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शीर्षासन (भाग 1) – आसनों का राजा

प्यारे मित्रों, आप सभी को हमारा मुस्कुराता हुआ नमस्कार।
“एक कदम स्वास्थ्य से आनंद की ओर” आर्टिकल सीरीज़ में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।

आज हम बात करेंगे शीर्षासन के बारे में।
शीर्षासन को आसनों का राजा कहा जाता है। यह संस्कृत के दो शब्दों — ‘शीर्ष’ (सिर) और ‘आसन’ (मुद्रा) — से मिलकर बना है। शीर्षासन सबसे अधिक लाभ देने वाला आसन माना गया है क्योंकि यह हमारे अंतःस्रावी प्रणाली (Endocrine System) को सक्रिय करता है।


शीर्षासन करते समय सावधानियाँ और तैयारी

यदि आपको शीर्षासन आता है, तो भी इसे किसी को दिखाने के लिए अचानक न करें
यह एक साधना है जिसे पूरे मन और तैयारी के साथ करना चाहिए।

हमारे सिर की त्वचा पैरों की तुलना में अधिक संवेदनशील होती है, इसलिए सुरक्षा और स्थिरता का ध्यान रखना आवश्यक है।


शीर्षासन की विधि

  1. आवश्यक सामग्री:
    एक कंबल या चटाई लें जिसकी लंबाई लगभग 2 फीट, चौड़ाई 2 फीट और ऊँचाई 2 से 3 इंच हो।
  2. हाथों की स्थिति:
    हाथों की उंगलियों को आपस में फंसा लें और कोहनियों को कंधों की चौड़ाई जितना खोलें।
    अब कोहनियाँ और उंगलियाँ मिलाकर त्रिकोण बनाएं।
  3. सिर की स्थिति:
    सिर के सबसे ऊपरी भाग को जमीन पर रखें और हथेलियाँ सिर के उभरे हुए हिस्से पर टिकाएँ।
  4. शरीर की स्थिति:
    कमर सीधी रखें, दोनों घुटनों को मोड़ते हुए धीरे-धीरे पैरों को ऊपर उठाएँ।
    फिर पैरों को सीधा करें और शरीर को संतुलित करें।
    नितंब संकुचित रहें और श्वास सामान्य रखें।
  5. अवधि:
    शुरुआती अभ्यास में 1–2 मिनट पर्याप्त हैं।
    अभ्यास बढ़ने पर 5 मिनट तक शीर्षासन करें।

शीर्षासन के बाद की स्थिति

आसन से बाहर आते समय धीरे-धीरे पैरों को मोड़ें और शशांक आसन में आएँ।
सिर को हाथों पर रखकर कुछ समय विश्राम करें।
इसके बाद शवासन में लेटकर शरीर को पूर्ण आराम दें।

ध्यान रखें कि गर्दन पर अधिक तनाव न पड़े — इसके लिए कंधों को हल्का ऊपर उठाकर रखें।


शीर्षासन के लाभ

  • चेहरे पर स्वाभाविक चमक आती है।
  • बालों का झड़ना रुकता है और वे घने व काले बनते हैं।
  • पाचन तंत्र मजबूत होता है।
  • अंतःस्रावी ग्रंथियाँ सक्रिय होकर हार्मोन संतुलन बनाती हैं।
  • संपूर्ण शरीर पर सकारात्मक प्रभाव डालता है।

शीर्षासन करते समय सावधानियाँ

  • कभी भी जल्दबाजी या झटके से पैरों को ऊपर न उठाएँ।
  • गर्दन पर अधिक दबाव न डालें।
  • अभ्यास हमेशा खाली पेट और योग्य प्रशिक्षक की देखरेख में करें।

तो प्यारे मित्रों, आप सभी को सत्-सत् नमन।
अगले भाग में हम शीर्षासन से जुड़े और गहराईपूर्ण रहस्यों को जानेंगे।

योगाचार्य ढाकाराम
संस्थापक – योगापीस संस्थान

शांत मन, स्वस्थ जीवन: तीन प्रभावशाली प्राणायाम

हरि ओम।
हरि ओम आप सभी को हमारा मुस्कुराता हुआ नमस्कार। कहते हैं मुस्कुराहट के बिना कुछ नहीं है इसलिए हमेशा मुस्कुराते रहना चाहिए। “एक कदम स्वास्थ्य से आनंद की ओर” इस श्रृंखला में आपका स्वागत है।

आज हम चर्चा करेंगे तीन विशेष प्राणायामों की,
जो मन की शांति और स्वस्थ जीवन के लिए अत्यंत उपयोगी हैं —
कपालभाति, भस्त्रिका, और अनुलोम-विलोम प्राणायाम


