एक कदम स्वास्थ्य से आनंद की ओर कार्यक्रम में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।
आजकल हमारे ब्लॉग सूर्य नमस्कार की श्रृंखला पर चल रहे हैं। पिछले ब्लॉग में हमने अश्व संचालन आसन के बारे में जाना था। आज हम बात करेंगे पर्वतासन (Mountain Pose) के बारे में।
शरीर की स्थिति पर्वत के समान होने के कारण इस आसन को पर्वतासन कहते हैं। यह हमारे पूरे शरीर के लिए अत्यंत लाभकारी है। जब हम इसे करते हैं, तो यह शरीर में खिंचाव लाता है, शक्ति प्रदान करता है और मन को शांत करता है।
अश्व संचालन आसन से पर्वतासन में कैसे आएं
अश्व संचालन आसन में हमारा दायाँ पैर पीछे रहता है।
पर्वतासन में आने के लिए कमर को ऊपर उठाते हुए धीरे से बायाँ पैर भी पीछे ले जाएँ।
बाएँ पैर की एड़ी को दाएँ पैर की एड़ी से मिलाएँ।
नितंबों और लोअर बैक को ऊपर की ओर खींचकर रखें।
सिर हमारे हाथों के बीच में रहेगा।
दोनों पैर सीधे रहेंगे और एड़ियाँ जमीन से लगी रहेंगी।
नितंब ऊपर आकाश की ओर खिंचे रहेंगे।
पर्वतासन करते समय ध्यान रखें
घुटने सीधे रहेंगे।
एड़ियों को जमीन से लगाने का प्रयास करेंगे।
शरीर का संतुलन बनाते हुए कम से कम 20 सेकंड इसी अवस्था में रुकने का प्रयास करें।
पर्वतासन के लाभ
कंधों को मजबूत बनाता है।
पैरों के लिए अत्यंत लाभकारी है।
सिर की ओर रक्त संचार बढ़ने से चेहरे पर निखार आता है।
दिमाग सक्रिय और दुरुस्त रहता है।
मेरुदंड को लचीला बनाता है।
विशेष टिप्पणी
जब हम पर्वतासन करते हैं तो चेहरा नीचे की ओर होता है। इससे रक्त का प्रवाह चेहरे की ओर बढ़ता है और त्वचा में ताजगी एवं चमक आती है।
अगले ब्लॉग की झलक
प्यारे मित्रों! अगले ब्लॉग में हम भुजंगासन के बारे में बात करेंगे। आप सब हमारे साथ इसी प्रकार जुड़े रहें और अपने स्वास्थ्य का लाभ उठाते रहें।
तो प्यारे मित्रों, आप सभी को सत-सत नमन। आप सभी खुश रहें, मस्त रहें और आनंदित रहें।
हरि ओम! आप सभी को हमारा मुस्कुराता हुआ नमस्कार। कहते हैं – मुस्कुराहट के बिना कुछ नहीं, इसलिए आइए हमेशा मुस्कुराते रहें। “एक कदम स्वास्थ्य से आनंद की ओर” कार्यक्रम में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।
आज का विषय: उत्थित पद्मासन (Uttit Padmasana)
‘उत्थित’ का अर्थ है – उठा हुआ, और ‘पद्मासन’ का अर्थ है – कमल की मुद्रा। अतः उत्थित पद्मासन = उठा हुआ पद्मासन
अभ्यास विधि:
पद्मासन में बैठना:
दंडासन में बैठ जाएं।
दाहिने पैर को मोड़ें और एड़ी को नाभि से सटाकर बाईं जांघ पर रखें।
फिर बाएं पैर को मोड़कर उसकी एड़ी को दाईं जांघ पर रखें।
हाथों की स्थिति:
दोनों हथेलियाँ जमीन पर रखें – नितंबों के दोनों ओर।
उत्थान प्रक्रिया:
धीरे-धीरे शरीर को ऊपर उठाएं।
कमर बिल्कुल सीधी रखें।
नितंब और घुटने जमीन के समांतर हों।
दोनों हाथ सीधे और कोहनियाँ बिना मुड़े रहें।
दृष्टि सामने रखें।
स्थिति बनाए रखें:
30 सेकंड से लेकर 1 मिनट तक इस अवस्था में रहें।
शरीर को यथासंभव ऊपर उठाने का प्रयास करें।
वापस आने की प्रक्रिया:
धीरे-धीरे जिस क्रम में गए थे उसी तरह वापस आएं।
आंखें बंद करें और शरीर में आए परिवर्तन का अवलोकन करें।
लाभ (Benefits):
कंधे मजबूत बनते हैं।
मेरुदंड (spine) को बल और लचीलापन मिलता है।
पेट की मांसपेशियों में खिंचाव आकर पाचन तंत्र सुधरता है।
यदि पद्मासन न लगे तो क्या करें?
