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एक कदम स्वास्थ्य से आनंद की ओर : पर्वतासन

हरि ओम 🙏 आप सभी को हमारा मुस्कुराता हुआ नमस्कार।

एक कदम स्वास्थ्य से आनंद की ओर कार्यक्रम में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।

आजकल हमारे ब्लॉग सूर्य नमस्कार की श्रृंखला पर चल रहे हैं। पिछले ब्लॉग में हमने अश्व संचालन आसन के बारे में जाना था। आज हम बात करेंगे पर्वतासन (Mountain Pose) के बारे में।

शरीर की स्थिति पर्वत के समान होने के कारण इस आसन को पर्वतासन कहते हैं। यह हमारे पूरे शरीर के लिए अत्यंत लाभकारी है। जब हम इसे करते हैं, तो यह शरीर में खिंचाव लाता है, शक्ति प्रदान करता है और मन को शांत करता है।


अश्व संचालन आसन से पर्वतासन में कैसे आएं

  • अश्व संचालन आसन में हमारा दायाँ पैर पीछे रहता है।
  • पर्वतासन में आने के लिए कमर को ऊपर उठाते हुए धीरे से बायाँ पैर भी पीछे ले जाएँ।
  • बाएँ पैर की एड़ी को दाएँ पैर की एड़ी से मिलाएँ।
  • नितंबों और लोअर बैक को ऊपर की ओर खींचकर रखें।
  • सिर हमारे हाथों के बीच में रहेगा।
  • दोनों पैर सीधे रहेंगे और एड़ियाँ जमीन से लगी रहेंगी।
  • नितंब ऊपर आकाश की ओर खिंचे रहेंगे।

पर्वतासन करते समय ध्यान रखें

  • घुटने सीधे रहेंगे।
  • एड़ियों को जमीन से लगाने का प्रयास करेंगे।
  • शरीर का संतुलन बनाते हुए कम से कम 20 सेकंड इसी अवस्था में रुकने का प्रयास करें।

पर्वतासन के लाभ

  • कंधों को मजबूत बनाता है।
  • पैरों के लिए अत्यंत लाभकारी है।
  • सिर की ओर रक्त संचार बढ़ने से चेहरे पर निखार आता है।
  • दिमाग सक्रिय और दुरुस्त रहता है।
  • मेरुदंड को लचीला बनाता है।

विशेष टिप्पणी

जब हम पर्वतासन करते हैं तो चेहरा नीचे की ओर होता है। इससे रक्त का प्रवाह चेहरे की ओर बढ़ता है और त्वचा में ताजगी एवं चमक आती है।

अगले ब्लॉग की झलक

प्यारे मित्रों! अगले ब्लॉग में हम भुजंगासन के बारे में बात करेंगे। आप सब हमारे साथ इसी प्रकार जुड़े रहें और अपने स्वास्थ्य का लाभ उठाते रहें।

तो प्यारे मित्रों, आप सभी को सत-सत नमन।
आप सभी खुश रहें, मस्त रहें और आनंदित रहें।

योगाचार्य ढाकाराम
संस्थापक – योगापीस संस्थान

महामंत्र हरि ॐ

हरि ॐ का आध्यात्मिक अर्थ

हरि” का अर्थ है वह परम शक्ति जो सृष्टि का पालन करती है — भगवान विष्णु
” को प्रणव कहा गया है, जो सम्पूर्ण ब्रह्मांड का मूल स्वर है।
वेद और उपनिषद इसे सर्वोच्च ध्वनि मानते हैं — सृष्टि के आरंभ और अंत दोनों में इसका अस्तित्व है।

जब “हरि ॐ” का संयुक्त उच्चारण किया जाता है, तो यह मंत्र साधक को दिव्य ऊर्जा से जोड़कर ईश्वर के साथ प्रत्यक्ष संबंध स्थापित करता है।


अभ्यास की विधि

  1. बैठने की स्थिति
    • साधक को शांत मन से सुखासन में बैठना चाहिए।
    • रीढ़ को सीधा रखें, ताकि ऊर्जा का प्रवाह ऊपर की ओर सहज हो सके।
  2. “हरि” उच्चारण के समय
    • दोनों हाथों को साइड से फैलाते हुए ऊपर उठाएँ।
    • यह क्रिया ब्रह्मांडीय ऊर्जा को आमंत्रित करने का प्रतीक है।
    • इससे हृदय चक्र और आज्ञा चक्र सक्रिय होते हैं।
  3. “ॐ” उच्चारण के समय
    • होंठ मिलाने के साथ दोनों हथेलियाँ नमस्कार मुद्रा में आ जाएँ।
    • यह समर्पण और एकता का प्रतीक है।
    • इस समय सहस्रार चक्र सक्रिय होता है और दिव्य ऊर्जा अवतरित होती है।
  1. “म्” ध्वनि के साथ
    • शरीर को झुकाकर माथा भूमि पर स्पर्श कराएँ।
    • दोनों हाथ आगे खींचें, जिससे इड़ा और पिंगला नाड़ी संतुलित हों।
    • ध्यान रखें, कूल्हे ज़मीन से न उठें — अन्यथा मूलाधार चक्र का पृथ्वी से संपर्क टूट जाता है।

लाभ

  • मस्तिष्क शांत होता है, तंत्रिका तंत्र संतुलित रहता है।
  • हृदय गति सामान्य होती है, रक्तचाप नियंत्रित रहता है।
  • रीढ़ सीधी रहने से स्नायु तंत्र सक्रिय होता है।
  • मूलाधार, मणिपुर और सहस्रार चक्र जागृत होते हैं।
  • मानसिक तनाव, चिंता और डर कम होते हैं।
  • शरीर में सकारात्मक कंपन उत्पन्न होते हैं, जो आत्मा को गहराई से स्पर्श करते हैं।

