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शीर्षासन (भाग 1) – आसनों का राजा

प्यारे मित्रों, आप सभी को हमारा मुस्कुराता हुआ नमस्कार।
“एक कदम स्वास्थ्य से आनंद की ओर” आर्टिकल सीरीज़ में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।

आज हम बात करेंगे शीर्षासन के बारे में।
शीर्षासन को आसनों का राजा कहा जाता है। यह संस्कृत के दो शब्दों — ‘शीर्ष’ (सिर) और ‘आसन’ (मुद्रा) — से मिलकर बना है। शीर्षासन सबसे अधिक लाभ देने वाला आसन माना गया है क्योंकि यह हमारे अंतःस्रावी प्रणाली (Endocrine System) को सक्रिय करता है।


शीर्षासन करते समय सावधानियाँ और तैयारी

यदि आपको शीर्षासन आता है, तो भी इसे किसी को दिखाने के लिए अचानक न करें
यह एक साधना है जिसे पूरे मन और तैयारी के साथ करना चाहिए।

हमारे सिर की त्वचा पैरों की तुलना में अधिक संवेदनशील होती है, इसलिए सुरक्षा और स्थिरता का ध्यान रखना आवश्यक है।


शीर्षासन की विधि

  1. आवश्यक सामग्री:
    एक कंबल या चटाई लें जिसकी लंबाई लगभग 2 फीट, चौड़ाई 2 फीट और ऊँचाई 2 से 3 इंच हो।
  2. हाथों की स्थिति:
    हाथों की उंगलियों को आपस में फंसा लें और कोहनियों को कंधों की चौड़ाई जितना खोलें।
    अब कोहनियाँ और उंगलियाँ मिलाकर त्रिकोण बनाएं।
  3. सिर की स्थिति:
    सिर के सबसे ऊपरी भाग को जमीन पर रखें और हथेलियाँ सिर के उभरे हुए हिस्से पर टिकाएँ।
  4. शरीर की स्थिति:
    कमर सीधी रखें, दोनों घुटनों को मोड़ते हुए धीरे-धीरे पैरों को ऊपर उठाएँ।
    फिर पैरों को सीधा करें और शरीर को संतुलित करें।
    नितंब संकुचित रहें और श्वास सामान्य रखें।
  5. अवधि:
    शुरुआती अभ्यास में 1–2 मिनट पर्याप्त हैं।
    अभ्यास बढ़ने पर 5 मिनट तक शीर्षासन करें।

शीर्षासन के बाद की स्थिति

आसन से बाहर आते समय धीरे-धीरे पैरों को मोड़ें और शशांक आसन में आएँ।
सिर को हाथों पर रखकर कुछ समय विश्राम करें।
इसके बाद शवासन में लेटकर शरीर को पूर्ण आराम दें।

ध्यान रखें कि गर्दन पर अधिक तनाव न पड़े — इसके लिए कंधों को हल्का ऊपर उठाकर रखें।


शीर्षासन के लाभ

  • चेहरे पर स्वाभाविक चमक आती है।
  • बालों का झड़ना रुकता है और वे घने व काले बनते हैं।
  • पाचन तंत्र मजबूत होता है।
  • अंतःस्रावी ग्रंथियाँ सक्रिय होकर हार्मोन संतुलन बनाती हैं।
  • संपूर्ण शरीर पर सकारात्मक प्रभाव डालता है।

शीर्षासन करते समय सावधानियाँ

  • कभी भी जल्दबाजी या झटके से पैरों को ऊपर न उठाएँ।
  • गर्दन पर अधिक दबाव न डालें।
  • अभ्यास हमेशा खाली पेट और योग्य प्रशिक्षक की देखरेख में करें।

तो प्यारे मित्रों, आप सभी को सत्-सत् नमन।
अगले भाग में हम शीर्षासन से जुड़े और गहराईपूर्ण रहस्यों को जानेंगे।

योगाचार्य ढाकाराम
संस्थापक – योगापीस संस्थान

पेट की बीमारियों का समाधान – भाग 1

प्यारे मित्रों,

आप सभी को हमारा मुस्कुराता हुआ नमस्कार।
“एक कदम स्वास्थ्य से आनंद की ओर” कार्यक्रम में आप सभी का स्वागत है।

प्यारे मित्रों, आप कैसे हैं?
आप सभी को बोलना है — आप मज़े में हैं!
आप सभी को इस जगत में आनंद फैलाना है।
हमेशा आनंदित रहना है, क्योंकि आप जिंदा हैं।

कितने ही लोग रात को सोते हैं और सुबह उठ भी नहीं पाते —
इसलिए आप हमेशा आनंदित रहें कि भगवान ने आपको किसी विशेष कार्य के लिए बनाया है।