सुखासन में भी यह आसन किया जा सकता है।
जो पैरों को न उठा सकें, वे केवल नितंब उठाकर अभ्यास शुरू करें।
अभ्यास के साथ कंधों में ताकत आएगी और धीरे-धीरे पूरा आसन संभव हो जाएगा।
सावधानियाँ (Precautions):
गर्भवती महिलाएं यह आसन न करें।
जिनका हाल ही में पेट का ऑपरेशन हुआ हो, वे भी न करें।
जिनकी कलाई में दर्द हो, वे इस अभ्यास से बचें।
प्रिय मित्रों, आप हमारे साथ नियमित अभ्यास करते रहें। अगर कोई आसन नहीं होता, तो अभ्यास करते रहें – धीरे-धीरे सब संभव होगा। घबराने की जरूरत नहीं है। हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं – आप स्वस्थ, मस्त और आनंदित रहें।
योग केवल आसनों या शारीरिक मुद्राओं तक सीमित नहीं है, बल्कि यह शरीर, मन और आत्मा के संतुलन की सम्पूर्ण विद्या है। जब हम साधना के लिए किसी आसन में बैठते हैं – विशेषकर सुखासन, पद्मासन या पलाथी जैसी स्थितियों में – तब शरीर का भार किस प्रकार से वितरित होता है, इसका गहरा प्रभाव हमारी शारीरिक व मानसिक स्थिति पर पड़ता है।
बैठने पर शरीर का भार कहाँ जाता है?
जब हम पालथी मारकर बैठते हैं, तब शरीर का सम्पूर्ण भार कूल्हों (Hip joints), टांगों की हड्डियों (Femurs), तथा श्रोणि (Pelvis) की हड्डियों के माध्यम से ज़मीन पर जाता है। यह भार मुख्य रूप से दोनों कूल्हों (Ischial tuberosities) पर होना चाहिए।
यदि शरीर का वजन किसी एक ओर (दाएँ या बाएँ कूल्हे पर) अधिक हो जाए, तो शरीर का संरेखन (Alignment) बिगड़ जाता है। लंबे समय तक ऐसा बैठने से रीढ़, पीठ, घुटनों और यहाँ तक कि गर्दन पर भी असंतुलन उत्पन्न होता है।
ठीक उसी तरह जैसे गाड़ी के टायरों में हवा असमान हो तो गाड़ी झुक जाती है और उसकी चेसिस खराब हो सकती है, वैसे ही शरीर का भार असमान हो तो कई शारीरिक समस्याएँ जन्म लेती हैं।
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संभावित समस्याएँ
रीढ़ की हड्डी का झुकाव (Scoliosis/kyphosis)
घुटनों पर असमान दबाव → गठिया या कूल्हों की जकड़न
झुकी हुई पीठ और संकुचित छाती → फेफड़ों की कार्यक्षमता में कमी
असंतुलन से प्राण ऊर्जा का व्यर्थ व्यय → थकान और मानसिक तनाव
योगशास्त्र का मार्गदर्शन
“स्थिरं सुखं आसनम्” – अर्थात वह आसन जिसमें स्थिरता और सुख हो।
इसीलिए बैठते समय ध्यान रखें:
दोनों कूल्हों को ज़मीन पर बराबरी से टिकाएँ, आवश्यकता हो तो कुशन/कंबल का सहारा लें।
पीठ सीधी रखें और छाती को ओपन चेस्ट स्थिति में रखें।
कंधों को पीछे घुमाकर ढीला छोड़ें।
गर्दन सीधी और ठोड़ी थोड़ी अंदर (जालंधर बंध की भाँति)
सही बैठक के लाभ
मांसपेशीय तनाव में कमी – समान भार वितरण से अनावश्यक खिंचाव नहीं होता।
स्नायु-तंत्र की सक्रियता – उचित मुद्रा से मानसिक एकाग्रता और भावनात्मक संतुलन बढ़ता है।
श्वसन प्रणाली में सुधार – खुली छाती व सीधी पीठ से फेफड़े पूरी तरह फैलते हैं।
रक्त संचार और ऊर्जा प्रवाह – सही मुद्रा से रक्त प्रवाह व चक्र सक्रिय रहते हैं।
निष्कर्ष
योग में आसन केवल बाहरी मुद्रा नहीं, बल्कि आंतरिक चेतना का माध्यम हैं। जब हम अपने शरीर का भार सम रूप से वितरित करते हैं और रीढ़ की स्थिति सही रखते हैं, तो शारीरिक, मानसिक और आत्मिक संतुलन प्राप्त होता है।
जैसे मजबूत नींव वाली इमारत हर तूफान में अडिग रहती है, वैसे ही योग में सही संरेखन और भार संतुलन हमें जीवन की हर परिस्थिति में स्थिर और ऊर्जावान बनाए रखता है।
आप सभी खुश रहें, मस्त रहें और आनंदित रहें। धन्यवाद!