शरीर के तीन मुख्य भाग और प्राणायाम का प्रभाव

हमारे शरीर को यदि तीन प्रमुख हिस्सों में बाँटें —

  • सिर (मस्तिष्क)
  • छाती (फेफड़े, हृदय)
  • पेट (पाचन तंत्र)

तो इन तीनों प्राणायामों का असर क्रमशः इन तीन अंगों पर पड़ता है:

प्राणायामप्रभाव का क्षेत्र
कपालभातिपेट (पाचन तंत्र)
भस्त्रिकाछाती (फेफड़े व हृदय)
अनुलोम-विलोममस्तिष्क व मन (नाड़ी शुद्धि)

कपालभाति प्राणायाम

लाभ:

  • पाचन तंत्र को मजबूत बनाता है।
  • पेट के अंगों की मालिश होती है।
  • श्वसन प्रणाली की शुद्धि करता है।

विधि:

  • सुखासन, पद्मासन या स्वास्तिक में बैठें।
  • प्राण मुद्रा में हाथ रखें (सर्वोत्तम विकल्प)।
  • आँखें बंद करें। श्वास को झटके से बाहर निकालें।
  • हर श्वास निष्कासन पर पेट अंदर की ओर स्वतः खिंचता है।
  • कम से कम 4–5 मिनट करें।
  • अंत में 1 मिनट विश्राम करें और शरीर का निरीक्षण करें।

सावधानियाँ:

  • गर्भवती महिलाएं, माहवारी के दौरान, अल्सर, हर्निया, कमर दर्द या पेट ऑपरेशन के बाद न करें।

भस्त्रिका प्राणायाम

लाभ:

  • फेफड़ों और हृदय की कार्यक्षमता बढ़ाता है।
  • शरीर में ऑक्सीजन की आपूर्ति बढ़ाता है।
  • मन को शांत करता है, रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है।

विधि:

  • पद्मासन या कोई भी आरामदायक आसन लें।
  • दोनों हाथों को श्वास भरते समय सिर के ऊपर ले जाएं।
  • श्वास छोड़ते हुए हाथों को जांघों पर ले आएं।
  • आंखें बंद रखें और यह प्रक्रिया कम से कम 4 मिनट करें।
  • बाद में 1 मिनट विश्राम और अवलोकन करें।

अनुलोम-विलोम प्राणायाम

लाभ:

  • मस्तिष्क को शीतलता और शांति प्रदान करता है।
  • एकाग्रता, स्मरण शक्ति, तनाव, माइग्रेन, रक्तचाप आदि समस्याओं में लाभकारी।
  • मानसिक संतुलन और स्थिरता लाता है।

विधि:

  • किसी भी आरामदायक आसन में बैठें।
  • नासिका मुद्रा (अंगूठा और अनामिका से) बनाएं।
  • दायीं नासिका बंद कर बायीं से श्वास लें → दायीं से निकालें → फिर दायीं से लें → बायीं से निकालें।
  • यह चक्र दोहराते रहें।
  • समाप्ति बायीं नासिका से श्वास बाहर निकाल कर करें।
  • बाद में विश्राम करें और परिवर्तन महसूस करें।

निष्कर्ष: योगमय जीवन की ओर

  • जीवन में योग और प्राणायाम को अपनाएं।
  • नियमित अभ्यास से मन, शरीर और आत्मा तीनों में संतुलन आता है।
  • यह तीन प्राणायाम मन को स्थिरता और भीतर की शांति देते हैं।

प्रिय मित्रों,
आपका हृदय से धन्यवाद, हमेशा मुस्कुराते रहें, आनंदित रहें।
स्वस्थ जीवन की ओर हर दिन एक कदम आगे बढ़ाएं।


योगाचार्य ढाका राम
संस्थापक, योगापीस संस्थान

एक कदम स्वास्थ्य से आनंद की ओर : पर्वतासन

हरि ओम 🙏 आप सभी को हमारा मुस्कुराता हुआ नमस्कार।

एक कदम स्वास्थ्य से आनंद की ओर कार्यक्रम में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।

आजकल हमारे ब्लॉग सूर्य नमस्कार की श्रृंखला पर चल रहे हैं। पिछले ब्लॉग में हमने अश्व संचालन आसन के बारे में जाना था। आज हम बात करेंगे पर्वतासन (Mountain Pose) के बारे में।

शरीर की स्थिति पर्वत के समान होने के कारण इस आसन को पर्वतासन कहते हैं। यह हमारे पूरे शरीर के लिए अत्यंत लाभकारी है। जब हम इसे करते हैं, तो यह शरीर में खिंचाव लाता है, शक्ति प्रदान करता है और मन को शांत करता है।


