेंगे।
फिर रिलैक्स करेंगे और इसी तरह से बाएं तरफ भी ट्विस्ट करेंगे।
अब, हम अर्ध चक्रासन करेंगे।
अर्ध चक्रासन के लिए अपने हाथों को कमर पर रखें
अब अपनी छाती को फुलाइए तथा धीरे-धीरे पीछे की ओर जाइए
अपनी क्षमता के अनुसार अपने शरीर को अधिक से अधिक पीछे की ओर मोड़िए
अंत में धीरे-धीरे वापस आइए तथा शरीर को सीधा कर लीजिए
अब, हम उत्तानासन करेंगे।
खड़े हो जाएं और अपने पैरों को एक साथ रखें।
अपने हाथों को ऊपर उठाएं और फिर धीरे-धीरे आगे की ओर झुकते जाएं।
अपने हाथों से अपने टखनों को पकड़ने की कोशिश करें।
ये पांच आसन आपके जीवन में बहुत उपयोगी हैं। ये आसन आपके मस्तिष्क के लिए भी बहुत अच्छे हैं।
अब आप इन आसनों को नियमित रूप से अभ्यास करें और अपने जीवन को बदलें।
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आप सभी मित्रों को हमारा मुस्कुराता हुआ नमस्कार। एक कदम स्वास्थ्य से आनंद की ओर कार्यक्रम में आप सभी का स्वागत है।
आज हम सूर्य नमस्कार के बारे में बात करेंगे। सूर्य नमस्कार के बारे में लगभग हर कोई जानते हैं जब हम सूर्य नमस्कार की बात करते हैं तो हमारे मन में क्या भाव आते हैं जैसे कोई नदी के किनारे या कोई सूर्य भगवान को जल चढ़ा रहे हो आपने देखा भी होगा जब पूजा प्रार्थना होती है तो सूर्य भगवान को जल या अर्ह मतलब दही भी चढ़ाया जाता है है। सूर्य नमस्कार के बारे में सोचते हैं हमारे मन में सूर्य की लालिमा प्रकाश उनकी किरणें आती है। सूर्य नमस्कार पुराने समय से चला आ रहा है आप देखेंगे कि भगवान श्री राम के समय से भी सूर्य नमस्कार का प्रचलन है। रामायण में भी सूर्य नमस्कार के बारे में चर्चा की गई है। हम सूर्य नमस्कार से अपने शरीर और आत्मा का विकास कर सकते हैं। तो चलिए सूर्य नमस्कार साधना के लिए ।
नमस्कार आसन – सूर्य नमस्कार के लिए सबसे पहले हमें अपने एडी पंजों को मिलना है। हाथों को नमस्कार मुद्रा में लेकर आएंगे। हमारे अंगूठे हमारी छाती को छूने चाहिए मतलब हृदय कमल के पास और चेहरे पर मुस्कुराहट । अब हम आंखें बंद करके कल्पनाओं में किसी समुद्र के किनारे या पहाड़ की चोटी पर चलते हैं। वहां से हम महसूस करेगें कि हमारे सामने सूर्य प्रकाश की किरण है उनकी लालिमा हमारे शरीर पर पड़ रही है। हाथों को फैला कर हम उनसे प्रार्थना करेंगे हे सूर्य भगवान आपके अंदर जो तेज किरनें हैं जो तेज प्रकाश है उसमें से कुछ अंश हमें देकर हमें भी आपकी तरह तेजस्वी व प्रकाश वान बनाए। अब धीरे-धीरे अपने हाथों को नमस्कार मुद्रा में लाएंगे। दोनों हाथों की हथेलियां को आपस में मिलाकर नमस्कार मुद्रा में हृदय कमल की पास रखेंगे।
ऊर्ध्व नमस्कारासन – अब हाथों को धीरे-धीरे नासिक से स्पर्श करते हुए सिर के ऊपर की तरफ ले जाएंगे। हाथों को पूरा ऊपर की तरफ तान दे हमारे हाथ हमारे कानों को स्पर्श करते रहें। इस आसन को हम ऊर्ध्व नमस्कार आसन कहते हैं। अंगूठे को आपस में लॉक नहीं करना है।
उत्तानासन / पाद हस्तासन – उर्ध्व नमस्काआसन से हम उत्तानासन के लिए धीरे-धीरे हिप्स जॉइंट से आगे की ओर झुकेंगे। जब हम आगे झुके हमारे हाथ आगे की ओर खींचे हुए रहने चाहिए। अपने हाथों को हम पैरों के पास रखेंगे। हमारी कमर बिल्कुल सीधी रहनी चाहिए। सांस को बाहर निकालते जाना है और ज्यादा से ज्यादा झुकाने की कोशिश करनी है। हमारी कमर बिल्कुल सीधी रहनी चाहिए।