हरि ओम, आप सभी को हमारा मुस्कुराता हुआ नमस्कार! कहते हैं, मुस्कुराहट के बिना कुछ नहीं है, इसलिए हमेशा मुस्कुराते रहना चाहिए। “एक कदम स्वास्थ्य से आनंद की ओर” कार्यक्रम में आप सभी का स्वागत है।
एंजायटी: आज की सबसे बड़ी समस्या
आज हम बात करेंगे एंजायटी के बारे में और जानेंगे कि इसे कैसे कम किया जाए। आजकल हर किसी को एंजायटी होने लगी है। समय के साथ आकांक्षाएं और महत्वाकांक्षाएं बढ़ गई हैं, जिससे हर समय तनाव बना रहता है।
आज हम एक बिल्कुल सरल अभ्यास बताएंगे, जिसे करके आप एंजायटी से मुक्त रह सकते हैं। हम पहले भी भस्त्रिका प्राणायाम के बारे में चर्चा कर चुके हैं, लेकिन आज हम इसे एंजायटी मैनेजमेंट के लिए समझेंगे।
भस्त्रिका प्राणायाम: एंजायटी से मुक्ति का मार्ग
भस्त्रिका प्राणायाम एक ऐसा अभ्यास है, जिसे आप रोज करके अपने आप को तनावमुक्त रख सकते हैं। इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसे कभी भी, कहीं भी किया जा सकता है—चाहे आप सोफ़े पर बैठे हों, कुर्सी पर हों, या फिर जमीन पर। बस जरूरत है तो सांसों पर ध्यान केंद्रित करने की।
जब हम भस्त्रिका करते हैं, तो हमारा पूरा ध्यान सांसों पर होता है, जिससे मन शांत रहता है और एंजायटी दूर होती है।
भस्त्रिका प्राणायाम करने की विधि
आसन: पद्मासन में बैठें। अगर पद्मासन में बैठने में कठिनाई हो, तो किसी भी आरामदायक मुद्रा में बैठ सकते हैं।
हाथों की स्थिति:
श्वास भरते हुए हाथों को छाती के सामने से सिर के ऊपर ले जाएं (हथेलियाँ सामने की ओर)।
श्वास छोड़ते हुए हाथों को वापस छाती के सामने लाकर जांघों पर रख दें।
अवधि: कम से कम 4 मिनट तक करें, फिर 1 मिनट का विश्राम लें।
अनुभूति: अभ्यास से पहले और बाद में अपने शरीर में होने वाले परिवर्तनों को महसूस करें।
नियमितता: प्रतिदिन कम से कम 5 मिनट भस्त्रिका प्राणायाम जरूर करें।
भस्त्रिका प्राणायाम के लाभ
मन की शांति: जब हम आंखें बंद करके भस्त्रिका करते हैं और ध्यान सांसों पर केंद्रित होता है, तो मन इधर-उधर नहीं भटकता। इससे मन शांत रहता है और एंजायटी कम होती है।
गहरी सांस का महत्व: जितना हमारा श्वास लंबा और गहरा होगा, मन उतना ही शांत रहेगा। मन और सांस का गहरा संबंध है।
ऑक्सीजन की आपूर्ति: भस्त्रिका से फेफड़ों में ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ती है, जो रक्त के माध्यम से पूरे शरीर में पहुँचती है। इससे ऊर्जा बढ़ती है और एंजायटी कम होती है।
हृदय व फेफड़ों के लिए फायदेमंद: यह प्राणायाम हृदय और फेफड़ों से जुड़ी समस्याओं को दूर करने में सहायक है।
रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है: नियमित अभ्यास से इम्यूनिटी मजबूत होती है।
निष्कर्ष: योग को अपनाएं, स्वस्थ जीवन जिएं
अपने जीवन को योगमय बनाएं। नियमित रूप से आसन और प्राणायाम का अभ्यास करें। प्यारे मित्रों, हमारे साथ जुड़े रहें और अपने स्वास्थ्य का लाभ उठाते रहें।
आप सभी खुश रहें, मस्त रहें और आनंदित रहें। धन्यवाद!