अश्व संचालन आसन से पर्वतासन में कैसे आएं

  • अश्व संचालन आसन में हमारा दायाँ पैर पीछे रहता है।
  • पर्वतासन में आने के लिए कमर को ऊपर उठाते हुए धीरे से बायाँ पैर भी पीछे ले जाएँ।
  • बाएँ पैर की एड़ी को दाएँ पैर की एड़ी से मिलाएँ।
  • नितंबों और लोअर बैक को ऊपर की ओर खींचकर रखें।
  • सिर हमारे हाथों के बीच में रहेगा।
  • दोनों पैर सीधे रहेंगे और एड़ियाँ जमीन से लगी रहेंगी।
  • नितंब ऊपर आकाश की ओर खिंचे रहेंगे।

पर्वतासन करते समय ध्यान रखें

  • घुटने सीधे रहेंगे।
  • एड़ियों को जमीन से लगाने का प्रयास करेंगे।
  • शरीर का संतुलन बनाते हुए कम से कम 20 सेकंड इसी अवस्था में रुकने का प्रयास करें।

पर्वतासन के लाभ

  • कंधों को मजबूत बनाता है।
  • पैरों के लिए अत्यंत लाभकारी है।
  • सिर की ओर रक्त संचार बढ़ने से चेहरे पर निखार आता है।
  • दिमाग सक्रिय और दुरुस्त रहता है।
  • मेरुदंड को लचीला बनाता है।

विशेष टिप्पणी

जब हम पर्वतासन करते हैं तो चेहरा नीचे की ओर होता है। इससे रक्त का प्रवाह चेहरे की ओर बढ़ता है और त्वचा में ताजगी एवं चमक आती है।

अगले ब्लॉग की झलक

प्यारे मित्रों! अगले ब्लॉग में हम भुजंगासन के बारे में बात करेंगे। आप सब हमारे साथ इसी प्रकार जुड़े रहें और अपने स्वास्थ्य का लाभ उठाते रहें।

तो प्यारे मित्रों, आप सभी को सत-सत नमन।
आप सभी खुश रहें, मस्त रहें और आनंदित रहें।

योगाचार्य ढाकाराम
संस्थापक – योगापीस संस्थान

महामंत्र हरि ॐ

हरि ॐ का आध्यात्मिक अर्थ

हरि” का अर्थ है वह परम शक्ति जो सृष्टि का पालन करती है — भगवान विष्णु
” को प्रणव कहा गया है, जो सम्पूर्ण ब्रह्मांड का मूल स्वर है।
वेद और उपनिषद इसे सर्वोच्च ध्वनि मानते हैं — सृष्टि के आरंभ और अंत दोनों में इसका अस्तित्व है।

जब “हरि ॐ” का संयुक्त उच्चारण किया जाता है, तो यह मंत्र साधक को दिव्य ऊर्जा से जोड़कर ईश्वर के साथ प्रत्यक्ष संबंध स्थापित करता है।


अभ्यास की विधि

  1. बैठने की स्थिति
    • साधक को शांत मन से सुखासन में बैठना चाहिए।
    • रीढ़ को सीधा रखें, ताकि ऊर्जा का प्रवाह ऊपर की ओर सहज हो सके।
  2. “हरि” उच्चारण के समय
    • दोनों हाथों को साइड से फैलाते हुए ऊपर उठाएँ।
    • यह क्रिया ब्रह्मांडीय ऊर्जा को आमंत्रित करने का प्रतीक है।
    • इससे हृदय चक्र और आज्ञा चक्र सक्रिय होते हैं।
  3. “ॐ” उच्चारण के समय
    • होंठ मिलाने के साथ दोनों हथेलियाँ नमस्कार मुद्रा में आ जाएँ।
    • यह समर्पण और एकता का प्रतीक है।
    • इस समय सहस्रार चक्र सक्रिय होता है और दिव्य ऊर्जा अवतरित होती है।
  1. “म्” ध्वनि के साथ
    • शरीर को झुकाकर माथा भूमि पर स्पर्श कराएँ।
    • दोनों हाथ आगे खींचें, जिससे इड़ा और पिंगला नाड़ी संतुलित हों।
    • ध्यान रखें, कूल्हे ज़मीन से न उठें — अन्यथा मूलाधार चक्र का पृथ्वी से संपर्क टूट जाता है।

लाभ

  • मस्तिष्क शांत होता है, तंत्रिका तंत्र संतुलित रहता है।
  • हृदय गति सामान्य होती है, रक्तचाप नियंत्रित रहता है।
  • रीढ़ सीधी रहने से स्नायु तंत्र सक्रिय होता है।
  • मूलाधार, मणिपुर और सहस्रार चक्र जागृत होते हैं।
  • मानसिक तनाव, चिंता और डर कम होते हैं।
  • शरीर में सकारात्मक कंपन उत्पन्न होते हैं, जो आत्मा को गहराई से स्पर्श करते हैं।

