हनुमानजी जैसी छाती फुलाकर बैठने का योगिक और वैज्ञानिक रहस्य
हरि ओम्, प्यारे मित्रों!
आज हम बात करेंगे उस विशेष मुद्रा की, जिसे हम अक्सर “हनुमानजी जैसी छाती फुलाकर बैठना” कहते हैं।
हनुमानजी का स्वरूप सदैव संयम, ऊर्जा और शारीरिक व मानसिक शक्ति का प्रतीक माना गया है। उनकी छाती विशाल, स्थिर और खुली होती है – जिसे देखकर सहज ही आत्मविश्वास, शक्ति, प्राणशक्ति और धैर्य का अनुभव होता है।
योगिक दृष्टिकोण से भी ऐसे ओपन चेस्ट पोज़्चर (Open Chest Posture) का गहरा महत्व है।


छाती फुलाने का सही अर्थ
छाती फुलाने का अर्थ केवल सांस भरकर फुला लेना नहीं है। इसका वास्तविक अर्थ है:
- कंधों को थोड़ा पीछे खींचना
- छाती को ऊपर और आगे उठाना
- रीढ़ को सीधा रखना
इस मुद्रा में शरीर स्वाभाविक रूप से “ओपन” और संतुलित स्थिति में आ जाता है।
छाती फुलाने के लाभ
शारीरिक लाभ
- फेफड़ों को अधिक स्थान → ऑक्सीजन का सेवन बढ़ता है → अंगों को अधिक ऊर्जा मिलती है।
- हृदय पर दबाव घटता है → रक्त संचार बेहतर होता है।
- रीढ़ सीधी रहती है → कमर-दर्द व पीठ की समस्याओं से राहत।
- गले का क्षेत्र खुला रहता है → श्वसन तंत्र साफ रहता है।
- पेट पर दबाव कम होता है → पाचनतंत्र में सुधार।



मानसिक व भावनात्मक लाभ
- खुली छाती → आत्मविश्वास और मानसिक ऊर्जा में वृद्धि।
- शक्तिशाली मुद्रा → सकारात्मक बॉडी लैंग्वेज विकसित होती है।
- “ओपन चेस्ट” स्थिति → तनाव और अवसाद में कमी लाने में सहायक।
- संस्कारशील भाव उत्पन्न होते हैं, जैसे:
- “मैं पूर्ण निष्ठा से बैठा हूं।”
- “मैं तैयार हूं।”
- “मैं निर्भय हूं।”
योग में छाती खोलने की भूमिका
योग में छाती खोलना का तात्पर्य है:
- अनाहत चक्र (हृदय चक्र) को सक्रिय करना।
- यह चक्र प्रेम, करुणा, संतुलन और अपनत्व से जुड़ा होता है।
जब हम सिकुड़कर या झुककर बैठते हैं, तो केवल सांस ही अवरुद्ध नहीं होती, बल्कि मानसिक ऊर्जा भी कमजोर हो जाती है।
“हनुमानजी जैसी छाती” एक भाव
- आत्मविश्वास के साथ बैठना।
- श्रद्धा और समर्पण के साथ बैठना।
- मस्तक झुका हो, पर छाती में धैर्य हो।
- अहंकार न हो, लेकिन अपार शक्ति का भाव हो।
“हनुमानजी जैसी छाती फुलाकर बैठना” केवल शारीरिक मुद्रा नहीं है।
यह मन, प्राण और चेतना को संतुलित करने की प्रक्रिया है।
यहीं से योग की वास्तविक यात्रा प्रारंभ होती है।
आप सभी स्वस्थ, प्रसन्न और आनंदित रहें।
धन्यवाद!
योगाचार्य ढाकाराम
संस्थापक, योगापीस संस्थान