उड्डियान बंध: स्वास्थ्य, पाचन और शारीरिक संतुलन की ओर एक कदम
आप सभी को हमारा मुस्कुराता हुआ नमस्कार। हमारे इस विशेष श्रृंखला “एक कदम स्वास्थ्य से आनंद की ओर” में आपका स्वागत है। पिछले लेख में हमने अग्निसार क्रिया के बारे में चर्चा की थी और आज हम उड्डियान बंध के बारे में जानेंगे।
पतंजलि के अष्टांग योग में यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, और समाधि का उल्लेख मिलता है। वहीं, अगर हम घेरण्ड संहिता की बात करें, तो इसमें ऋषि घेरण्ड ने सबसे पहले षट्कर्म की चर्चा की है। महर्षि घेरण्ड ने हमें बताया कि आसनों से पहले शरीर को शुद्ध करना आवश्यक है, जिसमें नौली क्रिया का विशेष महत्व है। नौली क्रिया को लौलीकी क्रिया भी कहते हैं, और इसका मुख्य उद्देश्य पेट का शुद्धिकरण है। षट्कर्म में धौति, बस्ति, नेति, नौली, त्राटक और कपालभाति शामिल हैं।
उड्डियान बंध का अभ्यास
आज हम उड्डियान बंध क्रिया को समझेंगे और उसका अभ्यास करेंगे। पिछली बार हमने बताया था कि नौली क्रिया से पहले अग्निसार क्रिया का अभ्यास करना चाहिए। जब अग्निसार क्रिया अच्छे से होने लगे, तभी हमें उड्डियान बंध का अभ्यास करना चाहिए। उड्डियान बंध के लिए सबसे पहले दोनों पैरों में एक से डेढ़ फीट का फासला रखना चाहिए, जो लगभग कंधों की चौड़ाई के बराबर होता है। दोनों हाथों की हथेलियों को जांघों पर रखते हुए, शरीर को आगे की ओर झुकाएं। अब श्वास को पूरी तरह से बाहर निकालें और पेट की मांसपेशियों को अंदर की ओर खींचें, जिससे नाभि को पीछे की ओर मेरुदंड तक ले जाने का प्रयास करें।
जब श्वास को और अधिक रोकना मुश्किल हो जाए, तो धीरे-धीरे खड़े होकर आराम करें। थोड़ी देर आराम करने के बाद, जब पेट की मांसपेशियां रिलैक्स हो जाएं, तो फिर से इस क्रिया को दोहराएं। इस प्रक्रिया को कम से कम 2-3 मिनट तक किया जा सकता है, और समय के साथ अभ्यास को बढ़ाया जा सकता है।
इस क्रिया को बैठकर भी किया जा सकता है, लेकिन खड़े होकर अभ्यास करने से इसका अधिक लाभ मिलता है।
उड्डियान बंध के लाभ
हमारे ग्रंथों में कहा गया है कि उड्डियान बंध का नियमित अभ्यास करने से हमारा पाचन तंत्र इतना मजबूत हो जाता है कि हमारा पेट पत्थर तक पचा सकता है। यह क्रिया पेट की समस्याओं जैसे गैस्ट्रिक, एसिडिटी, कब्ज, और अपच को दूर करती है। साथ ही, पेट की मांसपेशियों को लचीला और मजबूत बनाती है और पेट के मोटापे को कम करती है।
सावधानियां
उड्डियान बंध का अभ्यास करते समय कुछ सावधानियों का ध्यान रखना जरूरी है:
- यह क्रिया खाली पेट ही करनी चाहिए।
- पित्त प्रकृति के व्यक्ति, जिनके शरीर में अधिक गर्मी होती है, उन्हें इसका अधिक अभ्यास करने से बचना चाहिए।
- उड्डीयन बंध का अधिक अभ्यास पेट की मांसपेशियों में शुष्कता ला सकता है, जिससे कब्ज की समस्या हो सकती है।
- गर्भवती महिलाओं को यह क्रिया नहीं करनी चाहिए।
- हर्निया, अल्सर, या पेट का ऑपरेशन हुआ हो, तो इस क्रिया का अभ्यास न करें।
- मासिक धर्म के दौरान महिलाओं को इस क्रिया से बचना चाहिए।
- कमर दर्द की समस्या हो, तो भी इस क्रिया का अभ्यास नहीं करना चाहिए।
आप सभी का बहुत-बहुत आभार और धन्यवाद। आप इसी तरह आनंदित रहें, मुस्कुराते रहें, यही हमारी भगवान से प्रार्थना है।