आध्यात्मिक महत्त्व

“हरि ॐ” के अभ्यास से साधक धीरे-धीरे आत्मा की शुद्धता की ओर बढ़ता है।
उसकी चेतना सीमित अहं से निकलकर असीम ब्रह्मांड से जुड़ने लगती है।

  • योग में यह साधना शरीर और मन को संतुलित करती है।
  • भक्ति में यह ईश्वर से आत्मिक जुड़ाव कराती है।
  • ज्ञान में यह आत्मा को सत्य की ओर ले जाती है।

उपसंहार

हरि ॐ” केवल एक शब्द या ध्वनि नहीं, बल्कि एक गहन आध्यात्मिक और वैज्ञानिक प्रक्रिया है।
सही मुद्रा, भाव और समर्पण के साथ इसका अभ्यास शरीर, मन और आत्मा को पूर्ण रूप से जागृत करता है।

यह मंत्र साधक के भीतर छिपी दिव्यता को प्रकट करता है और ब्रह्मांड की अनंत ऊर्जा से जोड़ देता है।

आप सभी खुश रहें, मस्त रहें और आनंदित रहें।
धन्यवाद!

योगाचार्य ढाकाराम
संस्थापक, योगापीस संस्थान

मुस्कान के साथ स्वास्थ्य की ओर – उत्थित पद्मासन का अभ्यास

हरि ओम!
आप सभी को हमारा मुस्कुराता हुआ नमस्कार। कहते हैं – मुस्कुराहट के बिना कुछ नहीं, इसलिए आइए हमेशा मुस्कुराते रहें।
“एक कदम स्वास्थ्य से आनंद की ओर” कार्यक्रम में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।

आज का विषय: उत्थित पद्मासन (Uttit Padmasana)

‘उत्थित’ का अर्थ है – उठा हुआ, और ‘पद्मासन’ का अर्थ है – कमल की मुद्रा।
अतः उत्थित पद्मासन = उठा हुआ पद्मासन

अभ्यास विधि:

  1. पद्मासन में बैठना:
    • दंडासन में बैठ जाएं।
    • दाहिने पैर को मोड़ें और एड़ी को नाभि से सटाकर बाईं जांघ पर रखें।
    • फिर बाएं पैर को मोड़कर उसकी एड़ी को दाईं जांघ पर रखें।
  2. हाथों की स्थिति:
    • दोनों हथेलियाँ जमीन पर रखें – नितंबों के दोनों ओर।
  3. उत्थान प्रक्रिया:
    • धीरे-धीरे शरीर को ऊपर उठाएं।
    • कमर बिल्कुल सीधी रखें।
    • नितंब और घुटने जमीन के समांतर हों।
    • दोनों हाथ सीधे और कोहनियाँ बिना मुड़े रहें।
    • दृष्टि सामने रखें।
  4. स्थिति बनाए रखें:
    • 30 सेकंड से लेकर 1 मिनट तक इस अवस्था में रहें।
    • शरीर को यथासंभव ऊपर उठाने का प्रयास करें।
  5. वापस आने की प्रक्रिया:
    • धीरे-धीरे जिस क्रम में गए थे उसी तरह वापस आएं।
    • आंखें बंद करें और शरीर में आए परिवर्तन का अवलोकन करें।

लाभ (Benefits):

  • कंधे मजबूत बनते हैं।
  • मेरुदंड (spine) को बल और लचीलापन मिलता है।
  • पेट की मांसपेशियों में खिंचाव आकर पाचन तंत्र सुधरता है।

यदि पद्मासन न लगे तो क्या करें?

  • सुखासन में भी यह आसन किया जा सकता है।
  • जो पैरों को न उठा सकें, वे केवल नितंब उठाकर अभ्यास शुरू करें।
  • अभ्यास के साथ कंधों में ताकत आएगी और धीरे-धीरे पूरा आसन संभव हो जाएगा।

सावधानियाँ (Precautions):

  • गर्भवती महिलाएं यह आसन न करें।
  • जिनका हाल ही में पेट का ऑपरेशन हुआ हो, वे भी न करें।
  • जिनकी कलाई में दर्द हो, वे इस अभ्यास से बचें।

प्रिय मित्रों,
आप हमारे साथ नियमित अभ्यास करते रहें। अगर कोई आसन नहीं होता, तो अभ्यास करते रहें – धीरे-धीरे सब संभव होगा। घबराने की जरूरत नहीं है।
हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं – आप स्वस्थ, मस्त और आनंदित रहें।

आप सभी का हार्दिक आभार।

योगाचार्य ढाकाराम
संस्थापक – योगापीस संस्थान

एंजायटी को कम करने का सरल उपाय: भस्त्रिका प्राणायाम

हरि ओम, आप सभी को हमारा मुस्कुराता हुआ नमस्कार! कहते हैं, मुस्कुराहट के बिना कुछ नहीं है, इसलिए हमेशा मुस्कुराते रहना चाहिए। “एक कदम स्वास्थ्य से आनंद की ओर” कार्यक्रम में आप सभी का स्वागत है।