हरि ओम! आप सभी को हमारा मुस्कुराता हुआ नमस्कार। कहते हैं — “मुस्कुराहट के बिना जीवन अधूरा है,” इसलिए हमेशा मुस्कुराइए और स्वस्थ रहिए।
“एक कदम स्वास्थ्य से आनंद की ओर” कार्यक्रम में आपका हार्दिक स्वागत है। आज हम बात करेंगे एक अद्भुत एवं शक्तिशाली योगासन — हनुमान आसन के बारे में।
हनुमान आसन का परिचय
यह एक उन्नत (एडवांस) योगासन है।
इससे पैरों में शक्ति, मांसपेशियों में लचीलापन और पेल्विक रीजन में मजबूती आती है।
यह आसन शरीर में ऊर्जा का संचार करता है और संतुलन की भावना को विकसित करता है।
हनुमान आसन की विधि
सीधे खड़े होकर पैरों को जितना संभव हो खोलें।
शरीर को दाहिनी ओर मोड़ें, दोनों हाथ जांघों के पास रखें।
दाएं पैर का पंजा 90° पर मोड़ें, और बाएं पैर को पीछे की ओर सीधा करें।
धीरे-धीरे पैरों को फैलाएं, जल्दबाजी न करें।
पीछे का घुटना सीधा रखें और पैर को पीछे ले जाएं।
आगे वाले पैर को आगे ले जाकर पंजा सीधा रखें।
धीरे-धीरे जांघ जमीन से सटा दें।
इस स्थिति में 1-2 मिनट तक रुकें।
फिर धीरे-धीरे पूर्व स्थिति में लौटें।
अब यही प्रक्रिया बाएं पैर से दोहराएं।
सावधानियाँ और अभ्यास के सुझाव
धैर्य रखें, जितना बन पाए उतना करें।
जहाँ तक पैर खुलें वहाँ पर रुकें और 1-2 मिनट स्थिर रहें।
दोनों ओर बराबर अभ्यास करना आवश्यक है।
नियमित अभ्यास से हर सप्ताह लचीलापन बढ़ेगा।
रोज़ 10 मिनट अभ्यास से 3-4 महीनों में पूर्ण आसन संभव हो सकता है।
अभ्यास को और प्रभावी बनाने की तकनीक
दंडासन में बैठें, पैरों को सामने खोलें।
कमर सीधी रखकर आगे की ओर झुकें – 1 मिनट रुकें।
फिर दाईं ओर शरीर मोड़ते हुए हनुमान आसन में जाएँ – 1 मिनट रुकें।
फिर बाईं ओर भी यही प्रक्रिया दोहराएं।
तीनों दिशाओं में यह अभ्यास 3 बार दोहराएं।
अंत में सामने की ओर झुककर 1 मिनट रुकें और फिर विश्राम करें।
हनुमान आसन के लाभ
पेल्विक क्षेत्र को मजबूती देता है।
पैरों की मांसपेशियों को लचीलापन प्रदान करता है।
रीढ़ की हड्डी और छाती को मजबूती देता है।
मानसिक स्थिरता और आत्मविश्वास को बढ़ाता है।
आत्मबोधन और समर्पण का अभ्यास
योग केवल शरीर का नहीं, आत्मा और मन का भी अभ्यास है। धैर्य, समर्पण और नियमितता से आप हर योगासन को पूर्णता की ओर ले जा सकते हैं। अपने शरीर की सीमाओं को पहचानिए और धीरे-धीरे उसे विस्तार दीजिए।
तो प्यारे मित्रों, आप सभी को सत-सत नमन। आप हमेशा स्वस्थ, मस्त और आनंदित रहें। हमारे साथ बने रहें और योग के माध्यम से अपने जीवन को धन्य बनाते रहें।
आपका योगमित्र, योगाचार्य ढाकाराम संस्थापक – योगापीस संस्थान
नमस्कार मित्रों आप सभी को हमारा मुस्कुराता हुआ नमन! आज हम “एक कदम स्वास्थ्य से आनंद की ओर” कार्यक्रम में नेत्र शक्ति विकासक क्रिया के बारे में बात करेंगे।
आंखों की समस्याएं: एक बढ़ती चिंता
आजकल हम सभी मोबाइल फोन, कंप्यूटर और टीवी का अत्यधिक उपयोग करते हैं। जिसके कारण आंखों में सूखापन, कमजोरी और थकान जैसी समस्याएं आम हो गई हैं। इन समस्याओं से बचने और आंखों को स्वस्थ रखने के लिए हमें नेत्र शक्ति विकासक क्रिया का अभ्यास करना चाहिए।
नेत्र शक्ति विकासक क्रिया क्या है?