अश्व संचालन आसान – उत्तान आसान से हम अश्व संचालन में जाने के लिए पहले अपनी दाहिने पैर को पीछे की तरफ लेकर जाना है। हमारा पंजा और घुटना नीचे जमीन पर लगा हुआ रहेगा। हमारे कूल्हों को नीचे की तरफ दबाने की कोशिश करेंगे। इस आसन को हम अश्व संचालन आसन कहते हैं। इसमें हमारी दृष्टि ऊपर की तरफ रहेगी।
पर्वतासन – अश्व संचालन से पर्वत आसन में जाने के लिए हमारा हम अपनी बाएं पैर को पीछे दाहिने पैर के पास ले जाएंगे। हमारी एड़ियां नीचे जमीन पर लगी रहेगी। कमर से ऊपर वाले भाग का भार हाथों की तरफ और एड़ियां जमीन पर लगाने का प्रयास करेंगे। इस आसन में हम श्वास को बाहर निकलेंगे ज्यादा ध्यान देंगे।
भुजंगासन – पांचवा आसान है भुजंगासन। पर्वत आसान से बिना कुहनियो को मुड़े हम धीरे-धीरे कमर को नीचे की तरफ लाएँगे। हमारी छाती उठी हुई रहेगी। नितंबों को नीचे झुकाते हुए अपनी छाती को ज्यादा से ज्यादा फुलाएंगे। चेहरे पर किसी प्रकार का तनाव नहीं रखेंगे मुस्कुराते हुए करेंगे। इसमें हम स्वांस को अंदर लेने में ज्यादा फोकस करेंगे एडी पंजे मिले रहेंगे।
अष्टांग नमस्कार – भुजंगासन से अष्टांग नमस्कार में जाने के लिए सबसे पहले अपने पंजों को जमीन पर लगा दें उसके बाद दोनों घुटनों को फिर धीरे से अपनी छाती को जमीन पर लगाना है अंत में थुड़ी को गले पर लगाकर मस्तक को जमीन पर लगाएंगे लेकिन नाभि और नाक जमीन को स्पर्श न करें। हमारे शरीर के आठ अंग इसमें जमीन पर लगने चाहिए दो हमारे पैरों के पंजे, दो हमारे घुटने, दो हमारे हाथ, छाती और हमारा माथा। यह सूर्य नमस्कार का अंतिम चरण है इसके बाद हम आसनों का पुनरा वर्तन करेंगे जैसे हम गए थे उसी प्रकार वापस आएंगे
भुजंगासन – अष्टांग नमस्कार से धीरे-धीरे भुजंगासन आसन में आएंगे जैसे हम आसन में गए थे उसी प्रकार पहले का ललाट नाक थुड़ी गला और छाती को उठाते हुए भुजंगासन में आएंगे और हमारे छाती को फुलाएंगे। नितंबों को संकुचित करेंगे। कंधों को रोल करेंगे और गर्दन को रिलैक्स रखेंगे।
पर्वतासन – भुजंगासन से वापस पर्वतासन में आएंगे। पर्वतासन के लिए हम अपने नितंबों को ऊपर छत की तरफ तानेंगे। कमर से ऊपर वाले भाग का भार हाथों की तरफ और एड़ी को जमीन से लगाने का प्रयास करेंगे। छाती से ऊपर के हिस्से को हम नीचे खींचने का प्रयास करेंगे और कमर के निचले हिस्से को हम ऊपर की तरफ खींचने का प्रयास करेंगे।
अश्व संचालन – पर्वतासन के बाद हम अश्वसंचालन आसन में जाने के लिए बाय पैर को हाथों के बीच में लाकर रखेंगे। नितंब को नीचे की तरफ दबाने का प्रयास करें। छाती को फुलाने का प्रयास करेंगे और हमारी दृष्टि ऊपर की तरफ रहेगी।
उत्तानासन / पाद हस्तासन – अश्व संचालन से हम उत्तानासन लिए अपने दाहिने पैर को उठाकर हाथों के बीच में बाएं पैर के पास लाकर रख देंगे। अपनी क्षमता के अनुसार हम स्वांस को बाहर निकलते हुए आगे झुकने का प्रयास करेंगे।
ऊर्ध्व नमस्कार आसन – उत्तानासन से हम ऊर्ध्वनमस्कार आसन के लिए दोनों हाथों को नमस्कार मुद्रा में लाते हुए हाथों को खींचते हुए ऊपर की तरफ धीरे-धीरे श्वास भरते हुए उठाएंगे। ध्यान रखें हमारे हाथ हमारे कानों से लगे हुए होने चाहिए। हमारे चेहरे पर मुस्कुराहट के भाव होने चाहिए। जितना हम हाथों को ऊपर तान सकते हैं हमें तानना है।
नमस्कार आसन -उत्तानासन से हम धीरे-धीरे नमस्कार आसन के लिए हाथों को नीचे लाना है। हमारे हाथ छाती के सामने आ जाएंगे नमस्कार मुद्रा में।