एंजायटी: आज की सबसे बड़ी समस्या

आज हम बात करेंगे एंजायटी के बारे में और जानेंगे कि इसे कैसे कम किया जाए। आजकल हर किसी को एंजायटी होने लगी है। समय के साथ आकांक्षाएं और महत्वाकांक्षाएं बढ़ गई हैं, जिससे हर समय तनाव बना रहता है।

आज हम एक बिल्कुल सरल अभ्यास बताएंगे, जिसे करके आप एंजायटी से मुक्त रह सकते हैं। हम पहले भी भस्त्रिका प्राणायाम के बारे में चर्चा कर चुके हैं, लेकिन आज हम इसे एंजायटी मैनेजमेंट के लिए समझेंगे।

भस्त्रिका प्राणायाम: एंजायटी से मुक्ति का मार्ग

भस्त्रिका प्राणायाम एक ऐसा अभ्यास है, जिसे आप रोज करके अपने आप को तनावमुक्त रख सकते हैं। इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसे कभी भी, कहीं भी किया जा सकता है—चाहे आप सोफ़े पर बैठे हों, कुर्सी पर हों, या फिर जमीन पर। बस जरूरत है तो सांसों पर ध्यान केंद्रित करने की।

जब हम भस्त्रिका करते हैं, तो हमारा पूरा ध्यान सांसों पर होता है, जिससे मन शांत रहता है और एंजायटी दूर होती है।

भस्त्रिका प्राणायाम करने की विधि

  1. आसन: पद्मासन में बैठें। अगर पद्मासन में बैठने में कठिनाई हो, तो किसी भी आरामदायक मुद्रा में बैठ सकते हैं।
  2. हाथों की स्थिति:
  • श्वास भरते हुए हाथों को छाती के सामने से सिर के ऊपर ले जाएं (हथेलियाँ सामने की ओर)।
  • श्वास छोड़ते हुए हाथों को वापस छाती के सामने लाकर जांघों पर रख दें।
  1. अवधि: कम से कम 4 मिनट तक करें, फिर 1 मिनट का विश्राम लें।
  2. अनुभूति: अभ्यास से पहले और बाद में अपने शरीर में होने वाले परिवर्तनों को महसूस करें।
  3. नियमितता: प्रतिदिन कम से कम 5 मिनट भस्त्रिका प्राणायाम जरूर करें।

भस्त्रिका प्राणायाम के लाभ

  • मन की शांति: जब हम आंखें बंद करके भस्त्रिका करते हैं और ध्यान सांसों पर केंद्रित होता है, तो मन इधर-उधर नहीं भटकता। इससे मन शांत रहता है और एंजायटी कम होती है।
  • गहरी सांस का महत्व: जितना हमारा श्वास लंबा और गहरा होगा, मन उतना ही शांत रहेगा। मन और सांस का गहरा संबंध है।
  • ऑक्सीजन की आपूर्ति: भस्त्रिका से फेफड़ों में ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ती है, जो रक्त के माध्यम से पूरे शरीर में पहुँचती है। इससे ऊर्जा बढ़ती है और एंजायटी कम होती है।
  • हृदय व फेफड़ों के लिए फायदेमंद: यह प्राणायाम हृदय और फेफड़ों से जुड़ी समस्याओं को दूर करने में सहायक है।
  • रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है: नियमित अभ्यास से इम्यूनिटी मजबूत होती है।

निष्कर्ष: योग को अपनाएं, स्वस्थ जीवन जिएं

अपने जीवन को योगमय बनाएं। नियमित रूप से आसन और प्राणायाम का अभ्यास करें। प्यारे मित्रों, हमारे साथ जुड़े रहें और अपने स्वास्थ्य का लाभ उठाते रहें।

आप सभी खुश रहें, मस्त रहें और आनंदित रहें।
धन्यवाद!

योगाचार्य ढाकाराम
संस्थापक, योगापीस संस्थान

हनुमान आसन: लचीलापन और शक्ति का संगम

हरि ओम!
आप सभी को हमारा मुस्कुराता हुआ नमस्कार।
कहते हैं — “मुस्कुराहट के बिना जीवन अधूरा है,”
इसलिए हमेशा मुस्कुराइए और स्वस्थ रहिए।

“एक कदम स्वास्थ्य से आनंद की ओर” कार्यक्रम में आपका हार्दिक स्वागत है।
आज हम बात करेंगे एक अद्भुत एवं शक्तिशाली योगासन — हनुमान आसन के बारे में।