आज का विषय – वज्रासन

आज हम बात करेंगे वज्रासन के बारे में —
इसकी सही विधि, सावधानियाँ और विशेष सुझाव जानेंगे।

हमारे योग ग्रंथों के अनुसार वज्रासन एकमात्र ऐसा आसन है जिसे खाना खाने के बाद भी किया जा सकता है।
वज्रासन करने से पाचन तंत्र मजबूत होता है,
जिससे अपच, गैस जैसी समस्याओं से राहत मिलती है।

हमारे अनुसार आप भोजन के बाद ऐसे आसन या क्रियाएँ कर सकते हैं जिनसे पेट पर कोई दबाव न पड़े।
परंतु ग्रंथों की दृष्टि से देखें तो —
भोजन के बाद वज्रासन सबसे उपयुक्त आसन है।


क्यों आवश्यक है वज्रासन?

हमारे शरीर में ज्यादातर बीमारियाँ खाना सही से न पचने के कारण होती हैं।
यदि भोजन ठीक से पचता है, तो शरीर स्वस्थ रहता है और रोग पास नहीं आते।

वज्रासन पाचन को सुचारू बनाता है और
इसलिए इसे पेट की बीमारियों का रामबाण उपाय कहा जा सकता है।


वज्रासन करने की विधि

  1. सबसे पहले दोनों पैरों को सामने फैलाकर दंडासन में बैठें।
  2. दायाँ पैर मोड़कर दाहिने नितंब के नीचे रखें।
  3. बायाँ पैर मोड़कर बाएँ नितंब के नीचे रखें।
  4. कमर को सीधा रखें।
  5. दोनों एड़ियों को मिलाएँ।
    • यदि ऐसा संभव न हो तो एड़ियों को बाहर की ओर गिरा दें और
      दोनों पैरों के अंगूठे को मिलाएँ।
  6. बैठते समय पिंडलियों की त्वचा को बाहर की ओर निकाल लें।
  7. दोनों हथेलियाँ अपनी पिंडलियों पर रखें।
  8. आँखें बंद करें और ध्यान की अवस्था में बैठें।

आप चाहें तो वज्रासन में बैठकर
टीवी देख सकते हैं या सामान्य कार्य कर सकते हैं —
लेकिन सबसे अच्छा है कि
आप भोजन के बाद वज्रासन में ध्यान करें।


वज्रासन के लाभ

  • पाचन तंत्र को मजबूत बनाता है।
  • अपच और गैस की समस्या से राहत देता है।
  • पेट और पाचन क्रिया से संबंधित सभी अंगों को सक्रिय करता है।
  • एंजाइम और हार्मोन के स्राव में सहायता करता है।
  • हड्डियों को लचीला और स्वस्थ बनाता है।

सावधानियाँ

  • जिनके घुटनों में दर्द है, वे यह आसन सीधे रूप में न करें।
  • बैठते समय कमर को सीधा रखें।

अगली बार हम आपको बताएंगे —
जिन्हें घुटनों में दर्द है, वे प्रॉप्स की मदद से वज्रासन कैसे कर सकते हैं।


समापन

तो प्यारे मित्रों,
आप सभी को नमन 🙏

योगाचार्य ढाकाराम
संस्थापक – योगापीस संस्थान

एक कदम स्वास्थ्य से आनंद की ओर : पर्वतासन

हरि ओम 🙏 आप सभी को हमारा मुस्कुराता हुआ नमस्कार।

एक कदम स्वास्थ्य से आनंद की ओर कार्यक्रम में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।

आजकल हमारे ब्लॉग सूर्य नमस्कार की श्रृंखला पर चल रहे हैं। पिछले ब्लॉग में हमने अश्व संचालन आसन के बारे में जाना था। आज हम बात करेंगे पर्वतासन (Mountain Pose) के बारे में।

शरीर की स्थिति पर्वत के समान होने के कारण इस आसन को पर्वतासन कहते हैं। यह हमारे पूरे शरीर के लिए अत्यंत लाभकारी है। जब हम इसे करते हैं, तो यह शरीर में खिंचाव लाता है, शक्ति प्रदान करता है और मन को शांत करता है।


अश्व संचालन आसन से पर्वतासन में कैसे आएं

  • अश्व संचालन आसन में हमारा दायाँ पैर पीछे रहता है।
  • पर्वतासन में आने के लिए कमर को ऊपर उठाते हुए धीरे से बायाँ पैर भी पीछे ले जाएँ।
  • बाएँ पैर की एड़ी को दाएँ पैर की एड़ी से मिलाएँ।
  • नितंबों और लोअर बैक को ऊपर की ओर खींचकर रखें।
  • सिर हमारे हाथों के बीच में रहेगा।
  • दोनों पैर सीधे रहेंगे और एड़ियाँ जमीन से लगी रहेंगी।
  • नितंब ऊपर आकाश की ओर खिंचे रहेंगे।