आध्यात्मिक महत्त्व

“हरि ॐ” के अभ्यास से साधक धीरे-धीरे आत्मा की शुद्धता की ओर बढ़ता है।
उसकी चेतना सीमित अहं से निकलकर असीम ब्रह्मांड से जुड़ने लगती है।

  • योग में यह साधना शरीर और मन को संतुलित करती है।
  • भक्ति में यह ईश्वर से आत्मिक जुड़ाव कराती है।
  • ज्ञान में यह आत्मा को सत्य की ओर ले जाती है।

उपसंहार

हरि ॐ” केवल एक शब्द या ध्वनि नहीं, बल्कि एक गहन आध्यात्मिक और वैज्ञानिक प्रक्रिया है।
सही मुद्रा, भाव और समर्पण के साथ इसका अभ्यास शरीर, मन और आत्मा को पूर्ण रूप से जागृत करता है।

यह मंत्र साधक के भीतर छिपी दिव्यता को प्रकट करता है और ब्रह्मांड की अनंत ऊर्जा से जोड़ देता है।

आप सभी खुश रहें, मस्त रहें और आनंदित रहें।
धन्यवाद!

योगाचार्य ढाकाराम
संस्थापक, योगापीस संस्थान

मुस्कान के साथ स्वास्थ्य की ओर – उत्थित पद्मासन का अभ्यास

हरि ओम!
आप सभी को हमारा मुस्कुराता हुआ नमस्कार। कहते हैं – मुस्कुराहट के बिना कुछ नहीं, इसलिए आइए हमेशा मुस्कुराते रहें।
“एक कदम स्वास्थ्य से आनंद की ओर” कार्यक्रम में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।

आज का विषय: उत्थित पद्मासन (Uttit Padmasana)

‘उत्थित’ का अर्थ है – उठा हुआ, और ‘पद्मासन’ का अर्थ है – कमल की मुद्रा।
अतः उत्थित पद्मासन = उठा हुआ पद्मासन

अभ्यास विधि:

  1. पद्मासन में बैठना:
    • दंडासन में बैठ जाएं।
    • दाहिने पैर को मोड़ें और एड़ी को नाभि से सटाकर बाईं जांघ पर रखें।
    • फिर बाएं पैर को मोड़कर उसकी एड़ी को दाईं जांघ पर रखें।
  2. हाथों की स्थिति:
    • दोनों हथेलियाँ जमीन पर रखें – नितंबों के दोनों ओर।
  3. उत्थान प्रक्रिया:
    • धीरे-धीरे शरीर को ऊपर उठाएं।
    • कमर बिल्कुल सीधी रखें।
    • नितंब और घुटने जमीन के समांतर हों।
    • दोनों हाथ सीधे और कोहनियाँ बिना मुड़े रहें।
    • दृष्टि सामने रखें।
  4. स्थिति बनाए रखें:
    • 30 सेकंड से लेकर 1 मिनट तक इस अवस्था में रहें।
    • शरीर को यथासंभव ऊपर उठाने का प्रयास करें।
  5. वापस आने की प्रक्रिया:
    • धीरे-धीरे जिस क्रम में गए थे उसी तरह वापस आएं।
    • आंखें बंद करें और शरीर में आए परिवर्तन का अवलोकन करें।

लाभ (Benefits):

  • कंधे मजबूत बनते हैं।
  • मेरुदंड (spine) को बल और लचीलापन मिलता है।
  • पेट की मांसपेशियों में खिंचाव आकर पाचन तंत्र सुधरता है।

यदि पद्मासन न लगे तो क्या करें?

  • सुखासन में भी यह आसन किया जा सकता है।
  • जो पैरों को न उठा सकें, वे केवल नितंब उठाकर अभ्यास शुरू करें।
  • अभ्यास के साथ कंधों में ताकत आएगी और धीरे-धीरे पूरा आसन संभव हो जाएगा।

सावधानियाँ (Precautions):

  • गर्भवती महिलाएं यह आसन न करें।
  • जिनका हाल ही में पेट का ऑपरेशन हुआ हो, वे भी न करें।
  • जिनकी कलाई में दर्द हो, वे इस अभ्यास से बचें।

प्रिय मित्रों,
आप हमारे साथ नियमित अभ्यास करते रहें। अगर कोई आसन नहीं होता, तो अभ्यास करते रहें – धीरे-धीरे सब संभव होगा। घबराने की जरूरत नहीं है।
हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं – आप स्वस्थ, मस्त और आनंदित रहें।

आप सभी का हार्दिक आभार।

योगाचार्य ढाकाराम
संस्थापक – योगापीस संस्थान

एंजायटी को कम करने का सरल उपाय: भस्त्रिका प्राणायाम

हरि ओम, आप सभी को हमारा मुस्कुराता हुआ नमस्कार! कहते हैं, मुस्कुराहट के बिना कुछ नहीं है, इसलिए हमेशा मुस्कुराते रहना चाहिए। “एक कदम स्वास्थ्य से आनंद की ओर” कार्यक्रम में आप सभी का स्वागत है।

एंजायटी: आज की सबसे बड़ी समस्या

आज हम बात करेंगे एंजायटी के बारे में और जानेंगे कि इसे कैसे कम किया जाए। आजकल हर किसी को एंजायटी होने लगी है। समय के साथ आकांक्षाएं और महत्वाकांक्षाएं बढ़ गई हैं, जिससे हर समय तनाव बना रहता है।

आज हम एक बिल्कुल सरल अभ्यास बताएंगे, जिसे करके आप एंजायटी से मुक्त रह सकते हैं। हम पहले भी भस्त्रिका प्राणायाम के बारे में चर्चा कर चुके हैं, लेकिन आज हम इसे एंजायटी मैनेजमेंट के लिए समझेंगे।