हनुमान आसन का परिचय

  • यह एक उन्नत (एडवांस) योगासन है।
  • इससे पैरों में शक्ति, मांसपेशियों में लचीलापन और पेल्विक रीजन में मजबूती आती है।
  • यह आसन शरीर में ऊर्जा का संचार करता है और संतुलन की भावना को विकसित करता है।

हनुमान आसन की विधि

  1. सीधे खड़े होकर पैरों को जितना संभव हो खोलें।
  2. शरीर को दाहिनी ओर मोड़ें, दोनों हाथ जांघों के पास रखें।
  3. दाएं पैर का पंजा 90° पर मोड़ें, और बाएं पैर को पीछे की ओर सीधा करें।
  4. धीरे-धीरे पैरों को फैलाएं, जल्दबाजी न करें।
  5. पीछे का घुटना सीधा रखें और पैर को पीछे ले जाएं
  6. आगे वाले पैर को आगे ले जाकर पंजा सीधा रखें।
  7. धीरे-धीरे जांघ जमीन से सटा दें
  8. इस स्थिति में 1-2 मिनट तक रुकें।
  9. फिर धीरे-धीरे पूर्व स्थिति में लौटें।
  10. अब यही प्रक्रिया बाएं पैर से दोहराएं।

सावधानियाँ और अभ्यास के सुझाव

  • धैर्य रखें, जितना बन पाए उतना करें।
  • जहाँ तक पैर खुलें वहाँ पर रुकें और 1-2 मिनट स्थिर रहें।
  • दोनों ओर बराबर अभ्यास करना आवश्यक है।
  • नियमित अभ्यास से हर सप्ताह लचीलापन बढ़ेगा
  • रोज़ 10 मिनट अभ्यास से 3-4 महीनों में पूर्ण आसन संभव हो सकता है।

अभ्यास को और प्रभावी बनाने की तकनीक

  1. दंडासन में बैठें, पैरों को सामने खोलें।
  2. कमर सीधी रखकर आगे की ओर झुकें – 1 मिनट रुकें
  3. फिर दाईं ओर शरीर मोड़ते हुए हनुमान आसन में जाएँ – 1 मिनट रुकें
  4. फिर बाईं ओर भी यही प्रक्रिया दोहराएं।
  5. तीनों दिशाओं में यह अभ्यास 3 बार दोहराएं
  6. अंत में सामने की ओर झुककर 1 मिनट रुकें और फिर विश्राम करें।

हनुमान आसन के लाभ

  • पेल्विक क्षेत्र को मजबूती देता है।
  • पैरों की मांसपेशियों को लचीलापन प्रदान करता है।
  • रीढ़ की हड्डी और छाती को मजबूती देता है।
  • मानसिक स्थिरता और आत्मविश्वास को बढ़ाता है।

आत्मबोधन और समर्पण का अभ्यास

योग केवल शरीर का नहीं, आत्मा और मन का भी अभ्यास है।
धैर्य, समर्पण और नियमितता से आप हर योगासन को पूर्णता की ओर ले जा सकते हैं।
अपने शरीर की सीमाओं को पहचानिए और धीरे-धीरे उसे विस्तार दीजिए।

तो प्यारे मित्रों,
आप सभी को सत-सत नमन।
आप हमेशा स्वस्थ, मस्त और आनंदित रहें।
हमारे साथ बने रहें और योग के माध्यम से अपने जीवन को धन्य बनाते रहें।

आपका योगमित्र,
योगाचार्य ढाकाराम
संस्थापक – योगापीस संस्थान

वक्रासन (Whole Spinal Twist Pose)

अर्थ

इस आसन में शरीर की स्थिति वक्र (मुड़ी हुई) के समान होने के कारण इसे वक्रासन कहा जाता है। यह अर्धमत्स्येन्द्रासन का एक सरल रूप है।

विधि (करने का तरीका)

बाईं ओर से करने की विधि:

  1. प्रारंभिक स्थिति: कमर सीधी रखते हुए दण्डासन में बैठें।
  2. पैरों की स्थिति: बाएं पैर को मोड़कर, बाएं पैर का तलवा दाएं घुटने के बगल में रखें। बाएं घुटने की दिशा ऊपर (आसमान) की ओर होनी चाहिए।
  3. हाथों की स्थिति: दाएं हाथ को ऊपर उठाकर बाएं पैर के टखने या पंजे को पकड़ें।
  4. मरोड़ने की क्रिया: कमर से बाईं ओर मुड़ते हुए बाएं हाथ को पीछे जमीन पर रखें।
  5. गर्दन व दृष्टि: गर्दन को बाईं ओर घुमाकर पीछे की ओर देखें। शरीर को सीधा रखने का प्रयास करें।
  6. स्थिति में रुकें: इस अवस्था में 30 सेकंड से 1 मिनट तक बने रहें।
  7. वापस आना: धीरे-धीरे सामान्य स्थिति में आकर विश्राम करें।