पर्वतासन करते समय ध्यान रखें

  • घुटने सीधे रहेंगे।
  • एड़ियों को जमीन से लगाने का प्रयास करेंगे।
  • शरीर का संतुलन बनाते हुए कम से कम 20 सेकंड इसी अवस्था में रुकने का प्रयास करें।

पर्वतासन के लाभ

  • कंधों को मजबूत बनाता है।
  • पैरों के लिए अत्यंत लाभकारी है।
  • सिर की ओर रक्त संचार बढ़ने से चेहरे पर निखार आता है।
  • दिमाग सक्रिय और दुरुस्त रहता है।
  • मेरुदंड को लचीला बनाता है।

विशेष टिप्पणी

जब हम पर्वतासन करते हैं तो चेहरा नीचे की ओर होता है। इससे रक्त का प्रवाह चेहरे की ओर बढ़ता है और त्वचा में ताजगी एवं चमक आती है।

अगले ब्लॉग की झलक

प्यारे मित्रों! अगले ब्लॉग में हम भुजंगासन के बारे में बात करेंगे। आप सब हमारे साथ इसी प्रकार जुड़े रहें और अपने स्वास्थ्य का लाभ उठाते रहें।

तो प्यारे मित्रों, आप सभी को सत-सत नमन।
आप सभी खुश रहें, मस्त रहें और आनंदित रहें।

योगाचार्य ढाकाराम
संस्थापक – योगापीस संस्थान

हनुमानजी जैसी छाती फुलाकर बैठने का योगिक और वैज्ञानिक रहस्य

हरि ओम्, प्यारे मित्रों!
आज हम बात करेंगे उस विशेष मुद्रा की, जिसे हम अक्सर “हनुमानजी जैसी छाती फुलाकर बैठना” कहते हैं।

हनुमानजी का स्वरूप सदैव संयम, ऊर्जा और शारीरिक व मानसिक शक्ति का प्रतीक माना गया है। उनकी छाती विशाल, स्थिर और खुली होती है – जिसे देखकर सहज ही आत्मविश्वास, शक्ति, प्राणशक्ति और धैर्य का अनुभव होता है।

योगिक दृष्टिकोण से भी ऐसे ओपन चेस्ट पोज़्चर (Open Chest Posture) का गहरा महत्व है।

छाती फुलाने का सही अर्थ

छाती फुलाने का अर्थ केवल सांस भरकर फुला लेना नहीं है। इसका वास्तविक अर्थ है:

  • कंधों को थोड़ा पीछे खींचना
  • छाती को ऊपर और आगे उठाना
  • रीढ़ को सीधा रखना

इस मुद्रा में शरीर स्वाभाविक रूप से “ओपन” और संतुलित स्थिति में आ जाता है।

छाती फुलाने के लाभ

शारीरिक लाभ

  • फेफड़ों को अधिक स्थान → ऑक्सीजन का सेवन बढ़ता है → अंगों को अधिक ऊर्जा मिलती है।
  • हृदय पर दबाव घटता है → रक्त संचार बेहतर होता है।
  • रीढ़ सीधी रहती है → कमर-दर्द व पीठ की समस्याओं से राहत।
  • गले का क्षेत्र खुला रहता है → श्वसन तंत्र साफ रहता है।
  • पेट पर दबाव कम होता है → पाचनतंत्र में सुधार।

मानसिक व भावनात्मक लाभ

  • खुली छाती → आत्मविश्वास और मानसिक ऊर्जा में वृद्धि।
  • शक्तिशाली मुद्रा → सकारात्मक बॉडी लैंग्वेज विकसित होती है।
  • “ओपन चेस्ट” स्थिति → तनाव और अवसाद में कमी लाने में सहायक।
  • संस्कारशील भाव उत्पन्न होते हैं, जैसे:
    • “मैं पूर्ण निष्ठा से बैठा हूं।”
    • “मैं तैयार हूं।”
    • “मैं निर्भय हूं।”

योग में छाती खोलने की भूमिका

योग में छाती खोलना का तात्पर्य है:

  • अनाहत चक्र (हृदय चक्र) को सक्रिय करना।
  • यह चक्र प्रेम, करुणा, संतुलन और अपनत्व से जुड़ा होता है।

जब हम सिकुड़कर या झुककर बैठते हैं, तो केवल सांस ही अवरुद्ध नहीं होती, बल्कि मानसिक ऊर्जा भी कमजोर हो जाती है।