यह एक सरल योग क्रिया है जो आंखों की मांसपेशियों को मजबूत बनाती है, आंखों की रोशनी बढ़ाने में मदद करती है और आंखों से संबंधित समस्याओं को दूर रखती है।
नेत्र शक्ति विकासक क्रिया कैसे करें:
जमीन पर, कुर्सी पर, सोफे पर या बेड पर सीधे बैठ जाएं।
अपने दोनों हाथों को बगल में फैलाकर कंधे के बराबर मुष्टि बना लें। आपका अंगूठा ऊपर की तरफ होना चाहिए।
तिरछी नजर से 10 से 15 सेकंड के लिए दाहिने हाथ के अंगूठे को देखें। अपनी गर्दन सीधी रखें।
10 से 15 सेकंड रुकने के बाद आंखों को बाईं ओर, बाएं हाथ के अंगूठे को देखें।
धीरे-धीरे अपनी आंखों को दाईं ओर और बाईं ओर देखना शुरू करें।
इस क्रिया को दोहराएं। नेत्र शक्ति विकासक क्रिया करते समय 15 सेकंड दाईं ओर और 15 सेकंड बाईं ओर देखना है। इस प्रकार आपको इसे 6 बार करना होगा (तीन बार दाहिनी ओर और तीन बार बाईं ओर)।
नेत्र शक्ति विकासक क्रिया करने के बाद आंखें बंद करके आंखों की मांसपेशियों को आराम दें और उनमें आए बदलाव को महसूस करें।
नेत्र शक्ति विकासक क्रिया करते समय ध्यान रखने योग्य बातें:
अपनी गर्दन को सीधा रखें और तिरछी नजर से अंगूठे की तरफ देखें।
अपने हाथों को पूरी तरह से तना हुआ रखें।
अपने चेहरे पर मुस्कुराहट रखें और तनाव मुक्त रहें।
अपने कंधों को सामान्य रूप से रखें, उठे हुए नहीं।
नेत्र शक्ति विकासक क्रिया के लाभ:
आंखों की मांसपेशियों को मजबूत बनाता है
आंखों की रोशनी बढ़ाने में मदद करता है
आंखों में सूखापन और कमजोरी को कम करता है
आंखों की थकान को दूर करता है
आंखों से संबंधित समस्याओं को दूर रखता है
अतिरिक्त सुझाव:
नहाते समय अपनी आंखों को पानी से धोएं।
अपनी आंखों को साफ रखने के लिए ठंडे पानी से धोएं।
आंखों को स्वस्थ रखने के लिए आंवला और पपीता का सेवन करें।
आंखों की रोशनी बढ़ाने के लिए त्रिफला के पानी से आंखों को धो सकते हैं।
निष्कर्ष:
नेत्र शक्ति विकासक क्रिया एक सरल और प्रभावी क्रिया है जो आंखों को स्वस्थ रखने में मदद करती है। इसे नियमित रूप से करें और आंखों से संबंधित समस्याओं से मुक्ति पाएं।
आप सभी को हमारा मुस्कुराता हुआ नमस्कार। एक कदम स्वास्थ्य से आनंद की ओर कार्यक्रम में आप सभी का स्वागत है।
आज हम सभी बिंदास होकर हँसता हुआ ध्यान करेंगे। आप सोचेंगे कि हम क्यों हँसे और हँसता हुआ ध्यान कैसे करेंगे लेकिन हँसने का कोई कारण नहीं होता है। आप लोगों को याद होगा कि हमने पिछली बार “हँसी के बिना जीवन नहीं” लेख लिखा था जिसमें हँसने के बारे में बताया था। हमने कहा था कि हमारे जैसा कोई नहीं इसलिए हम सब हँसेंगे क्योंकि हम यूनिक है और परमपिता परमेश्वर ने किसी भी मनुष्य या किसी भी जीव जंतु को रिपीट नहीं किया है। इस दुनिया में हमारे जैसे हम इकलौते ही हैं। लेकिन आज हम आपको हँसने के लिए एक दूसरी चाबी देंगे मतलब वजह देंगे क्योंकि जब आप बेवजह हँसते हैं तो आपकी आजू-बाजू वाले बोल ही देते हैं क्यों हँस रहे हो भाई पागलों की तरह। इसीलिए पिछली बार हमने वजह दिया था हमारे जैसा कोई नहीं और इस बार दूसरी वजह दे रहे हैं आप लोगों के पास हँसने के लिए।