दाईं ओर से करने की विधि:

  1. प्रारंभिक स्थिति: कमर सीधी रखते हुए दण्डासन में बैठें।
  2. पैरों की स्थिति: दाएं पैर को मोड़कर, दाएं पैर का तलवा बाएं घुटने के बगल में रखें। दाएं घुटने की दिशा ऊपर की ओर होनी चाहिए।
  3. हाथों की स्थिति: बाएं हाथ को ऊपर उठाकर दाएं पैर के टखने या पंजे को पकड़ें।
  4. मरोड़ने की क्रिया: कमर से दाईं ओर मुड़ते हुए दाएं हाथ को पीछे जमीन पर रखें।
  5. गर्दन व दृष्टि: गर्दन को दाईं ओर घुमाकर पीछे की ओर देखें। शरीर को सीधा रखें।
  6. स्थिति में रुकें: इस अवस्था में 30 सेकंड से 1 मिनट तक बने रहें।
  7. वापस आना: धीरे-धीरे सामान्य स्थिति में आकर विश्राम करें।

लाभ

  • रीढ़ की हड्डी को मजबूती: मेरुदंड की कशेरुकाएं व मांसपेशियाँ लचीली व मजबूत होती हैं।
  • पाचन तंत्र सुधारे: पेट की चर्बी घटाने व पाचन क्रिया को दुरुस्त करने में सहायक।
  • रोगों में लाभ: कब्ज, गैस, लीवर की कमजोरी, नसों की दुर्बलता और कमर दर्द से राहत।
  • मधुमेह नियंत्रण: डायबिटीज को कंट्रोल करने में फायदेमंद।

सावधानियाँ एवं संशोधन

  • गर्दन दर्द: यदि गर्दन में दर्द हो, तो ज्यादा पीछे न देखें।
  • शरीर सीधा रखें: कमर, पीठ और गर्दन को सीधा रखने का प्रयास करें।
  • संशोधन: यदि पैर का टखना पकड़ने में कठिनाई हो, तो ज़ोर न लगाएं। केवल धड़ को मोड़ने पर ध्यान दें या योगा ब्लॉक का सहारा लें।

इन स्थितियों में न करें:

  • मासिक धर्म के दौरान
  • गर्भावस्था में

योगाचार्य ढाका राम
संस्थापक, योगापीस संस्थान

एक पाद सुप्त पादांगुष्ठासन: स्वास्थ्य से आनंद की ओर एक कदम

प्यारे मित्रों,
आप सभी को हमारा मुस्कुराता हुआ नमस्कार।
‘एक कदम स्वास्थ्य से आनंद की ओर’ कार्यक्रम में आपका हार्दिक स्वागत है।

आज हम जिस योगासन की बात करने जा रहे हैं, वह है एक पाद सुप्त पादांगुष्ठासन। यह आसन खासतौर पर पैरों से जुड़ी समस्याओं में अत्यंत लाभदायक है। जिन लोगों को एड़ियों, पिंडलियों, घुटनों या जांघों में दर्द रहता है, उन्हें यह आसन दिन में तीन बार अवश्य करना चाहिए। यह न केवल पैरों को मजबूती प्रदान करता है बल्कि रीढ़ की हड्डी में लचक भी बढ़ाता है।

आसन करने की विधि:

पहला चरण (दाहिने पैर से):

  1. सबसे पहले शवासन में लेट जाएं।
  2. दाहिने पैर को मोड़कर छाती की ओर लाएं।
  3. दाहिने हाथ से दाहिने पैर के अंगूठे को पकड़ें।
  4. धीरे-धीरे घुटने को सीधा करने का प्रयास करें।
  5. अपनी क्षमता अनुसार पैर को अपनी ओर खींचें।
  6. 1 मिनट तक इसी स्थिति में रहें।
  7. फिर धीरे-धीरे वापस शवासन में आ जाएं और शरीर का अवलोकन करें।

दूसरा चरण (बाएं पैर से):

  1. बाएं पैर को मोड़ें और छाती की ओर लाएं।
  2. बाएं हाथ से बाएं पैर के अंगूठे को पकड़ें।
  3. धीरे-धीरे घुटने को सीधा करें।
  4. पैर को अपनी ओर खींचें और 1 मिनट तक इसी अवस्था में रहें।
  5. इसके बाद शवासन में विश्राम करें और आसन से पहले और बाद के परिवर्तन को महसूस करें।

विकल्प:

यदि आप अपने पैर का अंगूठा या एड़ी नहीं पकड़ पा रहे हैं, तो योगा बेल्ट, चुन्नी, तौलिया या बेडशीट का उपयोग कर सकते हैं।