“हनुमानजी जैसी छाती” एक भाव

  • आत्मविश्वास के साथ बैठना।
  • श्रद्धा और समर्पण के साथ बैठना।
  • मस्तक झुका हो, पर छाती में धैर्य हो।
  • अहंकार न हो, लेकिन अपार शक्ति का भाव हो।

“हनुमानजी जैसी छाती फुलाकर बैठना” केवल शारीरिक मुद्रा नहीं है।
यह मन, प्राण और चेतना को संतुलित करने की प्रक्रिया है।
यहीं से योग की वास्तविक यात्रा प्रारंभ होती है।

आप सभी स्वस्थ, प्रसन्न और आनंदित रहें।

धन्यवाद!
योगाचार्य ढाकाराम
संस्थापक, योगापीस संस्थान

महामंत्र हरि ॐ

हरि ॐ का आध्यात्मिक अर्थ

हरि” का अर्थ है वह परम शक्ति जो सृष्टि का पालन करती है — भगवान विष्णु
” को प्रणव कहा गया है, जो सम्पूर्ण ब्रह्मांड का मूल स्वर है।
वेद और उपनिषद इसे सर्वोच्च ध्वनि मानते हैं — सृष्टि के आरंभ और अंत दोनों में इसका अस्तित्व है।

जब “हरि ॐ” का संयुक्त उच्चारण किया जाता है, तो यह मंत्र साधक को दिव्य ऊर्जा से जोड़कर ईश्वर के साथ प्रत्यक्ष संबंध स्थापित करता है।


अभ्यास की विधि

  1. बैठने की स्थिति
    • साधक को शांत मन से सुखासन में बैठना चाहिए।
    • रीढ़ को सीधा रखें, ताकि ऊर्जा का प्रवाह ऊपर की ओर सहज हो सके।
  2. “हरि” उच्चारण के समय
    • दोनों हाथों को साइड से फैलाते हुए ऊपर उठाएँ।
    • यह क्रिया ब्रह्मांडीय ऊर्जा को आमंत्रित करने का प्रतीक है।
    • इससे हृदय चक्र और आज्ञा चक्र सक्रिय होते हैं।
  3. “ॐ” उच्चारण के समय
    • होंठ मिलाने के साथ दोनों हथेलियाँ नमस्कार मुद्रा में आ जाएँ।
    • यह समर्पण और एकता का प्रतीक है।
    • इस समय सहस्रार चक्र सक्रिय होता है और दिव्य ऊर्जा अवतरित होती है।
  1. “म्” ध्वनि के साथ
    • शरीर को झुकाकर माथा भूमि पर स्पर्श कराएँ।
    • दोनों हाथ आगे खींचें, जिससे इड़ा और पिंगला नाड़ी संतुलित हों।
    • ध्यान रखें, कूल्हे ज़मीन से न उठें — अन्यथा मूलाधार चक्र का पृथ्वी से संपर्क टूट जाता है।

लाभ

  • मस्तिष्क शांत होता है, तंत्रिका तंत्र संतुलित रहता है।
  • हृदय गति सामान्य होती है, रक्तचाप नियंत्रित रहता है।
  • रीढ़ सीधी रहने से स्नायु तंत्र सक्रिय होता है।
  • मूलाधार, मणिपुर और सहस्रार चक्र जागृत होते हैं।
  • मानसिक तनाव, चिंता और डर कम होते हैं।
  • शरीर में सकारात्मक कंपन उत्पन्न होते हैं, जो आत्मा को गहराई से स्पर्श करते हैं।

आध्यात्मिक महत्त्व

“हरि ॐ” के अभ्यास से साधक धीरे-धीरे आत्मा की शुद्धता की ओर बढ़ता है।
उसकी चेतना सीमित अहं से निकलकर असीम ब्रह्मांड से जुड़ने लगती है।

  • योग में यह साधना शरीर और मन को संतुलित करती है।
  • भक्ति में यह ईश्वर से आत्मिक जुड़ाव कराती है।
  • ज्ञान में यह आत्मा को सत्य की ओर ले जाती है।

उपसंहार

हरि ॐ” केवल एक शब्द या ध्वनि नहीं, बल्कि एक गहन आध्यात्मिक और वैज्ञानिक प्रक्रिया है।
सही मुद्रा, भाव और समर्पण के साथ इसका अभ्यास शरीर, मन और आत्मा को पूर्ण रूप से जागृत करता है।

यह मंत्र साधक के भीतर छिपी दिव्यता को प्रकट करता है और ब्रह्मांड की अनंत ऊर्जा से जोड़ देता है।

आप सभी खुश रहें, मस्त रहें और आनंदित रहें।
धन्यवाद!