अब आपके पास 2 वजह हो जाएगी और इस तरह की वजह आने वाली एपिसोड में देते रहेंगे । आज आप दुनिया के सबसे अमीर आदमी बनने वाले हैं। हर कोई कहता है कि मेरे पास यह नहीं है मेरे पास वह नहीं है लेकिन आज आप अपने मुंह से ही कहेंगे कि मेरे जैसा अमीर इस दुनिया में कोई नहीं है। आप आज इसलिए हँसेंगे क्योंकि आपके जैसा अमीर आदमी और इस दुनिया में कोई नहीं है। अब आप जरा दिल और दिमाग से सोचिए अगर इस दुनिया का सबसे अमीर आदमी आकर आपके दोनों गुर्दे मांगे और बोले कि मैं अपनी सारी संपत्ति आपके नाम कर दूंगा तो क्या आप उन्हे अपने दोनों गुर्दे देंगे? नहीं देंगे। तो सोचिए भगवान ने आपको आपके शरीर की कितनी सारी बहुमूल्य चीज दे रखी हैं। भगवान ने आपको दो गुर्दे दे रखे हैं और दो-दो आंखें दे रखी हैं अगर कोई सारी संपत्ति तुम्हारा नाम कर दूंगा अपने दोनों आंखें हमें दे दो क्या हम अपने दोनों आंखें देंगे बिल्कुल भी नहीं देंगे। तो सोचिए आप कितने भाग्यशाली हैं कि आपको यह सारी चीज मिली हुई है। आज से हम यह सोच कर हँसेंगे कि भगवान ने हमें इतना भाग्यशाली बनाया है। तो जोर से हँसेंगे। तो इतना हँसो की आपके पड़ोसी को भी पता लग जाए कि आप हँस रहे हैं। अपनी आंखें बंद करें और हँसते रहे और शरीर का रोम रोम हँस रहा है ऐसा महसूस करेंगे। भगवान को धन्यवाद दें कि उन्होंने आपको दो बहुमूल्य आंखें दी हैं और आंखों और गुर्दे जैसे कितने ही बहुमूल्य चीज हमारे शरीर में है। इसलिए दिल खोलकर हँसो इतना हँसेंगे की आपका पेट दर्द होने लग जाए आपके गालों में दर्द होने लग जाए। अपने आप पर हँसना है और दिल से हँसना है। योग का मतलब ही है अपने स्वयं पर हँसना हैं। आज हम हँस रहे हैं क्योंकि हमारे पास दो आंखें हैं और इन आंखों के बिना दुनिया कुछ भी नहीं है। लोग दूसरों पर हँसते हैं लेकिन हमें अपने आप पर हँसना है। खो जाना है अपने आप में। धन्यवाद दे परमपिता परमेश्वर को की उन्होंने हमें गुर्दे और आंखें और बहुत सारी मूल्यवान चीज हमारे शरीर में प्रदान की है। हमारे शरीर में भगवान ने सैकड़ो ऐसी चीज दे रखी हैं जिनका कोई मुकाबला नहीं। इसलिए आत्म विश्लेषण बहुत जरूरी है। अपने आप में खो जाए। अपने आप का अवलोकन करे। जब भी आप उदास हो आप अपने आप को देखें। अपने बेशकीमती शरीर को देखें और खूब हँसे और हँसता हुआ ध्यान करें उनकी अनुकंपा हम पर बरस रही है उसे महसूस करें।
हँसता हुआ ध्यान कैसे करें?
हँसता हुआ ध्यान करने के लिए, सबसे पहले एक आरामदायक स्थिति में बैठ जाएं जैसे आलती पालती मार कर बैठना मतलब सुखासन में अर्ध पद्मासन पद्मासन या कुर्सी या सोफे के ऊपर कुल मिलाकर आरामदायक स्थिति में और अपने हाथों को अपने घुटनों पर रखें। अपनी आँखें बंद करें और अपने शरीर को आराम दें।
अब, अपने होंठों को खोलें और हँसने की आवाज निकालें। शुरू में, यह नकली हँसी की तरह लग सकता है, लेकिन जैसे-जैसे आप अभ्यास करते हैं, यह अधिक स्वाभाविक हो जाएगा।
अपनी हँसी को अपने पूरे शरीर में फैलने दें। अपने चेहरे, गर्दन, छाती और पेट को हिलाएं। अपनी हँसी को दिल से आने दें।
10-15 मिनट तक हँसते रहें। उसके बाद अपनी आँखें खोलें और सामान्य स्थिति में लौटें।
लाभ:
मनोवैज्ञानिक लाभ: हंसता हुआ ध्यान तनाव, चिंता और अवसाद को कम करने में मदद कर सकता है। यह आत्म-सम्मान और आत्म-प्रेम को बढ़ावा देने में भी मदद कर सकता है।
शारीरिक लाभ: हंसता हुआ ध्यान रक्तचाप को कम करने, प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ावा देने और दर्द को कम करने में मदद कर सकता है।
हँसता हुआ ध्यान के लिए कुछ सुझाव:
अपने आप पर हँसें: हँसता हुआ ध्यान का सबसे अच्छा तरीका अपने आप पर हँसना है। अपने शरीर की विविधताओं और अपूर्णताओं को स्वीकार करें और उन पर हँसें।
अपनी हँसी को स्वाभाविक होने दें: शुरू में, आपकी हँसी नकली लग सकती है, लेकिन जैसे-जैसे आप अभ्यास करते हैं, यह अधिक स्वाभाविक हो जाएगी। अपनी हँसी को रोकने की कोशिश न करें, बस इसे बहने दें।