इसी प्रकार जब हम दो बार दोहराते हैं तो हमारा एक सूर्य नमस्कार पूरा होता है। मतलब पहले दाहिने पैर पीछे जाएगा अश्व संचालन के लिए और दूसरी बार में बाया पैर पीछे जाएगा इस प्रकार से सूर्य नमस्कार का एक चक्र पूरा होगा नमस्कार का राउंड पूरा होने के बाद सूर्य की किरणों और लालिमा को अपने तन और मन में महसूस करते हुए हम शवासन में लेट जाएंगे।
शवासन में हमारे पैरों के बीच में एक से डेढ़ फीट का फैसला होना चाहिए। हमारे एड़िया अंदर की तरफ पंजे बाहर की तरफ होने चाहिए। हाथ हमारे बगल में हथेलियां ऊपर की तरफ आधी खुली हुई होनी चाहिए। हमारा पूरा शरीर विश्राम की अवस्था में होना चाहिए। डेढ़ से 2 मिनट तक इसी अवस्था में रहने पर अपने शरीर में विश्राम महसूस होता है। अब धीरे से बगल से करवट लेते हुए बैठ जाए।
ध्यान रखने योग्य बातें:
जब जब हम हाथों को नमस्कार मुद्रा से ऊर्ध्व नमस्कार की तरफ ले जाते हैं तो हाथों की उंगलियों को मोड़ना नहीं है और उंगलियां हमारी नासिक को स्पर्श करते हुए ऊपर की तरफ जाएं।
जब हम उत्तानासन में जाएं तो हमें नितंबों से मुड़ते हुए नीचे जाना चाहिए। हमारी कमर इसमें सीधी रहनी चाहिए। जब हम पर्वत आसन करते हैं तो हमारा घुटना कभी भी हमारे पंजे से आगे नहीं जाना चाहिए। जब हम पर्वत आसान करते हैं तो हमारा घुटना नहीं मुड़ना चाहिए। भुजंगासन में हमारा पंजा सीधा रहना चाहिए और छाती फूली हुई रहनी चाहिए। अष्टांग नमस्कार में हमारे नाभि और नाक जमीन को स्पर्श न करें।
जिनको चक्कर आते हैं, जिनका हाई ब्लड प्रेशर है, जिनकी कमर में दर्द है, जिनके घुटनों में दर्द है और गर्दन में दर्द है उनको सूर्य नमस्कार नहीं करना चाहिए।
सूर्य नमस्कार को ज्यादा करना आवश्यक नहीं है लेकिन सही ढंग से करना आवश्यक है। अगर हम सूर्य नमस्कार को सही ढंग से करते हैं तो हमें 10 से 12 मिनट लगते हैं। प्रत्येक आसन में कम से कम 15 से 20 सेकंड रुकना चाहिए तभी जाकर उसका बेहतर फायदा हमें मिलता है।
सूर्य नमस्कार के क्रम में एक, तीन, पाँच, सात, नौ, ग्यारह में श्वास लेने का प्रयास करना चाहिए और दो, चार, छः, आठ, दस, बारह में श्वास निकालने में ज्यादा ध्यान देना चाहिए।
सूर्य नमस्कार के लाभ:
सूर्य नमस्कार से सिर के चोटी से लेकर पैरों के पंजे तक सारे शरीर का व्यायाम हो जाता है जैसे हृदय, यकृत, आँत, पेट, छाती, गला, पैर इत्यादि
शरीर के सभी अंगो के लिए बहुत ही लाभदायक हैं।
सूर्य नमस्कार सिर से लेकर पैर तक शरीर के सभी अंगो को बहुत लाभान्वित करता है
सूर्य नमस्कार के नियमित अभ्यास से शरीर, मन और आत्मा का विकास होता हैं।
पृथ्वी पर सूर्य के बिना जीवन संभव नहीं है इसीलिए यहां हमारे जीवन का बहुत ही विशेष अंग है इसलिए हम इन्हें भगवान कहते हैं।
सूर्य नमस्कार के शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक और मनोवैज्ञानिक कई लाभ है
हमारे शरीर की मांसपेशियां मजबूत और लचीली होती हैं
अगर सही तरीके से करें तो सूर्य नमस्कार हमारे शरीर की रोम रोम को आनंद से भर देता है।
सावधानियां:
माहवारी (मेंस्ट्रुअल साइकिल) के दौरान नहीं करना चाहिए
घुटनों में और कमर में ज्यादा दर्द हो तो भी नहीं करना चाहिए
हृदय से संबंधित समस्या वाली लोगों को इसका अभ्यास नहीं करना चाहिए
गर्भावस्था के दौरान इसे नहीं करना चाहिए
जल्दी-जल्दी हड़बड़ी में नहीं करना चाहिए
आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद। आप सभी को हमारा मुस्कुराता हुआ नमस्कार।