योगाचार्य ढाकाराम
संस्थापक, योगापीस संस्थान

मुस्कान के साथ स्वास्थ्य की ओर – उत्थित पद्मासन का अभ्यास

हरि ओम!
आप सभी को हमारा मुस्कुराता हुआ नमस्कार। कहते हैं – मुस्कुराहट के बिना कुछ नहीं, इसलिए आइए हमेशा मुस्कुराते रहें।
“एक कदम स्वास्थ्य से आनंद की ओर” कार्यक्रम में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।

आज का विषय: उत्थित पद्मासन (Uttit Padmasana)

‘उत्थित’ का अर्थ है – उठा हुआ, और ‘पद्मासन’ का अर्थ है – कमल की मुद्रा।
अतः उत्थित पद्मासन = उठा हुआ पद्मासन

अभ्यास विधि:

  1. पद्मासन में बैठना:
    • दंडासन में बैठ जाएं।
    • दाहिने पैर को मोड़ें और एड़ी को नाभि से सटाकर बाईं जांघ पर रखें।
    • फिर बाएं पैर को मोड़कर उसकी एड़ी को दाईं जांघ पर रखें।
  2. हाथों की स्थिति:
    • दोनों हथेलियाँ जमीन पर रखें – नितंबों के दोनों ओर।
  3. उत्थान प्रक्रिया:
    • धीरे-धीरे शरीर को ऊपर उठाएं।
    • कमर बिल्कुल सीधी रखें।
    • नितंब और घुटने जमीन के समांतर हों।
    • दोनों हाथ सीधे और कोहनियाँ बिना मुड़े रहें।
    • दृष्टि सामने रखें।
  4. स्थिति बनाए रखें:
    • 30 सेकंड से लेकर 1 मिनट तक इस अवस्था में रहें।
    • शरीर को यथासंभव ऊपर उठाने का प्रयास करें।
  5. वापस आने की प्रक्रिया:
    • धीरे-धीरे जिस क्रम में गए थे उसी तरह वापस आएं।
    • आंखें बंद करें और शरीर में आए परिवर्तन का अवलोकन करें।

लाभ (Benefits):

  • कंधे मजबूत बनते हैं।
  • मेरुदंड (spine) को बल और लचीलापन मिलता है।
  • पेट की मांसपेशियों में खिंचाव आकर पाचन तंत्र सुधरता है।

यदि पद्मासन न लगे तो क्या करें?

  • सुखासन में भी यह आसन किया जा सकता है।
  • जो पैरों को न उठा सकें, वे केवल नितंब उठाकर अभ्यास शुरू करें।
  • अभ्यास के साथ कंधों में ताकत आएगी और धीरे-धीरे पूरा आसन संभव हो जाएगा।

सावधानियाँ (Precautions):

  • गर्भवती महिलाएं यह आसन न करें।
  • जिनका हाल ही में पेट का ऑपरेशन हुआ हो, वे भी न करें।
  • जिनकी कलाई में दर्द हो, वे इस अभ्यास से बचें।

प्रिय मित्रों,
आप हमारे साथ नियमित अभ्यास करते रहें। अगर कोई आसन नहीं होता, तो अभ्यास करते रहें – धीरे-धीरे सब संभव होगा। घबराने की जरूरत नहीं है।
हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं – आप स्वस्थ, मस्त और आनंदित रहें।

आप सभी का हार्दिक आभार।

योगाचार्य ढाकाराम
संस्थापक – योगापीस संस्थान

सही आसन, सही जीवन: बैठने का योगिक महत्व

शरीर का वजन बैठते समय कहाँ होता है?

योग केवल आसनों या शारीरिक मुद्राओं तक सीमित नहीं है, बल्कि यह शरीर, मन और आत्मा के संतुलन की सम्पूर्ण विद्या है। जब हम साधना के लिए किसी आसन में बैठते हैं – विशेषकर सुखासन, पद्मासन या पला‍थी जैसी स्थितियों में – तब शरीर का भार किस प्रकार से वितरित होता है, इसका गहरा प्रभाव हमारी शारीरिक व मानसिक स्थिति पर पड़ता है।

बैठने पर शरीर का भार कहाँ जाता है?