भस्त्रिका प्राणायाम: एंजायटी से मुक्ति का मार्ग

भस्त्रिका प्राणायाम एक ऐसा अभ्यास है, जिसे आप रोज करके अपने आप को तनावमुक्त रख सकते हैं। इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसे कभी भी, कहीं भी किया जा सकता है—चाहे आप सोफ़े पर बैठे हों, कुर्सी पर हों, या फिर जमीन पर। बस जरूरत है तो सांसों पर ध्यान केंद्रित करने की।

जब हम भस्त्रिका करते हैं, तो हमारा पूरा ध्यान सांसों पर होता है, जिससे मन शांत रहता है और एंजायटी दूर होती है।

भस्त्रिका प्राणायाम करने की विधि

  1. आसन: पद्मासन में बैठें। अगर पद्मासन में बैठने में कठिनाई हो, तो किसी भी आरामदायक मुद्रा में बैठ सकते हैं।
  2. हाथों की स्थिति:
  • श्वास भरते हुए हाथों को छाती के सामने से सिर के ऊपर ले जाएं (हथेलियाँ सामने की ओर)।
  • श्वास छोड़ते हुए हाथों को वापस छाती के सामने लाकर जांघों पर रख दें।
  1. अवधि: कम से कम 4 मिनट तक करें, फिर 1 मिनट का विश्राम लें।
  2. अनुभूति: अभ्यास से पहले और बाद में अपने शरीर में होने वाले परिवर्तनों को महसूस करें।
  3. नियमितता: प्रतिदिन कम से कम 5 मिनट भस्त्रिका प्राणायाम जरूर करें।

भस्त्रिका प्राणायाम के लाभ

  • मन की शांति: जब हम आंखें बंद करके भस्त्रिका करते हैं और ध्यान सांसों पर केंद्रित होता है, तो मन इधर-उधर नहीं भटकता। इससे मन शांत रहता है और एंजायटी कम होती है।
  • गहरी सांस का महत्व: जितना हमारा श्वास लंबा और गहरा होगा, मन उतना ही शांत रहेगा। मन और सांस का गहरा संबंध है।
  • ऑक्सीजन की आपूर्ति: भस्त्रिका से फेफड़ों में ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ती है, जो रक्त के माध्यम से पूरे शरीर में पहुँचती है। इससे ऊर्जा बढ़ती है और एंजायटी कम होती है।
  • हृदय व फेफड़ों के लिए फायदेमंद: यह प्राणायाम हृदय और फेफड़ों से जुड़ी समस्याओं को दूर करने में सहायक है।
  • रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है: नियमित अभ्यास से इम्यूनिटी मजबूत होती है।

निष्कर्ष: योग को अपनाएं, स्वस्थ जीवन जिएं

अपने जीवन को योगमय बनाएं। नियमित रूप से आसन और प्राणायाम का अभ्यास करें। प्यारे मित्रों, हमारे साथ जुड़े रहें और अपने स्वास्थ्य का लाभ उठाते रहें।

आप सभी खुश रहें, मस्त रहें और आनंदित रहें।
धन्यवाद!

योगाचार्य ढाकाराम
संस्थापक, योगापीस संस्थान

हनुमान आसन: लचीलापन और शक्ति का संगम

हरि ओम!
आप सभी को हमारा मुस्कुराता हुआ नमस्कार।
कहते हैं — “मुस्कुराहट के बिना जीवन अधूरा है,”
इसलिए हमेशा मुस्कुराइए और स्वस्थ रहिए।

“एक कदम स्वास्थ्य से आनंद की ओर” कार्यक्रम में आपका हार्दिक स्वागत है।
आज हम बात करेंगे एक अद्भुत एवं शक्तिशाली योगासन — हनुमान आसन के बारे में।

हनुमान आसन का परिचय

  • यह एक उन्नत (एडवांस) योगासन है।
  • इससे पैरों में शक्ति, मांसपेशियों में लचीलापन और पेल्विक रीजन में मजबूती आती है।
  • यह आसन शरीर में ऊर्जा का संचार करता है और संतुलन की भावना को विकसित करता है।

हनुमान आसन की विधि

  1. सीधे खड़े होकर पैरों को जितना संभव हो खोलें।
  2. शरीर को दाहिनी ओर मोड़ें, दोनों हाथ जांघों के पास रखें।
  3. दाएं पैर का पंजा 90° पर मोड़ें, और बाएं पैर को पीछे की ओर सीधा करें।
  4. धीरे-धीरे पैरों को फैलाएं, जल्दबाजी न करें।
  5. पीछे का घुटना सीधा रखें और पैर को पीछे ले जाएं
  6. आगे वाले पैर को आगे ले जाकर पंजा सीधा रखें।
  7. धीरे-धीरे जांघ जमीन से सटा दें
  8. इस स्थिति में 1-2 मिनट तक रुकें।
  9. फिर धीरे-धीरे पूर्व स्थिति में लौटें।
  10. अब यही प्रक्रिया बाएं पैर से दोहराएं।

सावधानियाँ और अभ्यास के सुझाव

  • धैर्य रखें, जितना बन पाए उतना करें।
  • जहाँ तक पैर खुलें वहाँ पर रुकें और 1-2 मिनट स्थिर रहें।
  • दोनों ओर बराबर अभ्यास करना आवश्यक है।
  • नियमित अभ्यास से हर सप्ताह लचीलापन बढ़ेगा
  • रोज़ 10 मिनट अभ्यास से 3-4 महीनों में पूर्ण आसन संभव हो सकता है।

अभ्यास को और प्रभावी बनाने की तकनीक

  1. दंडासन में बैठें, पैरों को सामने खोलें।
  2. कमर सीधी रखकर आगे की ओर झुकें – 1 मिनट रुकें
  3. फिर दाईं ओर शरीर मोड़ते हुए हनुमान आसन में जाएँ – 1 मिनट रुकें
  4. फिर बाईं ओर भी यही प्रक्रिया दोहराएं।
  5. तीनों दिशाओं में यह अभ्यास 3 बार दोहराएं
  6. अंत में सामने की ओर झुककर 1 मिनट रुकें और फिर विश्राम करें।