नियमित रूप से अभ्यास करें: हँसता हुआ ध्यान का अधिकतम लाभ उठाने के लिए, नियमित रूप से इसका अभ्यास करें।
तो प्यारे मित्रों हँसते मुस्कुराते रहो। दूसरों पर हँसने की बजाय हमेशा अपने ऊपर हँसिए। हँसने को अपनी जिंदगी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनाये किसी भी हालत में अपनी खुशी के साथ कंप्रोमाइज नहीं करें क्योंकि अगले ही क्षण का हमें पता नहीं है। इसी के साथ आप सभी का जीवन हँसता खेलता आनंद में हो ।
योग पाचन तंत्र को मजबूत करने और पाचन संबंधी समस्याओं को दूर करने में मदद करता है।
योग के आसन और प्राणायाम पाचन अंगों को मालिश करते हैं और तंत्रिका तंत्र को शाँत करते हैं, दोनों ही पाचन के लिए महत्वपूर्ण हैं।
योग पाचन तंत्र में सूजन को कम करने और पोषक तत्वों के अवशोषण को बढ़ाने में भी मदद कर सकता है।
योग और पाचन तंत्र:
अपने व्यस्त जीवन के बीच, हम अक्सर अपने पाचन तंत्र के महत्व को नजरअंदाज कर देते हैं, वह मुख्य कार्यकर्ता जो हमारे द्वारा उपभोग किए जाने वाले पोषक तत्वों को अथक रूप से संसाधित करता है। हालाँकि, जब हमारा पाचन स्वास्थ्य लड़खड़ाता है, तो यह हमारे समग्र स्वास्थ्य पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालता है।
सौभाग्य से, पाचन शक्ति बनाए रखने के लिए एक समग्र दृष्टिकोण मौजूद है – योग। योग, शारीरिक मानसिक और आध्यात्मिक विकास पर आधारित एक प्राचीन अभ्यास है, जिसका हमारे पाचन स्वास्थ्य के लिए बहुत ही लाभ प्रदान करता है।
योग के आसन पाचन अंगों को मजबूत करते हैं
योग के आसन हमारी पाचन तंत्र के अंगों का मसाज करते हैं, जिससे वे सुचारू रूप से कार्य करने में मदद मिलती है। उदाहरण के लिए, सुप्त बद्ध कोणासन पेट के अंगों में विश्राम देकर और पेट में रक्त के प्रवाह को बढ़ाकर पाचन में सुधार करने में मदद करता है। अर्ध हलासन पेट के अंगों को विश्राम करके और पाचन तंत्र में रक्त के प्रवाह को बढ़ाकर पाचन में सुधार करने में मदद करता है।
प्राणायाम तंत्रिका तंत्र को शाँत करता है
तनाव और चिंता हमारे पाचन स्वास्थ्य पर कहर बरपा सकती है, जिससे अनियमित मल त्याग, एसिड रिफ्लक्स और यहां तक कि अल्सर भी हो सकता है। योग के प्राणायाम तंत्रिका तंत्र को शाँत करने में मदद करते हैं, जिससे तनाव हार्मोन कम होते हैं जो पाचन तंत्र को दुरस्त करते हैं।
योग आँत माइक्रोबायोम स्वास्थ्य को बढ़ावा देता है
आँत माइक्रोबायोम, हमारी आँतों में रहने वाले खरबों सूक्ष्मजीवों का एक समुदाय, पाचन और समग्र स्वास्थ्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह देखा गया है कि योग आँत के माइक्रोबायोम पर सकारात्मक प्रभाव डालता है, संभावित रूप से सूजन को कम करता है और पोषक तत्वों के अवशोषण को बढ़ाता है।
योग सचेतनता और माइंड-गट कनेक्शन को बढ़ावा देता है
योग सचेतनता विकसित करता है, बिना किसी निर्णय के अपना ध्यान वर्तमान क्षण पर लाने का अभ्यास योग के माध्यम से ही संभव है। यह जागरूकता हमारे पाचन को प्रभावित करने वाले तनाव के कारणों को पहचानने और प्रबंधित करने में हमारी मदद करती है।
पाचन स्वास्थ्य के लिए योग: एक व्यावहारिक मार्गदर्शिका
योग को अपनी पाचन स्वास्थ्य दिनचर्या में शामिल करने के लिए, इन आसनों को अपने अभ्यास में शामिल करने पर विचार करें:
सुप्त बद्ध कोणासन
अर्ध हलासन
मलासन
बालासन
पाचन सद्भाव के लिए अतिरिक्त युक्तियाँ