जब हम पालथी मारकर बैठते हैं, तब शरीर का सम्पूर्ण भार कूल्हों (Hip joints), टांगों की हड्डियों (Femurs), तथा श्रोणि (Pelvis) की हड्डियों के माध्यम से ज़मीन पर जाता है। यह भार मुख्य रूप से दोनों कूल्हों (Ischial tuberosities) पर होना चाहिए।

यदि शरीर का वजन किसी एक ओर (दाएँ या बाएँ कूल्हे पर) अधिक हो जाए, तो शरीर का संरेखन (Alignment) बिगड़ जाता है। लंबे समय तक ऐसा बैठने से रीढ़, पीठ, घुटनों और यहाँ तक कि गर्दन पर भी असंतुलन उत्पन्न होता है।

ठीक उसी तरह जैसे गाड़ी के टायरों में हवा असमान हो तो गाड़ी झुक जाती है और उसकी चेसिस खराब हो सकती है, वैसे ही शरीर का भार असमान हो तो कई शारीरिक समस्याएँ जन्म लेती हैं।

संभावित समस्याएँ

  • रीढ़ की हड्डी का झुकाव (Scoliosis/kyphosis)
  • घुटनों पर असमान दबाव → गठिया या कूल्हों की जकड़न
  • झुकी हुई पीठ और संकुचित छाती → फेफड़ों की कार्यक्षमता में कमी
  • असंतुलन से प्राण ऊर्जा का व्यर्थ व्यय → थकान और मानसिक तनाव

योगशास्त्र का मार्गदर्शन

स्थिरं सुखं आसनम्” – अर्थात वह आसन जिसमें स्थिरता और सुख हो।

इसीलिए बैठते समय ध्यान रखें:

  • दोनों कूल्हों को ज़मीन पर बराबरी से टिकाएँ, आवश्यकता हो तो कुशन/कंबल का सहारा लें।
  • पीठ सीधी रखें और छाती को ओपन चेस्ट स्थिति में रखें।
  • कंधों को पीछे घुमाकर ढीला छोड़ें।
  • गर्दन सीधी और ठोड़ी थोड़ी अंदर (जालंधर बंध की भाँति)

सही बैठक के लाभ

  1. मांसपेशीय तनाव में कमी – समान भार वितरण से अनावश्यक खिंचाव नहीं होता।
  2. स्नायु-तंत्र की सक्रियता – उचित मुद्रा से मानसिक एकाग्रता और भावनात्मक संतुलन बढ़ता है।
  3. श्वसन प्रणाली में सुधार – खुली छाती व सीधी पीठ से फेफड़े पूरी तरह फैलते हैं।
  4. रक्त संचार और ऊर्जा प्रवाह – सही मुद्रा से रक्त प्रवाह व चक्र सक्रिय रहते हैं।

निष्कर्ष

योग में आसन केवल बाहरी मुद्रा नहीं, बल्कि आंतरिक चेतना का माध्यम हैं। जब हम अपने शरीर का भार सम रूप से वितरित करते हैं और रीढ़ की स्थिति सही रखते हैं, तो शारीरिक, मानसिक और आत्मिक संतुलन प्राप्त होता है।

जैसे मजबूत नींव वाली इमारत हर तूफान में अडिग रहती है, वैसे ही योग में सही संरेखन और भार संतुलन हमें जीवन की हर परिस्थिति में स्थिर और ऊर्जावान बनाए रखता है।

आप सभी खुश रहें, मस्त रहें और आनंदित रहें।
धन्यवाद!

योगाचार्य ढाकाराम
संस्थापक, योगापीस संस्थान

द्विपाद वृत्ताकार क्रिया: पेट-कमर की चर्बी पिघलाने का रामबाण उपाय

आप सभी का स्वागत है!

एक कदम स्वास्थ्य से आनंद की ओर कार्यक्रम में हमारे साथ जुड़ने के लिए धन्यवाद। आज हम द्विपाद वृत्ताकार क्रिया के बारे में चर्चा करेंगे—एक ऐसी क्रिया जो पेट और कमर पर जमी अवांछित चर्बी को प्रभावी ढंग से कम करती है।

क्रिया करने की विधि

  1. प्रारंभिक स्थिति:
  • पीठ के बल लेट जाएँ।
  • कोहनियों को ज़मीन पर टिकाकर शरीर के ऊपरी हिस्से को उठाएँ।
  • छाती को तानकर रखें।
  • कंधे और कोहनी 90° अंश पर हों तथा एक सीध में रहें।
  1. दक्षिणावृत्त (घड़ी की दिशा में):
  • दोनों पैरों को धीरे-धीरे दाईं ओर से उठाएँ।
  • बड़ा गोलाकार घुमाव बनाते हुए पैरों को clockwise घुमाएँ।
  • एक चक्र पूरा करने में 15-20 सेकंड लगाएँ।
  • थकान होने पर शवासन में विश्राम करें।
  1. वामावृत्त (घड़ी की विपरीत दिशा में):
  • अब पैरों को बाईं ओर से उठाएँ।
  • anti-clockwise दिशा में बड़ा गोला बनाएँ।
  • दक्षिणावृत्त के बराबर समय तक घुमाएँ।
  • दोनों दिशाओं में बराबर चक्र पूरे करने के बाद शवासन में आराम करें।