हनुमान आसन के लाभ

  • पेल्विक क्षेत्र को मजबूती देता है।
  • पैरों की मांसपेशियों को लचीलापन प्रदान करता है।
  • रीढ़ की हड्डी और छाती को मजबूती देता है।
  • मानसिक स्थिरता और आत्मविश्वास को बढ़ाता है।

आत्मबोधन और समर्पण का अभ्यास

योग केवल शरीर का नहीं, आत्मा और मन का भी अभ्यास है।
धैर्य, समर्पण और नियमितता से आप हर योगासन को पूर्णता की ओर ले जा सकते हैं।
अपने शरीर की सीमाओं को पहचानिए और धीरे-धीरे उसे विस्तार दीजिए।

तो प्यारे मित्रों,
आप सभी को सत-सत नमन।
आप हमेशा स्वस्थ, मस्त और आनंदित रहें।
हमारे साथ बने रहें और योग के माध्यम से अपने जीवन को धन्य बनाते रहें।

आपका योगमित्र,
योगाचार्य ढाकाराम
संस्थापक – योगापीस संस्थान

वक्रासन (Whole Spinal Twist Pose)

अर्थ

इस आसन में शरीर की स्थिति वक्र (मुड़ी हुई) के समान होने के कारण इसे वक्रासन कहा जाता है। यह अर्धमत्स्येन्द्रासन का एक सरल रूप है।

विधि (करने का तरीका)

बाईं ओर से करने की विधि:

  1. प्रारंभिक स्थिति: कमर सीधी रखते हुए दण्डासन में बैठें।
  2. पैरों की स्थिति: बाएं पैर को मोड़कर, बाएं पैर का तलवा दाएं घुटने के बगल में रखें। बाएं घुटने की दिशा ऊपर (आसमान) की ओर होनी चाहिए।
  3. हाथों की स्थिति: दाएं हाथ को ऊपर उठाकर बाएं पैर के टखने या पंजे को पकड़ें।
  4. मरोड़ने की क्रिया: कमर से बाईं ओर मुड़ते हुए बाएं हाथ को पीछे जमीन पर रखें।
  5. गर्दन व दृष्टि: गर्दन को बाईं ओर घुमाकर पीछे की ओर देखें। शरीर को सीधा रखने का प्रयास करें।
  6. स्थिति में रुकें: इस अवस्था में 30 सेकंड से 1 मिनट तक बने रहें।
  7. वापस आना: धीरे-धीरे सामान्य स्थिति में आकर विश्राम करें।

दाईं ओर से करने की विधि:

  1. प्रारंभिक स्थिति: कमर सीधी रखते हुए दण्डासन में बैठें।
  2. पैरों की स्थिति: दाएं पैर को मोड़कर, दाएं पैर का तलवा बाएं घुटने के बगल में रखें। दाएं घुटने की दिशा ऊपर की ओर होनी चाहिए।
  3. हाथों की स्थिति: बाएं हाथ को ऊपर उठाकर दाएं पैर के टखने या पंजे को पकड़ें।
  4. मरोड़ने की क्रिया: कमर से दाईं ओर मुड़ते हुए दाएं हाथ को पीछे जमीन पर रखें।
  5. गर्दन व दृष्टि: गर्दन को दाईं ओर घुमाकर पीछे की ओर देखें। शरीर को सीधा रखें।
  6. स्थिति में रुकें: इस अवस्था में 30 सेकंड से 1 मिनट तक बने रहें।
  7. वापस आना: धीरे-धीरे सामान्य स्थिति में आकर विश्राम करें।

लाभ

  • रीढ़ की हड्डी को मजबूती: मेरुदंड की कशेरुकाएं व मांसपेशियाँ लचीली व मजबूत होती हैं।
  • पाचन तंत्र सुधारे: पेट की चर्बी घटाने व पाचन क्रिया को दुरुस्त करने में सहायक।
  • रोगों में लाभ: कब्ज, गैस, लीवर की कमजोरी, नसों की दुर्बलता और कमर दर्द से राहत।
  • मधुमेह नियंत्रण: डायबिटीज को कंट्रोल करने में फायदेमंद।

सावधानियाँ एवं संशोधन

  • गर्दन दर्द: यदि गर्दन में दर्द हो, तो ज्यादा पीछे न देखें।
  • शरीर सीधा रखें: कमर, पीठ और गर्दन को सीधा रखने का प्रयास करें।
  • संशोधन: यदि पैर का टखना पकड़ने में कठिनाई हो, तो ज़ोर न लगाएं। केवल धड़ को मोड़ने पर ध्यान दें या योगा ब्लॉक का सहारा लें।

इन स्थितियों में न करें:

  • मासिक धर्म के दौरान
  • गर्भावस्था में

योगाचार्य ढाका राम
संस्थापक, योगापीस संस्थान

एक पाद सुप्त पादांगुष्ठासन: स्वास्थ्य से आनंद की ओर एक कदम

प्यारे मित्रों,
आप सभी को हमारा मुस्कुराता हुआ नमस्कार।
‘एक कदम स्वास्थ्य से आनंद की ओर’ कार्यक्रम में आपका हार्दिक स्वागत है।

आज हम जिस योगासन की बात करने जा रहे हैं, वह है एक पाद सुप्त पादांगुष्ठासन। यह आसन खासतौर पर पैरों से जुड़ी समस्याओं में अत्यंत लाभदायक है। जिन लोगों को एड़ियों, पिंडलियों, घुटनों या जांघों में दर्द रहता है, उन्हें यह आसन दिन में तीन बार अवश्य करना चाहिए। यह न केवल पैरों को मजबूती प्रदान करता है बल्कि रीढ़ की हड्डी में लचक भी बढ़ाता है।