सर्वोत्तम पाचन स्वास्थ्य के लिए योग अभ्यास के साथ-साथ इन आदतों को अपनी दैनिक दिनचर्या में शामिल करें:
जलयोजन: पाचन तंत्र को बेहतर बनाने के लिए तथा कब्ज जैसी समस्याओं से निपटने के लिए प्रतिदिन 8 से 10 गिलास पानी पीएं। पानी को धीरे-धीरे पिएं ताकि हमारे मुंह से सलाइवा भी अंदर जाए तथा हमारे पाचन तंत्र की मदद करे।
ध्यानपूर्वक भोजन करें: खाने को अच्छी तरह चबाकर खाएं।
फाइबर युक्त आहार: आँत के स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए फाइबर युक्त फल, सब्जियां और साबुत अनाज का भरपूर सेवन करें।
नियमित योग: पाचन तंत्र को बेहतर करने और तनाव को कम करने के लिए नियमित योग करें।
तनाव प्रबंधन: प्राणायाम तथा ध्यान हमारे तनाव को कम करने की भूमिका निभाते हैं अतः नियमित योग अभ्यास करना चाहिए।
याद रखें, योग एक यात्रा है, जिस पर निरंतर अभ्यास करने की आवश्यकता है । अपने आप पर धैर्य रखें और अपने पाचन स्वास्थ्य और समग्र कल्याण के लिए योग के लाभों की आनंद लें।
योग हमारी पाचन तंत्र के साथ हमारी संपूर्ण विकास शारीरिक मानसिक और आध्यात्मिक के लिए परिपूर्ण है इसलिए अपनी साधना निरंतर करते जाएं। 24 घंटे में से लगभग डेढ़ घंटा साधना को देखकर 22 घंटे 30 मिनिट को आनंदित बनाए जा सकता हैं।
आप सभी खुश रहें मस्त रहें आनंदित रहें, सुप्रीम पावर परमेश्वर की अनुकंपा आप सभी पर बरस रही है और बरसती रहे, इसी प्रकार आपका प्यार मिलता रहे ताकि हम आगे और स्वास्थ्य से संबंधित ब्लाग और आर्टिकल आप लोगों के माध्यम से जन-जन तक पहुँचाते रहें और विश्व कल्याण हो।
आनंदम योग शिविर में योगाचार्य ढाकाराम ने दिया प्रशिक्षण
पर योग हर व्यक्ति निरोग मुहिम के तहत उत्तर भारत की प्रमुख श्री वैष्णव पोठ उत्तर तोदाद्रि श्री गलता जी द्वारा श्री गलता पीठ में गलतापीठाधीश्वर स्वामी सम्पतकुमार अवधेशाचार्य महाराज के सानिध्य एवं श्री गलता पीठ के युवराज स्वामी राघवेन्द्र के मार्गदर्शन में आयोजित आनंदम शिविर में प्रसिद्ध योग गुरु योगाचार्य ढाकाराम ने सैकड़ो भक्तों एवं योग प्रेमियों को योगाभ्यास, प्राणायाम एवं ध्यान के साथ मुस्कुराते हुए जीवन जीने की कला के सूत्र भी दिए। अवधेशाचार्य महाराज ने अपने आशीर्वचन में कहा कि आनंदमय जीवन के लिए नियमित साधना अनिवार्य है।
युक्ताहार युक्त विहार कार्य मनोयोग युक्त, जागरण और शयन भी युक्ति युक्त हो, स्वस्थ शरीर से ही सभी धर्मों का पालन हो सकता है अत: जो बीमार है उसके लिए योग आवश्यक है और जो नहीं कता वह बीमार ना हो इसलिए अत्यावश्यक है।
शिविर के मुख्य समन्वय एवं आनंदम प्रकल्प के राष्ट्रीय प्रभारी योगी मनीष भाई विजयवर्गीय ने कहा की योगपीस संस्थान एवं अंजू देवी मेमोसिल ट्रस्ट के सहयोग से आयोजित शिविर एक निश्चित कार्य योजना के साथ मंदिर प्रबंधन समितियों,विकास समितियों एवं सामाजिक संस्थाओं के सहयोग से जयपुर के विभिन्न मंदिरों, स्कूलों,सार्वजनिक पार्कों एवं सामुदायिक केंद्रों में आयोजित किए जाएंगे जिनका उद्देश्य हर घर हर घर योग हर व्यक्ति निरोग रहे हैं इसके लिए संस्थान द्वारा निशुल्क प्रशिक्षक उपलब्ध कराए जाएंगे इच्छुक संस्थाएं योग हेल्पलाइन नम्बर पर संपर्क कर सकती हैं। शिविर में योग श्रीपास संस्थान आनंदम् योग शिविर की सेवा में सहयोग के लिए गौ भक्त जन सेवक रवि नैय्यर, राजस्थान स्वास्थ्य योग परिषद के मुख्य प्रशिक्षक आनंद कृष्ण कोठारी, समाज सेवी राकेश गर्ग, योगाचार्य विशाल, योग विभूति पूर्वी विजयवर्गीय को अवधेशाचार्य महाराज एवं योगाचार्य ढाकाराम ने सम्मानित किया।