  1. शवासन में लेटकर दाहिने पैर के पंजे पर योगा बेल्ट लगाएं (छोटी उंगली के नीचे)।
  2. धीरे-धीरे पैर को सीधा करें।
  3. ध्यान रखें कि दोनों पैर सीधे हों और पंजे शरीर की ओर खिंचे हों।
  4. अपनी क्षमता अनुसार 90 डिग्री तक या उससे अधिक पैर को ऊपर उठाएं।
  5. 1 मिनट तक इसी स्थिति में रहें, फिर धीरे-धीरे वापस शवासन में आ जाएं।
  6. अब यही प्रक्रिया बाएं पैर से दोहराएं।

दोनों तरफ समान अभ्यास के बाद शवासन में विश्राम करें और शरीर को पूरी तरह ढीला छोड़ दें। फिर धीरे से करवट लेते हुए बैठ जाएं।

सावधानियां:

  • दोनों पैर सीधे होने चाहिए।
  • दोनों पैरों के पंजे शरीर की ओर खिंचे हुए होने चाहिए।

लाभ:

  • वेरीकोज़ वेन्स (Varicose Veins) के लिए यह रामबाण है।
  • पैरों से संबंधित किसी भी प्रकार की समस्या में लाभदायक।
  • एड़ियों, पिंडलियों, घुटनों और जांघों के दर्द में अत्यंत उपयोगी।
  • रीढ़ की लचक और पैरों की शक्ति में वृद्धि करता है।

आप सभी को हमारी ओर से फिर एक बार मुस्कुराता हुआ नमस्कार।
मुस्कुराते रहें, हँसते रहें, और आनंदित रहें।

आपका बहुत-बहुत धन्यवाद और आभार।

– योगाचार्य ढाकाराम
संस्थापक, योगापीस संस्थान

पीछे झुकने का वैज्ञानिक तरीका

हरि ओम प्यारे मित्रों!

आप सभी को हमारा मुस्कुराता हुआ नमस्कार। एक कदम स्वास्थ्य से आनंद की ओर कार्यक्रम में आप सभी का स्वागत है। आज हम चर्चा करेंगे पीछे कैसे झुके।

गलत तरीके से पीछे झुकने से क्या होता है?

  • कमर में दर्द हो सकता है
  • शरीर की संरचना बिगड़ सकती है

सही तरीके से पीछे झुकने के फायदे:

  • मेरुदंड के लिए बहुत अच्छा
  • फेफड़ों और हृदय के लिए फायदेमंद

पीछे झुकने का तरीका:

  • अर्द्ध चक्रासन:
    1. अपने हाथों को नितंबों पर रखते हुए नितंबों को नीचे दबाएं और छाती को बाहर निकालें।
    2. आंखें बंद करके सांस लेते हुए छाती को ज्यादा से ज्यादा फुलाएं।
    3. गर्दन को तनाव मुक्त रखें।
    4. ध्यान कंधों और छाती की मांसपेशियों पर केंद्रित करें।
    5. आंखों को बिना खोले धीरे-धीरे हाथों को नीचे लाएं।
    6. आंखें बंद करके शरीर में होने वाले परिवर्तन को महसूस करें।
    7. ध्यान कंधों और छाती की मांसपेशियों पर केंद्रित करें।
    8. पीछे झुकने के लिए जल्दबाजी न करें।
    9. रोजाना अभ्यास से अच्छा परिणाम मिलेगा।
  • दूसरा तरीका:
    1. हाथों को कमर के पीछे ले जाकर उंगलियों को आपस में फंसाकर कैंची बना लें।
    2. छाती को आगे की ओर ज्यादा से ज्यादा फुलाएं और गर्दन को पीछे रखें।
    3. इस स्थिति में कम से कम एक से दो मिनट रुकने का प्रयास करें।
    4. जब रुकना मुश्किल हो जाए तो धीरे-धीरे आसन से वापस सामान्य अवस्था में आ जाएं।
    5. आंखें बंद करके शरीर में होने वाले परिवर्तन को महसूस करें।
    6. आंखें बंद करके आसन करने से मन में शांति और आनंद की अनुभूति होगी।
    7. कंधे और गर्दन में जकड़न या दर्द होने पर यह बहुत महत्वपूर्ण है।

ध्यान रखने योग्य बातें:

  • आगे झुकते समय कूल्हों के जोड़ से झुकें, पीठ सीधी रखें।
  • अर्ध चक्रासन करते समय छाती को फुलाते हुए ऊपरी भाग से पीछे झुकें।
  • मेरुदंड की कशेरुकाओं को धीरे-धीरे मोड़ें।

लाभ:

  • छाती, फेफड़ों और हृदय के लिए फायदेमंद
  • मेरुदंड को लचीला बनाता है
  • कंधों और गर्दन की मांसपेशियों के लिए लाभदायक

अन्य जानकारी के लिए:

www.dhakaram.com

योगाचार्य ढाका राम

संस्थापक

योगापीस संस्थान