आसन करने की विधि:

पहला चरण (दाहिने पैर से):

  1. सबसे पहले शवासन में लेट जाएं।
  2. दाहिने पैर को मोड़कर छाती की ओर लाएं।
  3. दाहिने हाथ से दाहिने पैर के अंगूठे को पकड़ें।
  4. धीरे-धीरे घुटने को सीधा करने का प्रयास करें।
  5. अपनी क्षमता अनुसार पैर को अपनी ओर खींचें।
  6. 1 मिनट तक इसी स्थिति में रहें।
  7. फिर धीरे-धीरे वापस शवासन में आ जाएं और शरीर का अवलोकन करें।

दूसरा चरण (बाएं पैर से):

  1. बाएं पैर को मोड़ें और छाती की ओर लाएं।
  2. बाएं हाथ से बाएं पैर के अंगूठे को पकड़ें।
  3. धीरे-धीरे घुटने को सीधा करें।
  4. पैर को अपनी ओर खींचें और 1 मिनट तक इसी अवस्था में रहें।
  5. इसके बाद शवासन में विश्राम करें और आसन से पहले और बाद के परिवर्तन को महसूस करें।

विकल्प:

यदि आप अपने पैर का अंगूठा या एड़ी नहीं पकड़ पा रहे हैं, तो योगा बेल्ट, चुन्नी, तौलिया या बेडशीट का उपयोग कर सकते हैं।

  1. शवासन में लेटकर दाहिने पैर के पंजे पर योगा बेल्ट लगाएं (छोटी उंगली के नीचे)।
  2. धीरे-धीरे पैर को सीधा करें।
  3. ध्यान रखें कि दोनों पैर सीधे हों और पंजे शरीर की ओर खिंचे हों।
  4. अपनी क्षमता अनुसार 90 डिग्री तक या उससे अधिक पैर को ऊपर उठाएं।
  5. 1 मिनट तक इसी स्थिति में रहें, फिर धीरे-धीरे वापस शवासन में आ जाएं।
  6. अब यही प्रक्रिया बाएं पैर से दोहराएं।

दोनों तरफ समान अभ्यास के बाद शवासन में विश्राम करें और शरीर को पूरी तरह ढीला छोड़ दें। फिर धीरे से करवट लेते हुए बैठ जाएं।

सावधानियां:

  • दोनों पैर सीधे होने चाहिए।
  • दोनों पैरों के पंजे शरीर की ओर खिंचे हुए होने चाहिए।

लाभ:

  • वेरीकोज़ वेन्स (Varicose Veins) के लिए यह रामबाण है।
  • पैरों से संबंधित किसी भी प्रकार की समस्या में लाभदायक।
  • एड़ियों, पिंडलियों, घुटनों और जांघों के दर्द में अत्यंत उपयोगी।
  • रीढ़ की लचक और पैरों की शक्ति में वृद्धि करता है।

आप सभी को हमारी ओर से फिर एक बार मुस्कुराता हुआ नमस्कार।
मुस्कुराते रहें, हँसते रहें, और आनंदित रहें।

आपका बहुत-बहुत धन्यवाद और आभार।

– योगाचार्य ढाकाराम
संस्थापक, योगापीस संस्थान

पीछे झुकने का वैज्ञानिक तरीका

हरि ओम प्यारे मित्रों!

आप सभी को हमारा मुस्कुराता हुआ नमस्कार। एक कदम स्वास्थ्य से आनंद की ओर कार्यक्रम में आप सभी का स्वागत है। आज हम चर्चा करेंगे पीछे कैसे झुके।

गलत तरीके से पीछे झुकने से क्या होता है?

  • कमर में दर्द हो सकता है
  • शरीर की संरचना बिगड़ सकती है

सही तरीके से पीछे झुकने के फायदे:

  • मेरुदंड के लिए बहुत अच्छा
  • फेफड़ों और हृदय के लिए फायदेमंद

पीछे झुकने का तरीका:

  • अर्द्ध चक्रासन:
    1. अपने हाथों को नितंबों पर रखते हुए नितंबों को नीचे दबाएं और छाती को बाहर निकालें।
    2. आंखें बंद करके सांस लेते हुए छाती को ज्यादा से ज्यादा फुलाएं।
    3. गर्दन को तनाव मुक्त रखें।
    4. ध्यान कंधों और छाती की मांसपेशियों पर केंद्रित करें।
    5. आंखों को बिना खोले धीरे-धीरे हाथों को नीचे लाएं।
    6. आंखें बंद करके शरीर में होने वाले परिवर्तन को महसूस करें।
    7. ध्यान कंधों और छाती की मांसपेशियों पर केंद्रित करें।
    8. पीछे झुकने के लिए जल्दबाजी न करें।
    9. रोजाना अभ्यास से अच्छा परिणाम मिलेगा।
  • दूसरा तरीका:
    1. हाथों को कमर के पीछे ले जाकर उंगलियों को आपस में फंसाकर कैंची बना लें।
    2. छाती को आगे की ओर ज्यादा से ज्यादा फुलाएं और गर्दन को पीछे रखें।
    3. इस स्थिति में कम से कम एक से दो मिनट रुकने का प्रयास करें।
    4. जब रुकना मुश्किल हो जाए तो धीरे-धीरे आसन से वापस सामान्य अवस्था में आ जाएं।
    5. आंखें बंद करके शरीर में होने वाले परिवर्तन को महसूस करें।
    6. आंखें बंद करके आसन करने से मन में शांति और आनंद की अनुभूति होगी।
    7. कंधे और गर्दन में जकड़न या दर्द होने पर यह बहुत महत्वपूर्ण है।

ध्यान रखने योग्य बातें:

  • आगे झुकते समय कूल्हों के जोड़ से झुकें, पीठ सीधी रखें।
  • अर्ध चक्रासन करते समय छाती को फुलाते हुए ऊपरी भाग से पीछे झुकें।
  • मेरुदंड की कशेरुकाओं को धीरे-धीरे मोड़ें।

लाभ:

  • छाती, फेफड़ों और हृदय के लिए फायदेमंद
  • मेरुदंड को लचीला बनाता है
  • कंधों और गर्दन की मांसपेशियों के लिए लाभदायक

अन्य जानकारी के लिए:

www.dhakaram.com

योगाचार्य ढाका राम

संस्थापक

योगापीस संस्थान

एक कदम स्वास्थ्य से आनंद की ओर: ध्यान कैसे करें?