अवधि

  • सामान्य व्यक्ति:
    दक्षिणावृत्त + वामावृत्त के 4-6 चक्र (कुल 3 मिनट)।
  • वजन घटाने हेतु:
    प्रत्येक दिशा में 2 मिनट (कुल 4 मिनट)।

विशेष सावधानियाँ

  • कंधे और कोहनी हमेशा 90° अंश व एक सीध में रखें।
  • हथेलियाँ ज़मीन पर स्थिर टिकी हों, कोहनियाँ पास-पास रखें।
  • गर्दन पर दबाव न डालें। छाती फुलाकर रखें।
  • घुटने सीधे रहें।
  • न करें यदि:
  • गर्भावस्था या माहवारी चल रही हो।
  • सावधानी से करें:
  • गर्दन दर्द/सूजन हो तो पीठ के बल लेटकर करें।
  • पेट के अल्सर या कमर दर्द में एक पैर से अभ्यास करें।
  • क्रिया करने में जल्दबाज़ी न करें—शांत व सहज भाव से करें।

लाभ

  • पेट-कमर की चर्बी कम होती है।
  • पाचन तंत्र मजबूत होता है।
  • पेट की मांसपेशियों की प्राकृतिक मालिश।
  • नितंबों की चर्बी घटाने में सहायक।

“इस क्रिया का पूरा लाभ पाने के लिए कोहनियों के बल उठकर करें। लेटकर करने पर कमर पर तनाव पड़ता है, जिससे प्रभाव घट जाता है।”

आप सभी का हृदय से आभार। स्वस्थ रहें, मस्त रहें!
योगाचार्य ढाका राम
संस्थापक, योगापीस संस्थान

हनुमान आसन: लचीलापन और शक्ति का संगम

हरि ओम!
आप सभी को हमारा मुस्कुराता हुआ नमस्कार।
कहते हैं — “मुस्कुराहट के बिना जीवन अधूरा है,”
इसलिए हमेशा मुस्कुराइए और स्वस्थ रहिए।

“एक कदम स्वास्थ्य से आनंद की ओर” कार्यक्रम में आपका हार्दिक स्वागत है।
आज हम बात करेंगे एक अद्भुत एवं शक्तिशाली योगासन — हनुमान आसन के बारे में।

हनुमान आसन का परिचय

  • यह एक उन्नत (एडवांस) योगासन है।
  • इससे पैरों में शक्ति, मांसपेशियों में लचीलापन और पेल्विक रीजन में मजबूती आती है।
  • यह आसन शरीर में ऊर्जा का संचार करता है और संतुलन की भावना को विकसित करता है।

हनुमान आसन की विधि

  1. सीधे खड़े होकर पैरों को जितना संभव हो खोलें।
  2. शरीर को दाहिनी ओर मोड़ें, दोनों हाथ जांघों के पास रखें।
  3. दाएं पैर का पंजा 90° पर मोड़ें, और बाएं पैर को पीछे की ओर सीधा करें।
  4. धीरे-धीरे पैरों को फैलाएं, जल्दबाजी न करें।
  5. पीछे का घुटना सीधा रखें और पैर को पीछे ले जाएं
  6. आगे वाले पैर को आगे ले जाकर पंजा सीधा रखें।
  7. धीरे-धीरे जांघ जमीन से सटा दें
  8. इस स्थिति में 1-2 मिनट तक रुकें।
  9. फिर धीरे-धीरे पूर्व स्थिति में लौटें।
  10. अब यही प्रक्रिया बाएं पैर से दोहराएं।

सावधानियाँ और अभ्यास के सुझाव

  • धैर्य रखें, जितना बन पाए उतना करें।
  • जहाँ तक पैर खुलें वहाँ पर रुकें और 1-2 मिनट स्थिर रहें।
  • दोनों ओर बराबर अभ्यास करना आवश्यक है।
  • नियमित अभ्यास से हर सप्ताह लचीलापन बढ़ेगा
  • रोज़ 10 मिनट अभ्यास से 3-4 महीनों में पूर्ण आसन संभव हो सकता है।

अभ्यास को और प्रभावी बनाने की तकनीक

  1. दंडासन में बैठें, पैरों को सामने खोलें।
  2. कमर सीधी रखकर आगे की ओर झुकें – 1 मिनट रुकें
  3. फिर दाईं ओर शरीर मोड़ते हुए हनुमान आसन में जाएँ – 1 मिनट रुकें
  4. फिर बाईं ओर भी यही प्रक्रिया दोहराएं।
  5. तीनों दिशाओं में यह अभ्यास 3 बार दोहराएं
  6. अंत में सामने की ओर झुककर 1 मिनट रुकें और फिर विश्राम करें।