प्यारे मित्रों आप सभी को हमारा मुस्कुराता हुआ नमस्कार। एक कदम स्वास्थ्य से आनंद की ओर कार्यक्रम में आप सभी का स्वागत है।

आज हम एक कदम स्वास्थ्य से आनंद की ओर कार्यक्रम में ध्यान के बारे में बात करेंगे।

कई लोग सोचते हैं कि ध्यान करना बहुत मुश्किल है। मैं कहता हूं कि यह मुश्किल नहीं, बस थोड़ा अभ्यास की बात है।

ध्यान का मतलब है वर्तमान में रहना। भूतकाल या भविष्य के बारे में नहीं सोचना। यह आसान लगता है, लेकिन हमारा मन हमेशा इधर-उधर भटकता रहता है।

आज मैं आपको एक ऐसी तकनीक बताऊंगा जिससे ध्यान करना आसान हो जाएगा।

1. विचारों को आने जाने दें:

जब आप ध्यान करते हैं, तो आपके मन में तरह-तरह के विचार आते रहेंगे। अच्छे विचार भी, बुरे विचार भी।

इन विचारों पर ध्यान न दें। उन्हें आने दें और जाने दें। उन्हें केवल एक दृष्टा भाव से देखें।

2. एकाग्रता:

अपनी एकाग्रता को अपनी सांसों पर केंद्रित करें। अपनी सांसों को अंदर और बाहर आते हुए महसूस करें।

3. शांत रहें:

ध्यान करते समय शांत रहना बहुत महत्वपूर्ण है। यदि आपका मन भटकता है, तो उसे धीरे से वापस अपनी सांसों पर लाएं।

4. अभ्यास:

ध्यान एक अभ्यास है। शुरुआत में आपको मुश्किल हो सकती है, लेकिन धीरे-धीरे आपका मन शांत होने लगेगा।

कैसे बैठें:

  • किसी भी आसान में बैठें, जैसे पद्मासन, सुखासन, सिद्धासन या वज्रासन।
  • कमर और गर्दन सीधी रखें।
  • छाती फूली हुई हो।
  • पेट की मांसपेशियां शिथिल हों।
  • आंखें बंद करें।

कहां ध्यान करें:

  • आप कहीं भी ध्यान कर सकते हैं, जैसे घर, ऑफिस, यात्रा में।
  • शांत जगह चुनें।

कितने समय तक ध्यान करें:

  • शुरुआत में 5-10 मिनट तक ध्यान करें।
  • धीरे-धीरे समय बढ़ाएं।

ध्यान के लाभ:

  • तनाव कम करता है।
  • एकाग्रता बढ़ाता है।
  • मन को शांत करता है।
  • स्वास्थ्य के लिए अच्छा है।

इसी के साथ आप सभी का बहुत-बहुत आभार आप सभी खुश रहें, मस्त रहें और आनंदित रहे। आप सभी को नमन।

अधिक जानकारी के लिए:

योगाचार्य ढाका राम
संस्थापक, योगापीस संस्थान

सूर्य नमस्कार: स्वास्थ्य और आनंद का द्वार

आप सभी मित्रों को हमारा मुस्कुराता हुआ नमस्कार। एक कदम स्वास्थ्य से आनंद की ओर कार्यक्रम में आप सभी का स्वागत है।

आज हम सूर्य नमस्कार के बारे में बात करेंगे। सूर्य नमस्कार के बारे में लगभग हर कोई जानते हैं जब हम सूर्य नमस्कार की बात करते हैं तो हमारे मन में क्या भाव आते हैं जैसे कोई नदी के किनारे या कोई सूर्य भगवान को जल चढ़ा रहे हो आपने देखा भी होगा जब पूजा प्रार्थना होती है तो सूर्य भगवान को जल या अर्ह मतलब दही भी चढ़ाया जाता है है। सूर्य नमस्कार के बारे में सोचते हैं हमारे मन में सूर्य की लालिमा प्रकाश उनकी किरणें आती है। सूर्य नमस्कार पुराने समय से चला आ रहा है आप देखेंगे कि भगवान श्री राम के समय से भी सूर्य नमस्कार का प्रचलन है। रामायण में भी सूर्य नमस्कार के बारे में चर्चा की गई है। हम सूर्य नमस्कार से अपने शरीर और आत्मा का विकास कर सकते हैं। तो चलिए सूर्य नमस्कार साधना के लिए ।