हनुमान आसन के लाभ

  • पेल्विक क्षेत्र को मजबूती देता है।
  • पैरों की मांसपेशियों को लचीलापन प्रदान करता है।
  • रीढ़ की हड्डी और छाती को मजबूती देता है।
  • मानसिक स्थिरता और आत्मविश्वास को बढ़ाता है।

आत्मबोधन और समर्पण का अभ्यास

योग केवल शरीर का नहीं, आत्मा और मन का भी अभ्यास है।
धैर्य, समर्पण और नियमितता से आप हर योगासन को पूर्णता की ओर ले जा सकते हैं।
अपने शरीर की सीमाओं को पहचानिए और धीरे-धीरे उसे विस्तार दीजिए।

तो प्यारे मित्रों,
आप सभी को सत-सत नमन।
आप हमेशा स्वस्थ, मस्त और आनंदित रहें।
हमारे साथ बने रहें और योग के माध्यम से अपने जीवन को धन्य बनाते रहें।

आपका योगमित्र,
योगाचार्य ढाकाराम
संस्थापक – योगापीस संस्थान

भस्त्रिका प्राणायाम

भस्त्रिका नाम लुहार की धौंकनी जैसी वेगपूर्वक वायु भरने व निकालने की क्रिया की समानता से प्रेरित है। यह प्राणायाम शरीर को ऊर्जा से भरकर विषाक्त तत्वों का निष्कासन करता है।

विधि

  1. आसन: पद्मासन, अर्धपद्मासन या सुखासन (पालथी) में बैठें।
  2. शरीर स्थिति:
    • कमर, पीठ एवं गर्दन सीधी रखें
    • दोनों नितम्बों पर समान वजन
    • शरीर को तनावमुक्त रखें (विशेष ध्यान दें)
    • पेट की मांसपेशियाँ शिथिल, सीना फुला हुआ
  3. हस्त मुद्रा: दोनों हाथ घुटनों पर सामान्य स्थिति में।
  4. प्रारम्भ:
    • आँखें कोमलता से बंद कर अंतर्मुखी हो जाएँ
    • वेगपूर्वक श्वास लेते हुए दोनों बाँहों को सिर के ऊपर उठाएँ (फेफड़े पूर्णतया भरें)
    • हाथ नीचे लाते हुए वेगपूर्वक श्वास बाहर निकालें (फेफड़े पूर्णतः खाली हों)
  5. अवधि:
    • 4 मिनट तक लगातार दोहराएँ
    • अक्षमता होने पर 2 मिनट करें → 1 मिनट विश्राम → पुनः 2 मिनट (कुल 5 मिनट)
  6. समापन:
    • फेफड़ों को पूरी तरह खाली करें
    • श्वास को सहज भाव से आने-जाने दें
    • 1 मिनट तक आँखें बंद रखकर शरीर व श्वास का साक्षीभाव से निरीक्षण करें

विशेष निर्देश

  • बाँहों के ऊपर-नीचे होने पर शरीर में झटका/तनाव न आने दें
  • चेहरा सामान्य व तनावमुक्त रखें
  • श्वास लेने-छोड़ने का समय समान रखें (जैसे 2 सेकंड भरना, 2 सेकंड खाली करना)
  • श्वास “पूर्ण क्षमता” से भरें व “सम्पूर्णतया” खाली करें
  • अपना ध्यान श्वास क्रिया पर केन्द्रित रखें

लाभ

  • विषाक्त तत्वों का निष्कासन
  • वात-पित्त-कफ संतुलन
  • चयापचय (Metabolism) व रक्त-ऑक्सीजन में वृद्धि
  • फेफड़ों को पुष्ट करना (सर्दी-जुकाम, अस्थमा, निमोनिया, एलर्जी, कफ में विशेष लाभकारी)
  • ध्यान की तैयारी में सहायक

सावधानियाँ

नवसाधकों के लिए:

  • प्रारम्भ में सिरभारीपन/चक्कर आने पर विश्राम करें
  • पहले सामान्य गति से अभ्यास करें, फिर धीरे-धीरे गति बढ़ाएँ

निषेध (जिन्हें नहीं करना चाहिए)

  • उच्च/निम्न रक्तचाप
  • हृदय रोग
  • नकसीर (नाक से खून आना)
  • मिर्गी
  • चक्कर आने की समस्या

“भस्त्रिका प्राणायाम की वेगपूर्ण क्रिया शरीर में प्राण के प्रवाह को ठीक उसी प्रकार जागृत करती है जैसे लौहार की धौंकनी अंगारों में अग्नि। परिशुद्ध तकनीक व सजगता से ही यह रूपान्तरकारी परिणाम देती है।”
योगाचार्य ढाकाराम