  • नमस्कार आसन – सूर्य नमस्कार के लिए सबसे पहले हमें अपने एडी पंजों को मिलना है। हाथों को नमस्कार मुद्रा में लेकर आएंगे। हमारे अंगूठे हमारी छाती को छूने चाहिए मतलब हृदय कमल के पास और चेहरे पर मुस्कुराहट । अब हम आंखें बंद करके कल्पनाओं में किसी समुद्र के किनारे या पहाड़ की चोटी पर चलते हैं। वहां से हम महसूस करेगें कि हमारे सामने सूर्य प्रकाश की किरण है उनकी लालिमा हमारे शरीर पर पड़ रही है। हाथों को फैला कर हम उनसे प्रार्थना करेंगे हे सूर्य भगवान आपके अंदर जो तेज किरनें हैं जो तेज प्रकाश है उसमें से कुछ अंश हमें देकर हमें भी आपकी तरह तेजस्वी व प्रकाश वान बनाए। अब धीरे-धीरे अपने हाथों को नमस्कार मुद्रा में लाएंगे। दोनों हाथों की हथेलियां को आपस में मिलाकर नमस्कार मुद्रा में हृदय कमल की पास रखेंगे।
  • ऊर्ध्व नमस्कारासन – अब हाथों को धीरे-धीरे नासिक से स्पर्श करते हुए सिर के ऊपर की तरफ ले जाएंगे। हाथों को पूरा ऊपर की तरफ तान दे हमारे हाथ हमारे कानों को स्पर्श करते रहें। इस आसन को हम ऊर्ध्व नमस्कार आसन कहते हैं। अंगूठे को आपस में लॉक नहीं करना है।
  • उत्तानासन / पाद हस्तासन – उर्ध्व नमस्काआसन से हम उत्तानासन के लिए धीरे-धीरे हिप्स जॉइंट से आगे की ओर झुकेंगे। जब हम आगे झुके हमारे हाथ आगे की ओर खींचे हुए रहने चाहिए। अपने हाथों को हम पैरों के पास रखेंगे। हमारी कमर बिल्कुल सीधी रहनी चाहिए। सांस को बाहर निकालते जाना है और ज्यादा से ज्यादा झुकाने की कोशिश करनी है। हमारी कमर बिल्कुल सीधी रहनी चाहिए।
  • अश्व संचालन आसान – उत्तान आसान से हम अश्व संचालन में जाने के लिए पहले अपनी दाहिने पैर को पीछे की तरफ लेकर जाना है। हमारा पंजा और घुटना नीचे जमीन पर लगा हुआ रहेगा। हमारे कूल्हों को नीचे की तरफ दबाने की कोशिश करेंगे। इस आसन को हम अश्व संचालन आसन कहते हैं। इसमें हमारी दृष्टि ऊपर की तरफ रहेगी।
  • पर्वतासन – अश्व संचालन से पर्वत आसन में जाने के लिए हमारा हम अपनी बाएं पैर को पीछे दाहिने पैर के पास ले जाएंगे। हमारी एड़ियां नीचे जमीन पर लगी रहेगी। कमर से ऊपर वाले भाग का भार हाथों की तरफ और एड़ियां जमीन पर लगाने का प्रयास करेंगे। इस आसन में हम श्वास को बाहर निकलेंगे ज्यादा ध्यान देंगे।
  • भुजंगासन – पांचवा आसान है भुजंगासन। पर्वत आसान से बिना कुहनियो को मुड़े हम धीरे-धीरे कमर को नीचे की तरफ लाएँगे। हमारी छाती उठी हुई रहेगी। नितंबों को नीचे झुकाते हुए अपनी छाती को ज्यादा से ज्यादा फुलाएंगे। चेहरे पर किसी प्रकार का तनाव नहीं रखेंगे मुस्कुराते हुए करेंगे। इसमें हम स्वांस को अंदर लेने में ज्यादा फोकस करेंगे एडी पंजे मिले रहेंगे।
  • अष्टांग नमस्कार – भुजंगासन से अष्टांग नमस्कार में जाने के लिए सबसे पहले अपने पंजों को जमीन पर लगा दें उसके बाद दोनों घुटनों को फिर धीरे से अपनी छाती को जमीन पर लगाना है अंत में थुड़ी को गले पर लगाकर मस्तक को जमीन पर लगाएंगे लेकिन नाभि और नाक जमीन को स्पर्श न करें। हमारे शरीर के आठ अंग इसमें जमीन पर लगने चाहिए दो हमारे पैरों के पंजे, दो हमारे घुटने, दो हमारे हाथ, छाती और हमारा माथा। यह सूर्य नमस्कार का अंतिम चरण है इसके बाद हम आसनों का पुनरा वर्तन करेंगे जैसे हम गए थे उसी प्रकार वापस आएंगे
  • भुजंगासन – अष्टांग नमस्कार से धीरे-धीरे भुजंगासन आसन में आएंगे जैसे हम आसन में गए थे उसी प्रकार पहले का ललाट नाक थुड़ी गला और छाती को उठाते हुए भुजंगासन में आएंगे और हमारे छाती को फुलाएंगे। नितंबों को संकुचित करेंगे। कंधों को रोल करेंगे और गर्दन को रिलैक्स रखेंगे।
  • पर्वतासन – भुजंगासन से वापस पर्वतासन में आएंगे। पर्वतासन के लिए हम अपने नितंबों को ऊपर छत की तरफ तानेंगे। कमर से ऊपर वाले भाग का भार हाथों की तरफ और एड़ी को जमीन से लगाने का प्रयास करेंगे। छाती से ऊपर के हिस्से को हम नीचे खींचने का प्रयास करेंगे और कमर के निचले हिस्से को हम ऊपर की तरफ खींचने का प्रयास करेंगे।
  • अश्व संचालन – पर्वतासन के बाद हम अश्वसंचालन आसन में जाने के लिए बाय पैर को हाथों के बीच में लाकर रखेंगे। नितंब को नीचे की तरफ दबाने का प्रयास करें। छाती को फुलाने का प्रयास करेंगे और हमारी दृष्टि ऊपर की तरफ रहेगी।
  • उत्तानासन / पाद हस्तासन – अश्व संचालन से हम उत्तानासन लिए अपने दाहिने पैर को उठाकर हाथों के बीच में बाएं पैर के पास लाकर रख देंगे। अपनी क्षमता के अनुसार हम स्वांस को बाहर निकलते हुए आगे झुकने का प्रयास करेंगे।
  • ऊर्ध्व नमस्कार आसन – उत्तानासन से हम ऊर्ध्वनमस्कार आसन के लिए दोनों हाथों को नमस्कार मुद्रा में लाते हुए हाथों को खींचते हुए ऊपर की तरफ धीरे-धीरे श्वास भरते हुए उठाएंगे। ध्यान रखें हमारे हाथ हमारे कानों से लगे हुए होने चाहिए। हमारे चेहरे पर मुस्कुराहट के भाव होने चाहिए। जितना हम हाथों को ऊपर तान सकते हैं हमें तानना है।
  • नमस्कार आसन -उत्तानासन से हम धीरे-धीरे नमस्कार आसन के लिए हाथों को नीचे लाना है। हमारे हाथ छाती के सामने आ जाएंगे नमस्कार मुद्रा में।

इसी प्रकार जब हम दो बार दोहराते हैं तो हमारा एक सूर्य नमस्कार पूरा होता है। मतलब पहले दाहिने पैर पीछे जाएगा अश्व संचालन के लिए और दूसरी बार में बाया पैर पीछे जाएगा इस प्रकार से सूर्य नमस्कार का एक चक्र पूरा होगा नमस्कार का राउंड पूरा होने के बाद सूर्य की किरणों और लालिमा को अपने तन और मन में महसूस करते हुए हम शवासन में लेट जाएंगे।

शवासन में हमारे पैरों के बीच में एक से डेढ़ फीट का फैसला होना चाहिए। हमारे एड़िया अंदर की तरफ पंजे बाहर की तरफ होने चाहिए। हाथ हमारे बगल में हथेलियां ऊपर की तरफ आधी खुली हुई होनी चाहिए। हमारा पूरा शरीर विश्राम की अवस्था में होना चाहिए। डेढ़ से 2 मिनट तक इसी अवस्था में रहने पर अपने शरीर में विश्राम महसूस होता है। अब धीरे से बगल से करवट लेते हुए बैठ जाए।

ध्यान रखने योग्य बातें:

  • जब जब हम हाथों को नमस्कार मुद्रा से ऊर्ध्व नमस्कार की तरफ ले जाते हैं तो हाथों की उंगलियों को मोड़ना नहीं है और उंगलियां हमारी नासिक को स्पर्श करते हुए ऊपर की तरफ जाएं।
  • जब हम उत्तानासन में जाएं तो हमें नितंबों से मुड़ते हुए नीचे जाना चाहिए। हमारी कमर इसमें सीधी रहनी चाहिए। जब हम पर्वत आसन करते हैं तो हमारा घुटना कभी भी हमारे पंजे से आगे नहीं जाना चाहिए। जब हम पर्वत आसान करते हैं तो हमारा घुटना नहीं मुड़ना चाहिए। भुजंगासन में हमारा पंजा सीधा रहना चाहिए और छाती फूली हुई रहनी चाहिए। अष्टांग नमस्कार में हमारे नाभि और नाक जमीन को स्पर्श न करें।
  • जिनको चक्कर आते हैं, जिनका हाई ब्लड प्रेशर है, जिनकी कमर में दर्द है, जिनके घुटनों में दर्द है और गर्दन में दर्द है उनको सूर्य नमस्कार नहीं करना चाहिए।
  • सूर्य नमस्कार को ज्यादा करना आवश्यक नहीं है लेकिन सही ढंग से करना आवश्यक है। अगर हम सूर्य नमस्कार को सही ढंग से करते हैं तो हमें 10 से 12 मिनट लगते हैं। प्रत्येक आसन में कम से कम 15 से 20 सेकंड रुकना चाहिए तभी जाकर उसका बेहतर फायदा हमें मिलता है।
  • सूर्य नमस्कार के क्रम में एक, तीन, पाँच, सात, नौ, ग्यारह में श्वास लेने का प्रयास करना चाहिए और दो, चार, छः, आठ, दस, बारह में श्वास निकालने में ज्यादा ध्यान देना चाहिए।

सूर्य नमस्कार के लाभ:

  1. सूर्य नमस्कार से सिर के चोटी से लेकर पैरों के पंजे तक सारे शरीर का व्यायाम हो जाता है जैसे हृदय, यकृत, आँत, पेट, छाती, गला, पैर इत्यादि
  2. शरीर के सभी अंगो के लिए बहुत ही लाभदायक हैं।
  3. सूर्य नमस्कार सिर से लेकर पैर तक शरीर के सभी अंगो को बहुत लाभान्वित करता है
  4. सूर्य नमस्कार के नियमित अभ्यास से शरीर, मन और आत्मा का विकास होता हैं।
  5. पृथ्वी पर सूर्य के बिना जीवन संभव नहीं है इसीलिए यहां हमारे जीवन का बहुत ही विशेष अंग है इसलिए हम इन्हें भगवान कहते हैं।
  6. सूर्य नमस्कार के शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक और मनोवैज्ञानिक कई लाभ है
  7. हमारे शरीर की मांसपेशियां मजबूत और लचीली होती हैं

अगर सही तरीके से करें तो सूर्य नमस्कार हमारे शरीर की रोम रोम को आनंद से भर देता है।

सावधानियां:

  • माहवारी (मेंस्ट्रुअल साइकिल) के दौरान नहीं करना चाहिए
  • घुटनों में और कमर में ज्यादा दर्द हो तो भी नहीं करना चाहिए
  • हृदय से संबंधित समस्या वाली लोगों को इसका अभ्यास नहीं करना चाहिए
  • गर्भावस्था के दौरान इसे नहीं करना चाहिए
  • जल्दी-जल्दी हड़बड़ी में नहीं करना चाहिए

आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद। आप सभी को हमारा मुस्कुराता हुआ नमस्कार।

अधिक जानकारी के लिए : www.dhakaram.com

योगाचार्य ढाका राम
संस्थापक, योगा पीस संस्थान